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आपका  वो  मुस्कुराना, न जाने कब छू गया दिल को मेरे चुपके चुपके ।

न जाने कब आप बन गये जिवन मेरा, धीरे धीरे, चुपके चुपके

जिन्दगीमें मेरी आये बहार बनके, दिल में समा गये, बन के मेरे, चुपके चुपके

न  जाने कब, तन मन पे एक नशा बनके छा गए आप, चुपके चुपके

और फिर, हम अपना दिल ही खो बैठे, न जाने कब यह हुआ, चुपके चुपके ।

जागते  सोते, धीरेसे मेरे ख्वाबो  खयालो में छा गए, चुपके चुपके

जिवन बन गये, मुझमे समा गये, दिल की धड़कन बन गये, बडे ही चुपके चुपके

क्या कहूँ इसे? आपका मेरे सांसोमे समाना यूह चुपके चुपके !!!

Armin Dutia Motashaw
छोटा सा मेरा घर

हो एक छोटा सा; पर मेरा अपना घर;
हो वह, बेहती नदी के किनारे पर ।

पेड़ पौधों के बिचमे, फूलों से महकता हो मेरा आंगन;
रंग बे रंगी फूलों से भरा हो मेरा सुहाना प्रांगण ।

पूर्णिमा का चांद खिला हो, तारों की हो बरात;
प्रीतम का हो साथ, तो और भी हसीन हो जाए रात ।

शांति हो, सुकून हो, हो दुनिया का सारा सुख;
सूर्य की कोमल रोशनी से दूर हो जाए, हर दुख ।

सादा खिलता रहे, मेरा यह, प्यार भरा चमन ।
जीवन में हमारे, सदा हो अमन ही अमन ।

कुके मेरे आंगन में कोयल, और सुरीला गीत गाए बुलबुल ।
मांगू विधातासे आज; कर लीजिए यह मेरी सारी दुआए कबूल ।

Armin Dutia Motashaw
जज़्बात

क्या कभी पूरी होगी मेरी,  वो अनकही, अधुरी बात ?

क्या होगी फिर से एकबार जिवन मे आपसे  मुलाकात ?

अनकही, अनसुनी वो प्यार से भरपुर बात;

जो लब पे कभी आई नही, वो अनकही  बात !

जो कह नही सका आपको, वही प्यार की बात

आँखे कहती थी  मेरे  दिल मे छुपे जज़्बात

पर  आपने अनसुनी कर दी मेरे दिल की बात !

पल दो पल की थी वो मुलाकात; अब है लम्बी जुदाई की रात

इतने खुशनसीब हम कहाँ, जो समज जाते आप मेरे  जज़्बात

काश मैं कह पाता आपको मेरे दिल की बात, या दिखा सक्ता मेरे  जज़्बात ।

Armin Dutia Motashaw
जन्म दिन मुबारक हो आपको

चलो, नेताजी सुभाष को याद करें हम ।

इस शूरवीर में भरपूर था दम ।

ताकतवर ब्रिटिश सरकार को हिला दिया था; क्या यह बात है कम ?

ऐसे नेताओं की आज कमी है, यह बात का है गम ।

करें श्रद्धांजलि अर्पण इस महा योद्धा को हम ।

चलो आज करें उन्हें कोटि कोटि प्रणाम हम ।

Armin Dutia Motashaw
मैं तो हूं तेरे भीतर,  तेरे साथ,  तेरे ही आसपास

मत बहा नैनों से निर, तेरे दिल में हूँ, कर ले
तू मेरा विश्वास

चली आ राधे,  छोड़ कर संसार; चल आज फिर एकबार रचाये रास

तेरी तड़प से मैं भी तड़पता हूं, न हो यू निराश

मैं तो हूं तेरे भीतर,  तेरे साथ,  तेरे ही आसपास

Armin Dutia Motashaw
खिलाने वाला खुद भूखा, यह कैसा न्याय
बिचारे खुद भुखसे बिलक बिलाक के करते हैं हाय हाय

नदियों का जल नहीं मिलता उन्हें, तरसते हैं, कब आए बरसात ।
जमीन सुकी, आसमान में नहीं बादल, चिंता रहेती है दिन- रात ।

चलिए किसानों को दे हम, हमारा थोड़ासा साथ ।
भारत के किसानों और वीर जवानों कि तरफ बढ़ाए अपना हाथ ।

Armin Dutia Motashaw
ज़रा जिने दो

अरे यारो जीने तो दो ;
इतना भी तंग न करो, खुल कर साँस लेने तो दो;

घर न सही, पर रोटी, पानी खाने पीने दो

हर चीज में मिलावट; हर चीज पर टैक्स; चैन की साँस लेने तो दो

Armin Dutia Motashaw
आजा के अब, और इंतजार होता नहीं है ।
जरा सोच तु, क्या इतना तड़पाना सही है ?
सालों बीते, कितने सावन आए और गए;
हम तो बस, तेरी जुदाई में, यूंही तड़पते रह गए ।

