Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
निशानी

जब गया तूं, कभी भी न लौटने के लिए, तो मोहन, एक  निशानी तो  छोड़ जाता !

नैन बिछाये बैठे रहे, मेरा प्यार, शायद तुझे, इस ओर  खिंचके लाता  

न कोई निशानी छोडी, जिसे हम दिलसे लगाये रखते; बस याद में तेरी रोते रहे

पर तूं तो लौटा ही नहीं, और हम आश लगाये बैठे रहे, बस  बैठे ही रहे

तूं कभी वापस न आया; मौसम बदले, सालों बीते, पर तूं लौट के न आया ।

जीना चाहते न थे, पर जीना पडा; तो तेरे मोर पंखको हमने सिने से लगाया ।

वही तुझे बहुत प्यारा था, तो बनाके उसे  तेरी निशानी,  हम वही उठा लाये

चाहते थे आँसू बहाना पर वोह भी नहीं किया; कही जमुनजी में, बहाड़ न आ जाये!

क्यूँ छोड़ के यह प्यार भरा संसार, बन बैठा तूं द्वार्काधीश, दुर जाके मुझसे ?

पर मोहन मेरे, इस एक पंख के सहारे, यह तेरी राधिका रह नहीं पाती है दुर तुझसे ।

लगाये बैठी हूँ सीनेसे, यह पंख, जो है तेरी निशानी, जो है मुझे जान से प्यारी ।

भले तु माने न माने, बडी मजबुर है यह तेरी राधिका, कब तक चलाएगा तूं, यूह दिल पे मेरे आरी?

Armin Dutia  Motashaw
बस तुमसे नैन क्या मिले, अपने आप से पराए हो गए हम

नैन मिले, तो अपना ही चैन गवां बैठे, अपने ही हाथों से  हम

खुशियां आपके लिए छोड़ के, अब, अपना लिया है हमने गम

पर शायद इतना त्याग भी मेरे खुदा को लगता है कम ;

मिलती नहीं एक झलक भी आपकी हमें, इस बात का है बहुत गम

बेखबर हो तुम, और झिझकके रह गए हम, इसी लिए दूरी कभी हुई न कम

ऐसी भी क्या रुसवाई  तकदीर की, समझ पाए नहीं हम ।

बेरुखी तुम्हारी, चिर देती है सिना,
मुश्किल है जीना; और क्या कहे हम

Armin Dutia Motashaw
नैना

सपनों से भरे थे यह सुंदर, सपनो से भरे नैना

कैसे बयां करू मैं, न शब्द है, न सुझे कोई बैना ;

पर सपने सारे हो गए हैं चूर, खो गया है मन का चैना

अब जागती हूं मैं, सारा दिन और सारी सारी रैना

चुपके चुपके, रोते हैं यह एक बार के हस्ते हुए नैना ;

हुआ करते थे कभी यह एक खूबसूरत चेहरे का गेहना ।

Armin Dutia Motashaw
🪁🪁🪁🪁🪁

नीली, पीली,  लाल, सफेद, गुलाबी, केसरी, रंगबिरंगी होती हैं  य़ह नाजुक सी पतंग

पर मचल कर छुना चाहती है बादल को, आसमान को; उसे देखने वाले भी रह जाते है दंग

इस नाजुक सी पतंग को,  उसकी डोर को,  रखनी होगी मजबूती से तंग;

और कभी कभी देनी पड़ती है, मांजे को ढील,  तभी जीती जाती है यह बाजी, यह जंग

मेहनत करनी पड़ती है, ज़हमत उठानी पड़ती है, बैठे बिठाए काम नहीं होगा, छोड़ना पड़ता है पलंग

उड़ती है ऊंची हवा के साथ पतंग, पर डोर काटते ही गिर भी जाती है, " बच्चे, सावधान ", कहता है यह मलंग

Armin Dutia Motashaw
दर्द सेहना लिखा है तकदीर में, और कितना ?
दाता, सपनों में आके कभी, बता जा जरा इतना ।
सेह नहीं मै पाऊ, तु देना चाहता है जीतना ।

जीवन मेरा, अब बन गया है एक व्यंग।
आ गई हूं मै इस उदासी से, इस जीवनसे तंग ।
तोड़ दे डोर, आज़ाद हो जाएगा यह बिचारा पतंग ।

Armin Dutia Motashaw
पल दो पल का है सवाल

ईतना भी तू  मशरूफ न हो, के अपनोके लिए तेरे पास एक पल भी न हो

ऐसा न हो, जब सिधारेंगे वो स्वर्ग तब तुझे उनके लिए रोनेकी भी फुरसत न हो ।

जो रिश्तोंको एहमियत न दे, प्यार और सन्मान न दे, वो बहुत पछताता है ।

जो तुम्हारा अपना है, उसे थोडासा अपनापन दो, तुम्हारी एक कीमती पल दो

उसके दुखमे सांत्वना दो, बस पलभर हाथ थाम लो ।

पैसों का नाम आते ही रिश्तेदार और दोस्त, डर जाते हैं,

पैसे भले मत दो, सिर्फ दो हिम्मतभरी बातें तो करो ।

साथ निभाओ, जब साथकी जरूरत हो, इतना भि मशरूफ मत रहो।

Armin Dutia Motashaw
एक जौहरी, हीरे  मोती का मूल्य आंक सकता है;

