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Bhakti Apr 2018
आओ बहनों फिर जोहर कुंड सजा लेते है ।
अग्नि के पावन तेज से ये जिस्म जला देते है

कोई भाई हमें उस नर्क के दर्द से बचाने ना आ पायेगा।
खोफ का ये मंजर अब नहीं सहा जाएगा ।
रूह कांप रही है सोच कर कैसे जुल्म अबलाओं ने झेला होगा ।
सतीत्व के साथ नीचों ने हस हस के खेला होगा ।

उम्मीद मर गई है मेरी इंसाफ और कानून से
हर चोखट की इज़्ज़त को राजनीति में उछाला जाएगा।

कुछ दिनों का किस्सा बन कर ये भी भूली बात होगी ।
ये लिखावट भी किसी भयानक दर्द की राख होगी ।
नहीं कर सकती अब कोई माँ बेटी की आबरू का बलिदान
नहीं बन सकती अब कोई लड़की बदले का , हवस का सामान ।

खोफ से सनी रातों को अब ना ख्वाबों में देखा जाएगा
सुनों मेरी अब हमें बचाने नहीं कोई कृष्णा आएगा

आखरी श्रंगार कर मोत का मजा लेते है ।
आओ बहनों फिर जोहर कुंड सजा लेते है ।
Bhakti Jan 2018
हर दफा क्यू लडकिया दो पहलू में देखी जाती है

एक ओर मुस्कान उसकी घर घर महकाती है
दूसरी खुल कर जो हस दे चरित्र हींन बन जाती है

एक ओर आजाद हो लड़की , नारो से बातें आती है
दूसरी जो खुल के जी ले आखो में खटक जाती है

एक ओर कागजो पर बराबरी का हक पाती है
दूसरी अपने ही आगंन,खुद को पीछे पाती है

एक ओर वस्त्र से ढकी , संस्कारी मानी जाती है
दूसरी वही आँखे चीरहरण कर मुस्काती है

एक ओर नारी ही देवी राग अलापी जाती है
दूसरी कुछ पल अपने जीने को गिड़गिड़ाती है

एक ओर नवरात्रो में घर घर मे पूजी जाती है
दूसरी झुंड में निर्दयता से नोचि जाती है

क्यों आखिर क्यों ये लड़कियां
दो पहलू में देखी जाती है

— The End —