इतना भी निष्ठुर न बन तु, ओ मोरे पिया ;
क्यों इतने सालों से तड़पाता है मोरा जिया ?
इस बिरहन को युह न सता, थोड़ा प्रेम जता ।
कब दर्शन देगा मुझे, यह तो ज़रा मुझे बता ।

Armin Dutia Motashaw
जलता हुआ दिया

जले मन मेरा, जैसे जले एक छोटासा दिया

ओ पिया, काहे जलाए तु मोरा नन्हासा जिया

धुंडे तुझे पल पल यह मोरे नैन , ओ मेरे पिया ।

बस अब चुप चाप मैंने है आंसू पीना सीख लिया

फिर भी, तेरे बिना अब तक सीखा नहीं है जीना

बता जा आके एक बार, कैसे जियू तेरे बिना

कह दू तुझे, न दिल मेरा मजबूत है, ना ही सीना

मौत के पहले यह बुझता दिया चाहता है (जलना) जीना ।

Armin Dutia Motashaw
जाग

ओ मानव, तेरी गहरी नींद से तू  जाग ;

वरना नष्ट कर देगी तूझे यह आग

भस्म हो जायेगा तेरे सपनो का सुनेहरा बाग;

जो बनाया था तुने, करके मेहनत अथाग ।

पड जायेगा तेरे चरित्र पर एक  न मिट ने वाला दाग

अहम, अभिमान, खुदगर्ज़ी और  बेदिली त्याग;

वरना हो जायेगा तु फना, अब तो तेरी गहरी नींद से जाग ।

Armin Dutia Motashaw
जादू

छुआ नहीं तन को कभी,
छु लिया सीधे रूह को मेरे;

रातों को कभी सोने नहीं दिया मुझे, इस प्यार ने तेरे

ऐसे प्यार को क्या नाम दूं; जो छा जाए पूरे दिल में ;

खयालों में तु, सपनों में तु; तु ही है तन मन में

आहट होती है तो सोचू तु आया; धुंदे तुझे हरदम यह नज़र

प्रीतम मेरे,  तु ही बता यह  कैसा है प्यार का अनोखा मंज़र

दिल बेचैन, रूह बेचैन; बेचैन निगाहें मेरी;

हो गई है निराश, राह निहारते निहारते तेरी ।

मन जानता है आओगे न तुम कभी, पर दिल मानता ही नहीं;

क्या करू इस दिल का, जो सच्चाई समझता ही नहीं।

यह कैसा जादू किया तुने प्रीतम, मै रही न खुद अपनी;

पर मै क्या;  न राधा प्यारी, न मीरा रानी हो सकी तेरी पत्नी

Armin Dutia Motashaw
जादूगर

देखा नहीं दुनियाभर में, तुझसा कोई जादूगर ;

कर सकता है तु तो कुछ भी, पर चाहे तु अगर ।

पानी में तु एक भयानक आग लगा सकता है ;

और जलती धरापर पानी बरसाने की क्षमता रखता है ।

रेगिस्तान में बरसाए बूंदे तु, ले आए सावन;

या तो खिल जाए चमन वहा, या एक घना वन

खल खल बहे झरना, जहां कुछ समय पहले ही थी  सिर्फ रेत ।

या तो फिर अचानक गिराए जलती धरा पर, बर्फ श्वेत ।

पल भर में गुलाबो से भरा गुलिस्तां, बना दे तु रेगिस्तान;

या धराशाही कर दे महल या मीनार, जगा के तूफ़ान ।

आंधी में तु दीप जलाए और वोह बुझ भी न जाए

तेरे चाहनेसे पल भर में, मौसम बदल जाए ;

सावन की ठंडी फुहार, दिल में आग लगाए, या तो वो ही, आग बुझाए ।

सारी दुनिया में केवल एक; तु तो है बस एक महान जादूगर ।

झुक जाए तेरे सामने राजा महाराजा ओ का सर ।

Armin Dutia Motashaw
जिंदगी ओ जिंदगी

कभी फुलोंकी सेज बन जाती है जिंदगी;

कभी कांटो का बिस्तर हो जाती है यही जिंदगी ।

कभी खुशी है; तो कभी दुख है जिंदगी ।

हसाती है यह कभी तो कभी रुलाती है जिंदगी ।

कुछ भी हो, बहुत ही अजीब है यह जिंदगी

अंत तक समझ नहीं सकते है हम, आखिर क्या चीज़ है यह जिंदगी

Armin Dutia Motashaw
क्या इसी को कहते हैं जिंदगी ?