लेकिन एक इंसान के मन को कोई पहचान नहीं सकता ।

" अनार ", तू नाचीज़, क्या पहचानेगी, कोइ संत शायद पहचान सकता है।

Anar
पहली नज़र

बस तेरी एक झलक, और प्यार हो गया,

पहली नज़र में प्यार हो गया

पल भर में दिल बेकरार हो गया

अरे रे यह क्या हो गया, कैसे हो गया

बस आंखे मूंद लू तो दीदार हो गया

अपना ही दिल पल भर में, पराया हो गया

बस नज़र मिलते ही, दिल का करार खो गया

हाय,  पहली नज़र में ही प्यार हो गया ।

Armin Dutia Motashaw
दिमाग मेरा, तो कहता है, वो है  नही तेरा;

पर क्यूं  उम्मिद  नही छोड़ता है यह दिल  मेरा???

प्यार तो नही मिला, बस उसने मुझे उल्ज़ाया और भरमाया

थक गयी हु  यह  कश्मकश से; पता ही नहीं  की तू अपना है या पराया ;

अब तो दुख, दर्द, पीडा बन गई है मेरि सहेली

कोई तो बतलाये; कोई तो सुल्ज़ाए यह पहेली ।

Armin Dutia  Motashaw
पिया मेरे,

पिया, बनो न इतने बेरहम और निष्ठुर,

नाजुक दिल, दुखी हो के, टूट जाता है ।

शब्द बाण होते हैं बहुत ही कातिल; बड़े ही क्रूर;

दो मीठे शब्द सुनने से दिल पे सुकून छा जाता है ।

प्रीतम कभी तो प्रेम भरे शब्दों के फूल बरसाओ

हमें इतना भी न तड़पाओ और तरसाओ ।

माना के प्रीत मैंने की, आप भा गए; इसमें मेरा क्या कसूर ?

प्रेम न सही, पर इतने क्यों हो निष्ठुर ?

इतना भी न करो गुरूर अपनी बंसी पे;
छेड़ो मीठे सुर ।

माना आप हो राधिका के पर इस में मीरा का क्या कुसूर ?

मन मोह लिया इसे हो गए मनमोहन जरूर;

पर तरसाओ न मुझे युह रेह कर मुझसे दूर दूर ।

Armin Dutia Motashaw
पी घर आए

खुश हूं मै आज सखी, मोरे पीया घर आए;

ओ सखी, वर्षों बाद, पी के दर्शन मैंने पाए ।

सालों की अमावस्या के बाद, आज माहताब मुस्कुराए;

बदरी से निकल कर, तारो के साथ, गगन में छाए ।

पिया चलो, आज तुम संग, हम रास रचाए;

बचपन के दिन याद करके मुस्कुराए और
गाए ।

मोरे आंगन में आज फुल न जाने कहां से मुस्कुराए

बहार आई पतज़ड़ के दिनों में, क्यों की, पी घर आए ।

दिल में जो हो उमंग, तो पतज़ड बहार बन जाए ।

खुश हूं मै अधिक सखी, की सालों बाद, मोरे पी घर आए ।

Armin Dutia Motashaw
पी से मिलन की रात

झगमगाते तारों की जैसे आज निकली हो बारात

आधा चंद्रमा खेल रहा है छुपा छुपी बादलों के साथ ।

बड़ी ही हसीन, बड़ी सुहानी है, आज की यह रात ।

बड़ी मुद्दतके बाद आयी है, यह मिलन की रात ।

ठंडी हवा चल रही है, मेरे नरम गालों को सेहलाते हुए;

मेरे घने काले  जुल्फों को, बादलों की तरह बिखराते हुए ।

पायल की रूम झुम, नैया में संगीत बिखेर रही है;

धड़कते दिलों की  धड़कन का संगीत हवाओं में गूंज रहा है ।

और हौले हौले, छोटी छोटी मौजो के संग खेलती नदी बेह रही है ।

दिल झूम रहा है, शराब बिना शबाब छाया हुआ है।

आंखो में मस्ती भरा खुमार है; नशा छाया हुआ है ।

पी से मिलन होगा आज; नज़ारों में जादू छाया है;

आज मुहसे निकलेंगे न कोई अल्फ़ाज़; बस नशा छाया है ।

सालों के इंतज़ार बाद, आखिर आ ही गई, पी से मिलन की यह रात ।

आए हैं मेरे पीया चांद बनके, लेके तारों की बारात ।

Armin Dutia Motashaw
पुकार

खोल दे हे प्रभु मेरा अंतर्मन, सुन ले मेरी दर्दभरी पुकार;

दुख अब सहा नही जाता,  स्वीकार ली है मैने अपनी हार ;

सहनशक्ति हो रही है क्षीण, तड़पु मैं, जैसे तड़पे जल बिन मीन

शक्ति दे मुझे प्रभु, हुँ  मैं घायल; कर दे मुझे तेरी भक्तिमे लीन ।

मार्गदर्शन नित्य हो तेरा, तेरे प्रेमभरे हाथोंमें, सदा हाथ हो मेरा

उस पथ पे चलुं, जो बनाया है तुझने; हर घड़ी, हरदम रहे सहारा तेरा !

