Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Rashmi Sep 2019
चुप सी क्यों हूं?
ये पूछना अब बेफिजुल सा लगता है
शब्दों को ना समझने वाली दुनिया के आगे
अपने शब्दो को रखना भी बिफिजुल लगता है
लोग कहते है बिखर जाओगी अकेले....
तो सोचा चलो
मेरे शब्दो को ना समझ पाने वाली दुनिया को दिखाए
अकेले ही निखर पाऊंगी मैं
फिर सोचा के इस दुनिया को क्यों दिखाए
खुद को देखते है और दखते है जो देखना दिखाना है
ये दुनिया ना पहले समझी थी और ना शायद समझेगी
तो क्यों ही अपना समय इन पर खराब करे
वैसे भी समय खराब करने के लिए बहुत कुछ है
इस उबाऊ सी दुनिया पे क्यों खराब करे अपना समय
इससे अच्छा कुछ मस्ती भरे पल ही बना ले
अकेले है रहा कर।
Rashmi Sep 2019
भीड़ में ऐसी खोई हूं
खुद कि पहचान खोती जा रही हूं
रातों को जागना राहत देता है
अकेलापन कुछ ज्यादा ही करीब आ रहा है
शायद"अकेले रहना है मुझे"
मेरी इस ज़िद ने अकेला रखा है मुझे
फिर भी बहुत कुछ अधूरा सा लगता है
अभी बहुत से सपने है इस दिल मै
उन्हें पूरा करने के हीमत हर बार जुटाती हूं
फिर न जाने जवाने की या अपनी ही
ठोकर से उस हिम्मत के पहाड़ को गिरा देती हूं
दिखाती  हूं सबको की बहुत हिम्मत है मुझमें
न जाने किस्से ये झूठ कहती हूं
सब से,दूसरो से या फिर सब मै शामिल खुद से
न जाने क्या चाहती हूं
खुद से ही खुद को खोती जा रही हूं
अपने आप को खुद ही नई समझ रही हूं
ऑरो से फिर कैसी उम्मीद रखू
जब खुद मेरा मन ही नई जनता क्या चाहता है वो
थक चुकी हूं दुनिया से
पर अब शायद खुद से हार रही हूं मै
फिर भी हर रोज़ उठती हूं
सबसे पहले खुद से मुक़ाबला करने की हिम्मत लाती हूं
फिर बस अपने बिस्तर को छोरकर
दुनिया का रोज़ सामना करती हूं
पर जिस दिन खुद से हारू न
उस दिन हार जाती हूं सब से
तो हर रोज़ अपने आप को हराने मै वक्त बिताती हूं
इसलिए भी शायद खुद को कहीं खोती जा रही हूं।
Rashmi Sep 2019
तुझे भूलने की जो तलब लगानी थी
वो पूरी तरह लग न पाई
तुझे याद करने की जो आदत थी
वो कब सबसे बड़ी तलब बन गई
उसके आगे कुछ सूझा ही नहीं
क्या करू कुछ बुझा भी नहीं
कहना तो था बहुत कुछ तुझसे
पर तूने सुनने का मौका कभी ढूंढा ही नहीं
ऐसे कैसे हो गई हूं इतनी लापरवाह
तेरी चाह ने ऐसा क्या किया
तू तो मुझे चाहता भी नहीं
फिर क्यों ये चाह जगी है मुझमें
जो बुझती ही नहीं।

— The End —