बस जिनके लिए , जी रहा हूं यारों

अपनेही कांटे चूभाते हैं, चहुं ओर से, प्यारो

कब तक सबको जिताते रहो, और कब तक खुद हारो

ये हार जीत की बाजिसे तंग हो गए हैं हम, यारो

   बस अब तो जाना है उसपार; बुलावा भेजो, ओ सितारों ।

ऐसा जीवन भी क्या जीवन, जो लगे एक बोझ

हमेशा मन ही मन करते रहो अफसोस

तिल तिल मरते रहो हरदम, हर  रोज़

गरीबकी किसी को न पड़ी है, न पड़ेगी;

उसका जीवन हमेशा बना रहेगा एक अनचाहा बोज

इस भरी दुनियां में मिला न सच्चा दिल्सोज

Armin Dutia Motashaw
जिंदगी ओ जिंदगी

कभी फुलोंकी सेज बन जाती है जिंदगी;

कभी कांटो का बिस्तर हो जाती है यही जिंदगी ।

कभी खुशी है; तो कभी दुख है जिंदगी ।

हसाती है यह कभी तो कभी रुलाती है जिंदगी ।

कुछ भी हो, बहुत ही अजीब है यह जिंदगी

अंत तक समझ नहीं सकते है हम, आखिर क्या चीज़ है यह जिंदगी

Armin Dutia Motashaw
झलक

तेरी एक झलक को तरस गए है यह नैन;

कटती नही यह नागिन सी लम्बी रैन,

पिया, तोरे बिना, जिया मोरा है बेचैन

किससे कहू मेरी यह दुख भरी बैन?

मचल रहे हैं तेरी एक झलकको, मेरे यह बेताब नैन ।

आ, आ भी जा, यूह न तडपा; चुरा के चैन

प्रितम, यह आँसू भी है, तेरी ही देन ;

तेरी एक झलक को, तरस गए है यह नैन ।

Armin Dutia Motashaw
झांको भीतर

अरे भाई, निष्ठुर हो के लोगों को  युह न मार

क्यों करता है दूसरों पे बिना सोचे समझे वार

कभी जरा अपने भीतर तो झांक मेरे यार ।

कभी देख ले करके सब से भाईचारा और प्यार

सुकून मिलेगा बहुत; कर ले तू, मेरा ऐतबार ।

भगवान कहे कोई, और कोई अल्लाह; जिसने रचा संसार

वो कहता है, सब है एक समान; बस तु सबसे कर प्यार ।

विनती करती हूं, कुछ भी करने से पहले, सोचना एक बार;

जवाब मिलेगा जब झांकोगे भीतर, अपनी अंदर एक बार ।

Armin Dutia Motashaw
झुका हुआ है शर्म से, आज हर शीश

आज दुख और शर्म से झुक गया है, हर भारतीय का शीश ।

पाकिस्तान क्यों पैदा किया गया, इस बात की है रंजिश ।

कब तक रहेंगे चुप; कब तक करेंगे शांति रखने की कोशिश ।

ऐसे तो मै हूं शांतिप्रिय; पर अब मा को चढ़ाने पड़ेंगे शीश ।

दुश्मन हमें कमज़ोर  समझता है, इस बात की है रंजिश ।

याद रहे, यहां प्रताप, शिवाजी बस्ते थे, कभी झुके न जीनके शीश

रानी लक्ष्मीबाई  थी बहादुरी की मिसाल, न्योछावर किए थे प्राण ।

वीर भगत सिंह ने भी हस्ते हुए त्यागे थे अपने प्राण ।

आज साम मानेकशॉ कि लगती हैं कमी, झुक ने न देते भारत माता का शीश

हमने अब तक क्यों चूड़ियां  पेहन रखी है, इस बात की है रंजिश ।

हर आत्मा है जख्मी, आत्मसम्मान है खंडित; उठाओ अपना शीश

चलो मिल कर करें, मुंहतोड़ जवाब देने की कोशिश ।

आत्मा पर न रहे बोज, दिल में भर दो जोश, उठाओ अपना शीश ।

आज छेड़ दी है मैंने, आत्मसम्मान में यह, बिना राग कि, बंदिश ।

Armin Dutia Motashaw
कल की हसीन शाम ढल चुकी
आज मानो रब की गर्दन है झुकी
उसका बनाया मानव रिश्ते नाते गया है भूल
पैसों, हीरो के सामने रिश्ते आज बन गाए धूल
मतलब में, खुदगर्ज़ी में, वो अंधा हो गया,
पैसों की चकाचौंध में मानो वो खो गया ।
उसे अपने पराए लगते है, और पैसेवाले अपने;
परयो के चक्कर में वो अपनोसे बेगाना हो गया ।
रब की गर्दन झुक गई, मेरा बनाया हुआ मानव, बेगाना हो गया ।

Armin Dutia Motashaw
ठोकर

कभी न आएंगे वो बचपन के दिन

कितना था हमें अपनो पे यकीन;