दिल मेरा है परेशान; आत्मा है अशांत, दिखा मुझे वो शांति की राह;

चारों ओर हो असीम शांति, कभी न सुनाई दे किसीकी, या मेरी भी कोई आह

हे प्रभु! अब तो तुंही है सहारा, तू ही कृपालु, तुंही मेरा है बेली

भले दुनियां हो एक भरा हुआ मेला ; पर हो गई हूं मैं, इस पूरी दुनिया में अकेली

कर कृपा ओ दीनदयालु ! हे कृपालु ! ओ सारे जग के स्वामी, हे अंतरयामी

सुन ले इस दिल की आह मेरी पुकार, देख ले मेरी तड़प, भर दे तेरी हामी ।

Armin Dutia Motashaw
पुकार

कान्हा, इस तरह, यूहीं  जितेजी  मुझे न मारो

दूर से ही सही, मुझे कभी तो पुकारो ।

आवाज़ सुनने को तडप गये है कर्णपट मेरे ;

क्यूँ मुख से अलफाज़  नही निकलते तेरे ?

न बन्सरि की मीठी  धुन बुलाये, न तेरे मधुर गीत ;

मेरी पायल है घायल, न तान, न जान, और  न संगीत ।

आज तो तेरा हर काम,  तेरे हर बंधन तोड दे,

मुझसे, तेरी राधिका से, एक बार फिर नाता जोड़ ले ।

यूह न मोहन मुझे तडपा, न तरसा;

तेरे प्रित की, तेरे प्रेम की बारिश बरसा ।

सुन ले तू पुकार मेरे दिल की, तुझे हर धड़कन पुकारे

कान्हा, तुझे तेरी राधिका, रो रो कर बुलाये ।

Armin Dutia Motashaw
देश पुकारे तुझे, जरूरत है आज मुझे हर भारतीय की।


तो चलो हम मिलके यह कर दिखाए


देशके खातिर कुछ कर दिखाए

न दंगे हो, न झगड़े हो

सब मिल कर सुर में गाए,

चलो आज हम सब कुछ कर दिखाएं

Armin Dutia Motashaw
पूछती हूं

आज तो पूछ ही लेती हूं तुझसे के तुने क्यू बनाया प्यार

और वोह भी ऐसा, जिसका कर न सके लोग इज़हार

हो तो जाता है पल भर में यह, पर जवाबमे मिलता नहीं इकरार

ऐ मालिक मेरे, इस प्यार ने कर दिया है लोगो का जीना  दुश्वार

जीवन भर तड़पते है, घूमते हैं बेचारे बन के बेकरार

बिना खड़ग, बिना गोली, यह करता है सीधा दिल पे वार

बर्बाद हो जाता है इंसान, हो जाता है अपने ही शरीरसे तड़ीपार

प्यारमें, बन के औरोका, खुदसे हो जाता है पराया; भूल जाता है संसार

जवाब देना ही होगा तुझे; तुने क्यू बनाया यह एहसास, जिसे लोग कहते है प्यार ???

Armin Dutia Motashaw
जैसेही पैसोकी कीमत बढ़ गई, जुबाकी कम हो गई।

पैसोकि की खनक से, जुबां की आवाज़ नम हो गईं।

अब शोर शराबा भी पैसा करता है,

और, लोगोको चुप भी पैसा ही करवाता है।

Armin Dutia Motashaw
प्यार  का  सुरुर

याद तेरी दिलाता है, यह हसीन चांदनी का  नूर ।

भले तु है मुझसे मिलों दूर, सचमे, बहुत ही दूर ;

तेरी यादमें पुंज लेती हूँ चांद को, यह है मेरे  प्यार का सुरुर

काश मेरा प्यार, कर सकता था तुझे, मिलने के लिए मजबुर

देखना  प्रितम, याद रखना यह बात, एक दिन ऐसा होगा जरुर !

