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Mohan Jaipuri Aug 2022
A common man
with broad vision
Happy with his work
in every season
Often enjoyed
seeing him working
Always starved for
being ready for helping
Shared everything
but said just joking
Helped smilingly but
shown as if done nothing
Pratapnagar is today
deeply shocked
I feel today as if
My blood has dried
and tongue is tied .
# Mohan Karnani
A humble tribute
Mohan Jaipuri Aug 2022
एक मोर पंख, एक बांसुरी
एक दही की हांडी
तीनों जहां एक जगह हों
वहीं दिखता है कन्हाई
एक लाठी , एक लंगोटी
एक गोल फ्रेम का चश्मा
तीनों जहां एक जगह हों
वहीं दिखता है गांधी
दोनों ‌का ही एक संदेश
प्रेम, आस्था,त्याग का फल
सुधारेगा आने वाला कल।।
Mohan Jaipuri Aug 2022
यंग बोयज के चार साल
बेमिसाल बेमिसाल।

कभी क्रिकेट का उबाल
कभी ग्लेमर का धमाल
कभी संगीत की सुर लहरी
कभी यादों की टीस गहरी
     हर अंदाज रहा कमाल
     चार साल बेमिसाल

कभी बातें पैग पटियालवी
फिर अंदाजे बयां लखनवी
गजलों का फिर सिलसिला
सुनकर जब दिल खिला
       दिल की बातें चली रेक की चाल
       चार साल बेमिसाल

कभी सैर - सपाटों की बातें
उस पर खाने की सोगातें
मिलकर जहां भी बैठें हों
रेक की बातों के खिले गुलदस्ते
       रंगो ओ सुंगध छूटा रेक के नाल
        फिर भी चार साल बेमिसाल

जब जब राजनीति ने दस्तक दी
यंग बोयज दुविधा में दिखी
राजनीति द्विधारी तलवार
इससे यंग बोयज को लेना उबार
     खाना हो तो गुड़ खाओ बाकी सब बेकार माल
     यंग बोयज है एक चोपाल
     जिसके चार साल बेमिसाल।।
Mohan Jaipuri Aug 2022
जीवन शतरंज का खेल है
पत्नी इसमें रानी है
जिस दिन इससे पत्नी गायब
फिर बचती नहीं कहानी है।।
Mohan Jaipuri Aug 2022
मेरा‌ देश ,मेरी जान
पहाड़, नदियां और मैदान
जिसकी मिट्टी निपजे अन्न
कई तरह के दलहन
नकद‌ फसल में तिलहन
जिसमें बसता मेरा मन ।

पहाड़ों में‌ जिसके है‌ बागान
सूखे मेवों पर मैं कुर्बान
शीशम , साल‌ और सांगवान
इमारती लकड़ी की हैं खान
केशर की खूशबू वाला देश
जिससे ‌बना है मेरा तन।

कल कल नदियां
कल कल झरने
हमेशा रहे जिसकी शान
सभ्यताओं की पुर पहचान
शील, संस्कारित मेरा ज्ञान
यही मेरी विश्व  पहचान।

प्रायद्वीपीय दक्षिण क्षेत्र
हमेशा‌ समुद्री व्यापार का केन्द्र
मिशाईल परीक्षण और उत्पादन
दिलाता तकनीकी में मान
मेरे‌ देश की खूबियों पर‌
मैं सौ‌ सौ बार जाऊं कुर्बान।।
Mohan Jaipuri Jul 2022
आज फिर थोड़ा इतरा लेता हूं
यह इतराने का दिन है
जिस दिन बेटी पैदा होती‌ है
उस दिन से  जीवन‌ में
खुशियों की "बीमा‌" हो जाती है।।
Mohan Jaipuri Jul 2022
सावन तीज सबसे न्यारी
हरियाली से भरी सब क्यारी
झूले पेड़ों पर जब डलते
मन के सपनों को पंख लगते
रिमझिम बारिश की आवाज
पुकारे  वर्षा नहाने को ।

धरती अंबर का देख प्यार
सूर्य किरणें बनाती इन्द्रधनुष
नीचे भीगी धरती की महक
बाहर मोर- पपीहों की चहक
लिपटी देख बेल पेड़ों से
ललचाये मन आलिंगन को ।

करें गोरियां सोलह श्रृंगार
लगती हर‌ एक गोकुल की नार
सहेलियों की हंसी ठिठोली
देती प्यार के गहन संदेश
नदियों का उफान‌‌ देख
भूले मन हर लाज को ।
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