अब तो फिरते हैं अकेले, बिलकुल दिशाहीन

छोड़ कर चले गए वोह सब, बारी बारी

अब रह गए हैं सुके पत्ते और क्यारी

वक्त ने हमें जबरजस्त ठोकर है मारी ।

Armin Dutia Motashaw
ढलती जवानी

गम न कर, ढलती जवानी का ।

है यह सत्य, तेरी और मेरी कहानी का ।

बुद्धापा देख के गभराना मत तु ;

यही जीवन की रीत है, यह समज लेना तु ।

आंखे धुंधली हो जाएगी तेरी, डरना नहीं तु ;

कम सुनाई दे, तो भी गम करना नहीं तु ।

बूढ़ी हड्डियां भी देगी तकलीफ, सेह लेना तु ।

काम जो पल भर में कर लेता था तू ;

वहीं काम से अब थक जाएगा तू ।

समज शक्ति तेरी कम हो जाए तो, गम न करना तु।

प्रभुमय होके अब शेष जीवन बिताना तु ।

वह ही सहारा है, जब तक छूट जाए यह लरी,

देंगे वो सहारा तुझे, हर वक़्त, हर घड़ी ।

Armin Dutia Motashaw
तकदीर

भाग ले तु चाहे जितना, तकदीर और कर्म से तु भाग न पाएगा

ताकत और अक्ल लगाले चाहे जितनी, बच न तु पाएगा

सेहना है जो तकदीर में, उससे तु  कभी अपने आप को बचा न पाएगा ।

लोग करते हैं पाप और चतुराई, जर, जोरू और ज़मीन के लिए;

अपनो को देते हैं धोका, थोड़ी सी ताकत या दौलत के लिए

भले वोह अपनी मस्ती में जिए, पर कर्म तैयारी रखता है, उनको उलझाने के लिए ।

तेरी सोच संवार तु, बोली और कर्म संवार तु, अच्छाई का रास्ता अपना तु

शब्द शीतल जल जैसे होने चाहिए, अग्नि बाण का प्रयोग करना नहीं तु ।

कर्म भलाई के कर; कमसे कम ऐसे, हानि किसी को पहुंचाना नहीं तु ।

जो लिखा है तुने अपने कर्मो से, अपने ही हाथों से; उसे तु न मिटा पाएगा

अपने हाथों लिखी हुई तकदीर से उलझना नहीं, उसे तु बदल न पाएगा

बस कर्म सुधार; और भगवान के हाथो में, सौंप दे तेरी डोलती हुई नैया ।

Armin Dutia Motashaw
आज फिर तड़प ने लगा है दिल, आज फिर तेरी याद है आयी ।
मुरझाया है चेहरा, आंखो में है आंसू, और सुनी है मेरी कलाई;
क्या करू, दुर दुर तक दिखती नहीं मुझे, तेरी परछाई ।

करे मुझे परेशान, चाह तेरी,  तेरी याद, और यह तन्हाई ;
बरसों से बैठी है यह विरहन, तेरी राह देखे;  बाहे है मैंने फैलाई;
चारों तरफ़, जहां बी जाऊ, एक उदासी है छाई ।

तड़प मेरी आके देखभी जा पिया; दुर कर अब यह तन्हाई
थक गई राह निहारते, तेरी मीरा, ओ मेरे कन्हाई ।
अब तड़प सही न जाए, तुझ बिन अब रहा न जाए, आ भी जा ओ हरजाई ।

Armin Dutia Motashaw
ओ कान्हा, तूने राधा को रुलाया; और रोई मीरा भी।
ओ निर्मोही, दोनों थे तेरे चाहनेवाले;
मोती, और हीरा भी।
राधा के साथ रास रचाया और मीरा को बनाया रानी से जोगन,
ऐसा भी क्या जादू किया तूने दोनों संग, ओ मेरे मनमोहन !
तड़प उठे दोनों तेरे प्यार में, पर जानी न तूने उनकी पिड;
कब से बन बैठा तु इतना निष्ठुर; अनदेखी की तूने उनकी पीड ।
तु कैसे जानता उनकी तड़प; भीड़ बहुत थी तेरे आसपास ।
तड़प तो वो दोनो जाने, ओ द्वारकाधीश, जग करें उन पर परिहास ।
जमुनाजी का सुक गया नीर, तेरे वियोगमे कान्हा ;

फिर भी कभी हुआ न तेरा व्रज में  वापस आना ।

राधा वियोग में तेरे बहा न सकी आंसु, बस जी रही थी जहर पी के ;

सोच रही थी, क्या करेगी वो तुझ बिन यु, विरह में जी के !

तेरे चाहने वालों को, यूह न तड़पा ओ कान्हा,

तुझे राधा और मीरा के खातिर, वापिस पड़ेगा आना ।

करेंगे नहीं वो तेरे लिए, मुनिवरो जैसा जप तप ;

ऐ मोहन, क्यू दिखती नहीं तुझे प्रेमिजनो की यह तड़प?