अगर ऐसा हो जाये, तो मुझे मेरे प्यार पे होगा गरूर ।

Armin Dutia Motashaw
प्यार मरता क्यू नही

प्यार अमर है, वो कभी भी मरता नहीं,

जैसे, राख् में  जलती रहेती है सदा, एक चिंगारी

प्यारको दफनाया जाए अगर, तो माटी जी उठती है

जलाने के बाद भी, राख में चिंगारी भड़कती रहेती है

सच बात है यह, के प्यार कभी मरता नही;

उसे मारने की, लाख कोशश करे कोइ ।

बेहोशी के आलम में भी वो दिल के भीतर रहेता है

हे मालिक, जरा समझाना मुझे, आखिर प्यार मरता क्यू नहीं है

Armin Dutia Motashaw
मृग तृष्णा से कभी बुझती नहीं प्यास
फिर्भी, जीवनभर हम बांधे रखते हैं एक आश।
न जाने, क्यू करते  है हम, इस मृगजल पे विश्वास?
जो कभी नहीं बुझाता तन मन की प्यास।
बन जाते है हम,दूसरों के लिए एक उपहास।
हो जाता है हमारी आकांगशाओ का नाश,
फिर भि बुझती नहीं हमारी अधूरी प्यास।

Armin Dutia Motashaw
प्यासी धरती करे पुकार

धूपमें तप के हो गई हूं मैं, जलता हुआ अंगार; कहे बिचारि यह धरा

चाहिए अब मुझे ठंडी ठंडी बौछार, और श्रृंगार सुंदर और हरा

नदियाँ हो रही है मेरी खाली, और सागर  पानी से खूब है उभरा

सालभरकी प्यास बुझाने मेघराजको मैंने है, किया पुकार

आकाशको की है मिन्नतें हज़ार, जी भरके खोल दे आज तेरे द्वार

जी भर के मुझपे बरसना आज, सुन ले, इस धरतिने है तुझे पुकारा

ऐ हवा, लाना तू  बदरीयां काली, ओ बदरी बरसा जा जल की धारा

आत्मा है मेरी प्यासी, तृप्त कर दे तू मुझे आज, कर दे मुझे हरा, ओ मेरे यारा

झूम झूमके बरस, प्यासी धरती आज करती है तुझे अंतरमनसे पुकार

बरसना होगा अब तुझे, तन मन है मेरा प्यासा, निभाना होगा तुझे वादा-ए- प्यार

मेरा अंतर है प्यासा, तुझे बरसना होगा यहाँ, निभाना चाहती हूं मैं यह व्यवहार

याद रखना सदा यह बात, प्यार तो आखीर प्यार है, नही कोई व्यापार ।

Armin Dutia Motashaw
प्यासी धरती करे पुकार

धूपमें तप के हो गई हूं मैं, जलता हुआ अंगार; कहे बिचारि यह धरा

चाहिए अब मुझे ठंडी ठंडी बौछार, और श्रृंगार सुंदर और हरा

नदियाँ हो रही है मेरी खाली, और सागर  पानी से खूब है उभरा

सालभरकी प्यास बुझाने मेघराजको मैंने है, किया पुकार

आकाशको की है मिन्नतें हज़ार, जी भरके खोल दे आज तेरे द्वार

जी भर के मुझपे बरसना आज, सुन ले, इस धरतिने है तुझे पुकारा

ऐ हवा, लाना तू  बदरीयां काली, ओ बदरी बरसा जा जल की धारा

आत्मा है मेरी प्यासी, तृप्त कर दे तू मुझे आज, कर दे मुझे हरा, ओ मेरे यारा

झूम झूमके बरस, प्यासी धरती आज करती है तुझे अंतरमनसे पुकार

बरसना होगा अब तुझे, तन मन है मेरा प्यासा, निभाना होगा तुझे वादा-ए- प्यार

मेरा अंतर है प्यासा, तुझे बरसना होगा यहाँ, निभाना चाहती हूं मैं यह व्यवहार

याद रखना सदा यह बात, प्यार तो आखीर प्यार है, नही कोई व्यापार ।

Armin Dutia Motashaw
नदी मै, नीर से भरी, फिर भी मै हूँ निरंतर प्यासी

रहती है मुझे  सागर से मिलने की  इंतज़ारि और बेकरारी ।

जानू मै, मीठा है मेरा पानी, पर मिलते ही हो जाउंगी खारी;

इसी लिए छायी है मेरे कण कण में, गम्भीर उदासी ।

चाहू मै उसमें समाना, फिर, न जाने  क्यूँ, यह उदासी ?

शायद इसी लिए मै हूँ जनम जनम से प्यासी ।

Armin Dutia Motashaw
प्रकृतिकी रीत


मौत धीरे धीरे पास आ रही थी, मानो जान हाथोंसे छूट रही थी

प्रकृति ने हस कर कहा, यही उसकी रीत, एकदम सही थी;

भला, नदी कब सगरसे निकालके  पहाड़ की तरफ बही थी !

प्रकृतिने कभी भी, युगोसे, ऐसी कहानी कही नहीं थी ;

बचपन गया, जवानी ढली, वृद्धावस्थामे जान हाथोंसे छूट रही थी;

मानो, बुढापा कह रहा हो, रेत हाथोंसे फिसलती नज़र आ रही थी ।

यही है प्रकृति का नियम, यही जीवनकी रीत, सही थी।

अब तो दिख रहा है, मौत पास आ रही थी, और जान दूर जा रही थी।

Armin Dutia Motashaw
प्रीत मेरी पावन, जैसे गंगा जल।
अति कोमल और अत्यंत निर्मल ।
प्रीत में, कहा आता है कभी बल;
वोह तो है समर्पण, सालो का, न के एक पल।

प्यार हो जाता है तो बस एक पल में।
औेर बस जाता है, तन, मन,  हृदय में।
जनमो का यह नाता, जोड़ता है क्यू विधाता ?
और सोचती हूं मैं, क्यों फिर जुदाई देता है दाता ?

प्रीत की रीत है अनोखी, जलता है खुशी से परवाना
और दुख में डूब कर, गाता है कोई हृदय स्पर्श गाना।
शायर, नशेमे शूमके, लिख देता है नमूनेदार शायरी
और कोई लिखता है खुद की डायरी।

"प्रीत किए दुख होए", कहता है प्रेमी, हरएक ।
फिर भी जलने के लिए तैयार है प्रेमी हरएक ।
बस देता है हरएक प्रेमी, दुआए प्रीतम को
झंखता है वोह अपने प्रीतम के संग, साथ को ।

Armin Dutia Motashaw
प्रीत

प्रीत की रीत निराली ओ मनवा प्रीत की रीत निराली;

इस प्रीत के खातिर पी गई मीरा, हस्ते हुए, जहर की प्याली।

इस प्रीत के खातिर प्रेम से सींचे बाग को, थका हुआ माली।

इसी प्रीत ने बनाई कृष्ण राधा की जोड़ी भी गोरी और काली।

उमर प्रीत में प्रीतम की  बड़ी, और प्रियतमा की उम्र बाली।

इसी लिए प्रीत में झुक जाए, फूलों से लदी हुई  नाजुक डाली ।

खुदा की प्रीत में, बेफिक्र हो के सूफी गाये, प्रेम से भरी कव्वाली ।

प्रीत हमें क्या-क्या करवाएं इसीलिए कहती हूं प्रीत की रीत निराली ओ मनवा प्रीत की रीत निराली ।

Armin Dutia Motashaw
प्रीत की डोर

मन माने ना, पर दिल मचाए शोर, कहे वह जोर-जोर से,
होती है नाज़ुक, लेकिन होती नहीं कमजोर ,
प्रीत की यह डोर ।

सालों नहीं,  जन्मो जन्म की लंबी होती है यह प्रीत की डोर ।
प्रीत कभी मरती नहीं, होती नहीं वह कमजोर, पर नाजुक होती है प्रीत की डोर ।

प्रीत मागे प्रियतम से प्यार,
भले मिले ना मिले उसे संसार ।
नाजुक सा यह रिश्ता, चाहे न ज्यादा, बस मांगे प्रीतम का प्यार ।

मैं भी मांगु अपने प्रीतम से, प्यार का इजहार ।
बस एक बार बस एक ही बार कर दो तुम इकरार ।

बांध लो मुझे इस बंधन में, बांध लो मुझे से यह नाजुक डोर ।
हूं मैं तुम्हारी जन्मो जन्म से करती हूं मैं आज यह इकरार ।

Armin Dutia Motashaw
प्रेम की पुकार

क्या सुनता है तू,  मेरे दिल की पुकार ?

बजा के सितार, छेड़े मैंने अनेक बार, दिल के तार,

पुकारा मैंने तुझे कई बार, सालों से, लगातार

पर सुनी नहीं तुने मेरे प्रेम की पुकार

बजी जब सरगम, लगा तुने छेड़े दिलके तार

कभी तो तु केह दे,    " मुझे, तुझसे है प्यार "

कभी तो तु कर ले यह इकरार, की तुझे मुझसे है प्यार ।

Armin Dutia Motashaw
प्रेम दीवानी

लेके इकतारा चली मीरा, गिरिधर को धुंडने गली गली

जोगन बन गई आज यह प्रेम दीवानी, थी कभी जो, एक कुंवरी मनचली

मनमे मोहन, दिल में मोहन, लेके मूर्ति बस वो चली

पर मोहन न जाने छुप गया कहां ; उसकी आश नहीं फली

राणाने सताया, उदाने परेशान किया, प्रेम प्यासिकी दुनिया जली ।

दासी बन गई अब वह, कभी कुंवारी बन के, थी जो पली ।

फूल बन गए कांटे; चुभने लगी उसे कंटक बनी हुई एक एक कली ।

मिले न इस जोगन को मोहन; धुंड रही वो उसे गांव गांव, गली गली ।

Armin Dutia Motashaw
तेरी याद में जागु सारी रात, तन्हाई में करू अकेले बात
पिया यह क्या किया, कैसे काटू मै अकेले यह लंबी रात?
चांद के हाथ संदेशा भेजू, करू मै उससे तेरी बात;
काश तू भी संदेशा भेजता, करके चंदासे मीठी दो बात ।

चंदा ओ चंदा, करू मै तुझसे पिया की फरियाद
दुर जा बसे, पहोचु उन तक कैसे, बता जा, सुन मेरी फरियाद ।
देना पिया को संदेश, बहुत सताती है मुझे उनकी याद;
सुनाना मेरी दुखभरी दास्तान; जीवन हो रहा है बरबाद ।

Armin Dutia Motashaw
फरियाद

बरखा आइ, तो आए तुम मुझे याद;

पर किसको करू मैं फरियाद ?