वियोग सहना नहीं है आसान, जाती है वियोगिकी जान

और क्यू देखे जाता है तु ; यू बन के अंजान ???

ऐसे,  प्रेमिजन को तड़पाना अच्छी बात नहीं ;

भगवान हो कर, क्या तु कर रहा है बात सही ???

Armin Dutia Motashaw
तु कहां

दिल में तु, दिमाग में तु,

जान मे तु, जहान बी तु

जमीं भी तु, आसमां बी तु;

जागते  देखूँ तुझे, सपनों में तु;

यहाँ वहाँ, हर जगह तु ही तु!!!

तु  कहां, मै  यहाँ, तेरे बिना मै कुछ भी नहीं

फिर भी, तु नही है मेरा, ऐसा क्यूँ???

Armin Dutia Motashaw
तुम्हारी

संसार छोड़ कर, मीरा बनी तोरी दासी,

राधा भी जनम भर रही प्यासी,

तेरे बिना यहां भी छाई है उदासी

मै भी हरी दर्शन की हूं प्यासी ।

हर कोई तुम पर है वारी, मेरे  गिरिधारी

दर्शन कब दोगे, नज़र कब आओगे मुरारी

याद रहे कान्हा, मै भी हूं तुम्हारी;

एक बार, बस एक बार पुकारो, कहके "प्यारी"

Armin Dutia Motashaw
तू गया

तू गया, गया संग, मेरे दिलका करार

तू गया, तो गए तुझ संग सब साजसिंगार

तू गया तो रूठे मुझसे मेरे गीत संगीत

यह तूने क्या किया, ओ मेरे मनमीत ???

जानेवाले के संग कोई जा नहीं सकता

मौत के साथ कोई लड़ नहीं सकता

इंसान भगवानके सामने हो जाता है मजबूर

लोक भी बदल जाते है; हो जाते है दूर

रोने के लिए अब कंधा भी नहीं मिलता

रिश्तेदार कतराते हैं; सच्चा रंग अब है खिलता

फितरत बदलने लगती है, अब हम लगते हैं बोझ

इतने सारे लोगों में, मिल जाते है एक दो दिलसोज़

यही है जमानेकी रीत, जिंदा रहनेवाला मरता है तिल तिल

बस अब यही है तुम्हारी नई मंज़िल

Armin Dutia Motashaw
तू  बूला

हे  बंसी बजैया, भले  दुनिया तुझे पूजें ,

पर  यूह  सब को छोड़ना क्यूँ तुझे सूझे?

तेरे बिना जैसे यहाँ सब दीये है बुझे ।

क्या ठीक है यह तेरा सबको रुलाना ?

रोते हुए बृन्दावंन मे सब को छोड़कर चले जाना,

और फिर लौट के वहाँ कभी न आना ।

यशोदा मैया रोये, नंद उदास, रोये गोप गोपियां

सोच, राधिका ने कैसे यह जुदाई का जहर होगा  पिया

हर कोई तेरे वियोग में तडप तडप के है  जिया ।

तू क्यूँ बन गया ऐसा निर्मोही, निष्ठुर, नीर्दयी?

बता  जरा, उनके लिये, तेरी प्रित कहां गई ?

बेजान सी राधिका, बिरह मे, तुझ बिन है तडप रही

"आन मिलो श्याम, सुना सुना लागे नंदन वन ;

कंहिभी, कोई काम मे, किसिका लागे न  मन ।

लुट ली तुने हमारी  खुशी, बेजान है तनमन। "

बेबस राधिका को भाये न सावन का झूला;

आ, एक झलक दिखा, इतना न सब को रुला;

बंसी की धुन सुना के हमे तू फिर से एक बार बूला।

Armin Dutia Motashaw
तेरा खत

बरसो बाद, आया मेरे पिया का, आज पैग़ाम ।

छलक रहा है खुशियों से आज मेरा जाम ।

पाव जमीं पे टिकते नहीं, अब क्या होगा अंजाम ।

लगता है सब कुछ खास, रोज जो लगता था आम।

चुमु उस खत को, जहां लिखा है पिया ने अपना नाम ।

या फिर दिल से लगा लू; आखिर अनमोल है इसका दाम ।

भेजु पिया तोहे मै अपना प्यार और सलाम ।

करू दुआ, सदा छलके तेरी खुशियों के जाम ।

Armin Dutia Motashaw
तेरा मेरा

ऐसा क्या देखा तुझमें, दिल हो गया तेरा;

और उसपर भी, मानो, सारा दोष  है बस मेरा ।

किस्मत का है यह खेल सारा, दोष न तेरा है न मेरा

दिल पर मेरे , न काबू रहा मेरा, फिर कैसे कहूं दोष है तेरा

लाखो लोगो में, मैंने तुझे ही क्यों चाहा;

बस तुझे ही क्यों इस दिल ने सराहा ?