राधा या मीरा होता तो रो के करता याद

पर मुझे तो कहते है, "कृष्ण है हरजाई; कोई न दे दाद"

मेरा दर्द, मेरी तड़प समझे न कोई; पर मै नहीं हूं फौलाद

मुझे भी राधा की आती है बहुत याद;

पर किसे कहूं; कौन सुनेगा मेरी फरियाद ???

Armin Dutia Motashaw
फिर एक बार

आज  फिर से  मचा है राष्ट्र भर में   हाहाकार ;

सोचती हूँ, कब तक होता रहेंगा ऐसा अत्याचार;

देश की एक बेटी, बर्बाद हुई है फिर एक बार;

हुआ है उसका समग्र  जिवन, तार तार

पर अब तो लोगोको आदत सी हो गई है, सुनने की यह चित्कार!!!

शरीर नोचा गया, आत्मा घायल, मन घायल; यही होता है बार बार;

जब तक मनुष्यता नहीं जागेगी, यह तो होता रहेगा लगातार ।

मात पिता, भाई बंधु, पतिओ के लिए है एक ललकार;

जागो, खत्म करो इन वैशि दरिंदो को, नही तो होता रहेगा यही बार बार ।

दुर्गा, काली  बन जा तू स्वयं ; अब यही है एक उपचार ।

मर जाने से हांसिल कुछ नहीं होता, उठा हाथ और अब  तुहि उसे मार ।

ओ वैशि दरिंदो, तुमहारि बिमारी का अब ऐसे ही करना पड़ेगा उपचार;

न जेल, न  कानुन, हर दुर्गा, हर  काली अब तुम पर करेगी वार ।

Armin Dutia Motashaw
फिर भी

बोलियाँ, भाषाए भले  है अनेक हमारी, फिर भी हम, एक है ।

मज़हब और  जात पात भले हो अनेक , फिर भी हम एक हैं ।

पोशाक अलग, पगड़ी अनेक, कंहि  साडी, कंहि सलवार, फिर भी हम एक हैं

मराठी, पंजाबी, मद्रासी, गुजराती, पर हम सारे हिन्दुस्तानी एक है ।

कहीँ भंग्डा, कहीं भरतनात्यम , गरबा,लावणी, बिहू, पर हम, एक
हैं ।

संगीत भी अनेक, भजन, गजल, कव्वाली या शास्त्रीय,पर हम तो एक है ।

रसोई, व्यंजन अलग, तरह तरह के; यह सब एक ही माता देती है; इस लीये हम एक हैं।

राष्ट्र पिता महात्मा गांधी ने हमें एक रहने का आदेश दिया है, क्यूँ की हम एक है ।

कितना अच्छा होता, अगर नेता, मुल्ला, पंडित यह सच बताते, के हम सब एक है ।

चलो गाये, " मज़्हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिंदी है हम, हिन्दोस्ताँ हमारा "।

Armin Dutia Motashaw
हालात के बदल जानेसे बदल जाते है बहुत सारे हालात; बदल
जाते है रिश्ते नाते ; बदल जाते है जज़्बात; यही है दुनियां का दस्तुर।

जब आपको सबसे ज्यादा स्नेह और अपनेपन की जरूरत होती है, न जाने क्यों, तभी लोक दूर हो जाते है, मानो विलीन ही हो जाते है।

Anar
क्या मिलता है आप लोगों को, मचा कर यह झुठा हाहाकार ?

कांपत है रूह हर बालाका, जिसपे होता है बलात्कार

उसके मात पिता, भाई बहन को यू क्यूँ सताते हो बार बार?

रखना स्व को उनकी जगह, फिर मचाना यह हाहाकार ।

पता है हम सब को यह तो, बना लिया है इसे आपने, अपना व्यापार

बन गया है आपका पेशा, यह  चीखना, चिल्लाना लगातार

क्या आप को लगता है कि सही है आपका यह  घिनोना  व्य्हवार?

कैसे लगेगा आपको, जब कोई और करेगा आपसे यह  दुर्व्यहवार?

कहती हूँ, करती हूं निवेदन, बंध  करो यह अत्याचार ।
बादल

उडू हवा में, बन के एक बादल
कहीं खुशी से हो जाऊ न मैं पागल ।

मुस्कुराऊं देख के दर्पण या झिल
मानो, मिल गई है आज मुझे अपनी मंज़िल।

खुला है आकाश, जागी है एक आश;
बनके पंछी, उड़नेकी जागी है आज प्यास ।

पिया का आया है आज पैग़ाम, एक खत;
लिखा है कया उसने, मुझे पूछना मत ।

इस खत में, एकसाथ मेरा है और उनका भी है नाम
और चाहूं मै क्या, मेरे लिए, अनमोल है इसका दाम ।

यह सब मै, अपने पिया को लिख न पाऊ;
इसी लिए, कोकिला बन के, सुरीला गीत गऊ ।

सुन लेना पिया मेरी आवाज़, मेरा मधुर यह गीत ।
बस इसी में है मेरे प्यार की, मेरी प्रीत की जीत ।

Armin Dutia Motashaw
बावरे नैन

दर्शन को तरसते हैं तेरे पिया, मेरे यह बावरे नैन

छिन लिया है मोहन तुने, मेरे दिल का चैन ;

बता मुझे, धुन्द्ने तुझे, बिरहन मै, कहां  जाऊ

बंध करू इन्हे, तो दर्शन की झलक पाऊ ;

खोलूं नैन तो, हो जाए तू ओज़ल;

बिरहमें तेरे, थक गई हूँ, सांसे भी है बोझल

तेरे बिरह में असवन बहाये, मेरे यह बावरे नैन;

बांसुरीया तेरी, सुना कर मीठी ताने, कर जाती हैं जिया बेचैन

तरसाना, तड्पाना इतना, ठीक नही है प्रितम मेरे ,

शाम सवेरे, नित्य तरसु  मैं, दर्शन को तेरे

नज़र फेर कर, मुझे ठुकरा कर, क्या मिलेगा तुझे ;

बस माँगू इतना, दर्शन दिखला जा मोहन मुझे ।

Armin Dutia  Motashaw
खुशी, प्यार और अपनापन बाँटिये

अपनो को, प्यारसे, अपना बनाके रखिये, पराया मत कीजिये

थोड़ा वक्त निकालिये उनके लिए; कुछ तो समय निकाल लीजिए

Armin Dutia Motashaw
मैंने कहा था,  बचाना मेरे वृक्ष हरे भरे घटादार;

इन्हें बचानेकी बिनती की मैंने तुझे बार बार

बनके निडर, रेहते थे कितने पक्षी यहां, नर और नार ।

कोयल कूकती थी, तोते मेना आते थे झुंड में यहा

गिलहरिया हमेशा भागती थी यहां से वहां ।

पर सुनता है तु  हमारे मन की सदा कहां !!

इनकी तेहनिया थी फूलों से लदी हुई ;

भले न थे मेरे आंगन में गुलाब मोगरे या जूही ;

थे इनमें फूल रंग बे रंगी, तो क्या हुआ गर इनमें खुशबू न हुई

देते थे वो प्राण वायु और अनेकों को छाया;

था मुझे उनसे गहरा लगाव और माया

मैंने कभी न समझा था इन्हें पराया ।

इन्सान तो है खुदगर्ज, बेरहम और जुनूनी;

शहीद हो गए वो; तुने क्यों बिनती मेरी नहीं सुनी ?

समझमें आता नहीं हम क्या करें; तूही बता ऐ महागुनी !

Armin Dutia Motashaw
सुनी थी उसकी मांग, बिना सिंदूर; और ललाट था बिना कुमकुम

बिना पायल के पैर कितने बेजान लगते थे, गायब हो गई थी रुमझुम

अब खाली था हंस जैसा नाजुक उसका गला भी, मंगल सूत्र बिना;

मुश्किल हो गया था उसे एक एक सांस लेना; सोच रही थी, यह कैसा जीना !

चूडियोसे खनकती थी जो भरी हुई कलाई, थी खाली और सुनी सुनी

कितनी जतनसे इन गोरे गोरे हाथों पर, उसकी सहेलिने मेहंदी की डिजाइन थी बुनी

पायल बिनाके पैर, हाथ फीके, कलाई सुनी, न मंगलसूत्र, न बिंदिया न सिंदूर

और उसकी खुशियों का तो हो गया था खून, नज़र नहीं आती थी वो दूर दूर

अब जीवन यह पहाड़ जैसा, बीतेगा कैसे; बिना  पिया के,जिंदगी कटेगी कैसे

बागो से बहार अचानक गायब हो गई कहाँ, और यह पतझड़ आई कहाँ से और कैसे

Armin Dutia Motashaw
बुरी नज़र

बड़ा दर्दनाक है समा, और दर्दनाक उसका असर;

मेरी खुशी पे, मेरी हसी पे लग गई है किसी की बुरी नजर ।

खुश रहती थीं मै, हमेशा मुस्कुराती थी, हसी से खिलखिलाता सारा घर।

पर रुलानेकी, दुनिया ने छोड़ी नहीं कोई कसर ।

क्यों जलती है यह दुनिया, औरो के सुखसे ? बड़ी बुरी है, किसिकी नज़र ।

Armin Dutia Motashaw
मेरे प्यार पे हमेशासे है, मुझे बड़ा नाज़;
तुम ही हो मेरे प्रीतम; मेरे सरताज ।

पर बेताब बहुत है दिल मेरा आज ।
सूने पड़े हैं मेरे सब सुर और साज़ ।

लगता नहीं है मन, भाते नहीं है मुझे सकल काज;
बड़ी बेताब और बहुत ही उदास हूं मैं आज ।

छोड़ दू कैसे मै, मेरी शरम- लाज;
जवाब क्या दू, गर पूछे मुझे समाज ?