क्या इस पसंद के लिए, तुम मुझे दोगी दाद ?

या करोगी इस बात के लिए, औरो से मेरी फरियाद ?

प्रियतमा तुम मेरी हो न हो, मै तो हूं बस तेरा

इस बात को तुम मानो या न मानो, प्यार तो सच्चा है मेरा ।

Armin Dutia Motashaw
तेरी लीला

मांगा था प्यार, पर वोह उनसे नहीं मिला ;

नसीब में लिखी थी तन्हाई, तो किससे करे हम गीला !!!

ईर्षा, नफ़रत का चलता ही रहा सिलसिला ।

ऐ साकी, प्यासे को तूही आज जाम पीला;

नशेमें कुछ पल मिले चैन; देखे तेरी भी लीला !

बहुत चाहा पर हमें तो अपना कोई भी न मिला !

Armin Dutia Motashaw
तेरे गुण

सुझे न क्या लिखूं, इस लिए बड़ी देर मैंने लगाई;

अब तक हाथ पकड़कर बहुत कविताएं तुने  लिखाई ;

पर ऐसी भी क्या रुसवाई, की खुद के लिए, कुछ न लिखवाया, ओ मेरे साईं ;

आखिर आज, तुने, खुद के लिए, मेरे हाथों से, एक  कविता है लिखवाई

कान्हा तो है नटखट; पर आप क्यों बन बैठेथे हरजाई, यह बात समझ में न आई ;

दुहाई हो दुहाई, मेरे साईं , अब आखिर, आज वो रात अायी;

जब तुने मेरे हाथो से, तेरे लिए, एक कविता लिखवाई।

एक प्रेम भारी रचना, जो तेरे लिए ही लिखी और है गाई ।

प्रेम  आदरभरे वंदन तुझे, ओ गुरु, ओ पिता, ओ साईं ।

खुश हूं आज मैं बहुत; आखिर तुने, तेरे लिए, मेरे हाथों से, एक कविता लिखवाई ।

गुण तेरे अपार, लिख नहीं पाउगी; परबत तु, मै हूं छोटिसी राई ।

तेरी महिमा अपरंपार, बया कर नहीं पाऊ; मुझमें प्रेम की अखंड ज्योत तुने है जलाई;

श्रृद्धा और सबूरी की, अनन्य ज्योति, मेरे जीवन में, तुने ही है जगाई ।

Armin Dutia Motashaw
धुन न सुजे, न शब्द; न है मीठा गला, तो तेरे गुण, भजन में समाऊ कैसे

तेरे दरबारसे बुलावा न आए जब तक, तो वहां आऊ कैसे, दर्शन पाऊ कैसे  

तु करता, तु धरता, तु ही हमारे भाग्य का विधाता, तो इजाज़त बिना, द्वार तेरे आऊ कैसे

सुख करता तु, दुःख हरता तु, तो मै सुख - दुःख के फेरो से उभर आऊ कैसे

तेरी बातें तु ही जाने, मुझे समझ न आए वो; तो औरोको समझाऊं कैसे

नैया मेरी बीच भंवर में, पार लगे या डूब जाए, यह मै जानू कैसे

छोड़ा सब तुझपे, तु ही संभालना मुझे, मै अपनी नैया, पार लगावू कैसे

Armin Dutia Motashaw
तेरे बगैर काली अमावस्या की रात है इतनी लंबी और गहरी

दिपावलीके दीप भी रोशन कर न सके उसे, इतनी गहरी

Armin
तेरे बिन जीना भी क्या जीना;
आजा, के दिल ने तुझे हर पल याद किया।
न कोई खुशी, न बहार, तेरे बिन बस एक बुत बन के, बेजान जीवन जिया।
जान बूझकर जीवन भर खुशी खुशी, तेरी जुदाई का, हसकर जहर पिया ।

हर रात ने, शीतल चांदनी ने भी जलाया; स्वप्नों में भी बुलाया पर स्वप्न ही नहीं आया ।
स्वप्न आता भी तो कब और कैसे, नींद ने है नहीं मुझे इस सुख से नवाजा ।
तेरे बिन जीना, क्या खाख है जीना; पल भर हस न पाना, क्या इसे कहते हैं जीना ?

Armin Dutia Motashaw
मत पूछ हम तुझ बिन जिए तो कैसे जिए !
जिंदा है आज भी, तो बस तेरे ही लिए ;
चाहते है इतना, बस तु सादा खुश रहना प्रिये ।

Armin Dutia Motashaw
आज भी यह दिल धडकता है तेरे   लिए

बता जा,  तेरे बिना, हम जिए तो कैसे जिए

रोशन है तुझसे ही , इन बुझती हुई आखो के दिये

पर बता जा, तेरे बगैर जिए तो हम कैसे जिए!!!

दुरी का दुख सहन नहीं होता, बैठे हैं जुदाई का दर्द लिये

किसे पूछू, यह दर्द, यह जुदाई, मालिक ने क्यूँ दिए  

अरमान बुझ गये, फिर भी बैठे हैं हम एक आश लिये

कितने सावन आये और गये, बस तुने अश्रु और दर्द ही दिए

फिर भी, पता नहीं, क्यों बैठे हैं तुझ से  जुठी उम्मिद लिए

कभी आ के बता जा, यह कातिल  जुदाई के साथ हम कैसे जिए ।

Armin Dutia Motashaw
दर्द कहां किसीको भाते हैं !
फिर भी वो जीवनमे आते हैं ।

कुछ दर्द बड़े कीमती और न्यारे है
कुछ दर्द जिगर के करीब और प्यारे है।

सोचा था अमन चमन और प्यार में जीवन बसर करेंगे;
सोचा न था, तुझ पर दिल लूटा के तुझ पर यूह मरेंगे ।

मिला न तु, तो दर्द तेरा अपना लिया मैंने;
जीवन भर याद रहे, ऐसी सौगात दे दी तुने ।

प्यार छुपता नहीं, छुपानेसे, यह तो था पता;
पर दर्द तेरा, दिल में बसा लेंगे, यह न था पता ।

अब तो जिएंगे उम्र भर,  इस दर्द के साथ;
और मरेंगे भी, लेकर यही एहसास;
खाली हाथ ।

Armin Dutia Motashaw
बड़ी लम्बी है मेरी यह, प्यार कि दास्तान ।

सालों पहले चला था,  नैनो से एक तिरछा बाण ।

नज़र मेरी पड़ी उनपे, और दिल निकल गया हाथों से ।

बस उस दिन से, दिल गवाया व्यर्थ बातों में ।

सपने देखे दिन में, रातो कि नींद भी गवाई मैंने ।

एक तरफा प्यार निभाया मैंने सालों से ।

करू क्या, देखते ही देखते, मै रह गई अकेली जीवन में ।

सुनाऊं किसे यह मेरे जीवन की दास्तान ।

बहुत दुखी हो गई है मेरी नन्ही सी जान ।

Armin Dutia Motashaw
किसे सुनाऊं मैं, दिल की दुखभरी दास्तान
संग मेरे रोता भी नहीं अब तो यह आसमान
बस जिया रोता है, और पीड़ित है जान
अकेली रोती हूं, किसे सुनाऊं अपना हाल; हूं मै बेजुबान
दर्द से जलता है जिया, पर  जाती नहीं है जान ।
दुर दुर तक रोशनी नज़र न आए, चांद बिना का है आसमान।
जाऊ तो जाउ कहां मै, कठोर है सारा जहान

Armin Dutia Motashaw
दिल की लगी

दिल की लगी , लगी थी पहले लोगोंको एक बचपनकी दिल्लगी

पर थी वो बहुत ही गहरी; थी वो एक खाई जैसी, कुछ अधिक ही गहरी

वो चोट इतनी थी गहरी की दिल पर ही नहीं, दिलकी गहराइयों तक थी लगी

बचपन की मुहोबत थी वो, मेरा पहला प्यार थी वो; पर मेरी पुकार शायद थी न इतनी गहरी;

इस लिए, सुनी नहीं तूने मेरी दर्दभरी आवाज, मेरे गीतों में सुनी न मेरी फरियाद

क्यों गिरिधर; सारी दुनियाके रखवाले होकर, तूने इस मीरा को ही क्यों ठुकराया

Armin Dutia Motashaw
दिल के  टुकडे

'गर तु कहे भूल  जा, तो क्या यह हो पायेगा हमसे ?

कैसे छूटेगा यह प्यार, यह प्रेमभरा  नाता तुमसे ?

तो क्या हुआ, गर तुम नही हो हमारे ;

दिल टुट गया तो क्या; यह टुकडे भी है तुम्हारे !

कभी शिकायत की नही, और ना हम करेंगे;

बस चुपचाप यूही  तुम्हारी याद मे  जिएंगे और मरेंगे ।

शीशा जब टुट जाता है तो दिखते हैं एक के  अनेक;

बस वैसेही, यह टुटे  दिल के टुकड़ोमे तु है; हर टुकडे में एक ।
'
दिल मे जो बसे हुए है, उनका अस्तित्व मिटता नही कभी भी

दिल के हर टुकडे में बसे हुए हो तुम अभी भी ।।।

Armin Dutia Motashaw
देखते ही तुझे हम अपना यह दिल गए हार ;

लोग शायद इस ही को कहते है प्यार ।

पर तुझसे इस प्यार का कर न सके इज़हार

दिल की बात दिल में रही, हुआ न कभी इकरार;

पर, फिर प्यार कर न सके हम कभीभी दूसरी बार

अगर इसे जीना कहते है तो जी रहे है, बेह रही है समय की धार ।

बस कन्हाई , तुझे याद करते हैं बार बार ।

Armin Dutia Motashaw
दिल लगाने की सज़ा

यह क्या किया तुने मेरे मालिक, पल भरमे मेरा दिल हो गया पराया ;

उसके बिना बेजान हो कर जी रहा हूं; मेरे ही दिल ने मुझे हराया ।

प्यार हो जाता है यह सुना था; लेकिन इस उलझन में तुने, मुझे क्यू भरमाया

यह दिल अब अपना भी नहीं, और नहीं है उनका, हालात से मै हूं घभराया ।

दिल मुफ्त में दे दिया उनको; ऊपर से सज़ा मिली मुझे, दिल लगाने की

स्थिति बहुत ही बुरी है, इस बेकसूर गरीब मुफलिस  बेगाने की ।

कुछ तो बता, पूछ पूछ के थक चुका हूं मैं, ओ मालिक मेरे;

क्या इस दिल लगाने की भी  सज़ा होती है दरबार में तेरे ???

Armin Dutia Motashaw
दीदार

जब होते हैं चर्चे प्यार पर,
नाम एक ही आता है लब  पर ।

प्रीतम मेरे, यहां तो, शमा खुद मरती है, अपने परवाने पर ।

तस्वीर तेरी बसा लि है हमने, दिल में, जिगर में ।

अब तो आंखे जागते भी, देखती है तेरे ही सपने दिन में ।

दुख तो है इस बात का, दिखता नहीं है मुझे प्यार इनमें ।

जैसे आंखे है दीवानी मेरी, काश आंखे होती, दीवानी तेरी;

तो देख सकती थी मै भी वोह प्यार; बदल जाती किस्मत मेरी ।

अब तो यह बूढ़ी हो गई है, दिखता है धुंधला सब

न जाने, यह बंध हो जाए कब, मुझे मौत आए कब

चाहत है, तमन्ना है, तेरे दीदार की, तड़प है तेरे प्यार की।

आ जा, आ भी जा, करू तेरे दीदार, देखूं राह तेरे स्वीकार की ।

Armin Dutia Motashaw
दीपावली

दिल जले तो धुवा दिखता नहीं, होता है, चहूं ओर अंधेरा ही;
दिया जले तो धुआ भले हो, वोह फैलाता है, प्रकाश भी।
चलो बंध करे, जलाना अपना जिया;
और दिल का अंधेरा दूर करे, जलाए एक दिया।

दीपावली में, दुर करे दिल, घर, और देश का अंधेरा
बहुत सालोसे बैठा है ये दिल में, बनके गेहरा।
मिटा दो इसे हमेशा के लिए, दिलसे कर दो इसे दुर
रात को बदल दो भोर में, हो सकता है यह दीपावली की रोशनी में, जरूर ।

Armin Dutia Motashaw
कैसे कहूं मै दिल की बात, सूझते नहीं कोई बैन
देखते ही तुझे, दीवाने हुए है, मेरे नैन
उस दिन से अब तक, खो गया है मेरा चैन
बस आती है तेरी ही याद; दिन हो, या हो रैन
तेरे प्यार ने, तेरी प्रीत ने, किया है मुझे बेचैन
इस संसार में, क्या यही है प्रीतम की दैन ?

Armin Dutia Motashaw
देव दीवाली की पूर्णिमा

ए चांद, आज तुझे देखते ही चढ़ रहा है मुझे मदहोशी का नशा

पुर बहार में है तु, और समुंदर के ऊपर, बादलों में है जा बसा;

बड़ा खूबसूरत लगा तु,  बादल की ओट से जब तु हसा

बनाया है तुने आज बड़ा ही दिलकश और नशीला नज़ारा;

खुले नील गगन में आज मुझे नहीं दिखता है, एक भी सीतारा ।

यहां से लगता है तु बड़ा तेजोमय, खूबसूरत, और प्यारा ;

तेरी कला बनाती है इस जग को एक अति सुंदर खेला ।

पर पुछु तुझे, " क्या तु भी मेरी तरह है उदास और अकेला" ?

पिया बिना हूं मै उदास; भले जग है लोगो से भरा एक मेला ।

चांदनी से तेरी, करते रहना इस धरा को सुंदर और शीतल

तेरी चांदनी से खिलते रहे यहां सुंदर सुगंधित कमल

मिलता रहे हमें तेरा नज़ारा और शीतलता का फल ।

सदा करना तु  प्रेमीओका जीवन मधुर और सफल

Armin Dutia Motashaw
"अनार", इतना समझ लेना, दिल से दी गई दुआ हमेशा रंग लाती है;

और आह भी कभीभी खाली नहीं जाती है।

Armin Dutia Motashaw
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