कौन हो तुम मेरे; क्यु बांधी है मैंने तुमसे यह आश ?
बेताब हूं, फिर भी तुम आओगे, है यह दृढ़ विश्वास ।

Armin Dutia Motashaw
बोज़

तुम्हारे जानेसे, आज हम, सबके लिए और अपने लिएभी, एक बोज़ बन बैठे हैं;

माझी बगैर की नैया की तरह, संसार सागरकी लहरोंकी जोरदार मार खाते हुए, बैठे हैं

लोक शायद डरते है, कुछ करना न पड़े हमारे लिए, उन्हें हमारा कोई बोज़ उठाना न पड़े

मझधार में जब मांझी छोड़ देता है नाव, तो लोक देखते हैं उस नावको यू  डूबते हुए; मज़ा लेते है वह, खड़े खड़े ।

कहीं कोई जिम्मेदारी उनपे नही आ जाये, यह डरसे हमें वो अब देखने है लगे;

जिंदगीने यू अचानक करवट बदली, की हम अब सबको एक पहाड़ जैसे पत्थरका  बोज़ लगने लगे

रिश्ते इतने कमजोर है, यह कभी नहीं सोचा था हमने; बलकि रिश्तोपर बड़ा नाज़ था हमे

यह गलतफहमी निकल गयी है अब, आज यह बोज़ लिए जिंदा खड़े हैं; भगवान दे सहारा हमे
भक्ति

वृद्धावस्ता में हो जाती है जब क्षीण मानव की सारी शारीरिक शक्ति;

तब पल पल काम आती है उसे, उसकी सालों से की हुई भक्ति

हम कितने भी हो व्यस्त भगवंत, देना हमें भक्ति के लिए, थोड़ीसी शक्ति

और देना श्रद्धा और सबुरी, ता की कर सकें हम तनमन से भक्ति

आयुष्य हो जितना भी, तह दिलसे कर सके भक्ति, इतनी देना दाता हमे शक्ति

शरीर को अब लगने लगी है अशक्ति, पर देखना, इस लिए कम न हो जाये हमारी भक्ति

Armin Dutia Motashaw
भरम

बस एक झलक पाते ही, आपके ख़यालो में हो गए मशरूफ;

सपनों की दुनिया में खो गए; और यहां से शुरू हुई तकलीफ़

देखा जो आपको, अपने ही दिल के हाथो, हो गए मजबूर

इश्क़ के हाथो बिक गए;  आप के नाम से जुड़ कर, होना था मशहूर ।

पर आंख खुली तो समझ में आया, यह था एक जूठ, एक भरम

समझाया अपने आप को,  शायद ऐसे अच्छे नहीं थे हमारे करम

इसी लिए बन के हम आंधी और तूफान से अनजान;

बिना समझे, जला दिया एक दीया आंधी में; जगा लिया दिल में तूफान

जीवन भर डोलेगी नैया, मिलेगा नहीं कभी साहिल

डूब जाएगी यह कश्ती, गहरी है झील; मिलेगी नहीं कभिभी मंज़िल ।

Armin Dutia Motashaw
भुल जा

ऐ दिल, तु कहना मेरा मान;

भुल जा सब दुख भरे दास्तान ।

बन जा इन सारे दुखो से अंजान ;

भुला कर दुखोको, बन जा एक मस्त इंसान

खुश रहना सीख तु, यही है जीवन की रीत

दुख से किसिका वास्ता नहीं, सब को है खुशी से प्रीत

यह जहांमें, मिलेगा न तुझे, दुख बांटने वाला मीत

यहां होती नहीं है कोमल दिलों की जीत ।

Armin Dutia Motashaw
फ़ायदा लेना क्या है; कोई इन लोगों से सीखे;

पहले रिश्तेदारी बनाते है; उसे बड़े प्रेमसे निभाते है;

पर जब खत्म हो जाए उनकी मतलब,  पूरा हो जाए काम;

तब दुधमें से मक्खी निकाल कर, उस बिचारी मक्खी को निचोड़ कर, दूध पी जाते है।

हाय रे यह मतलबी जमाना !!!!!

Anar
मन मोरा बावरा

मन मोरा बावरा, बिना समझे, तोहसे नेहा लगाय

यह निर्मल प्रीत पिया, दुनिया समझ न पाय

बता जा इस कश्मकश में, हम जाए तो कहां जाए

कभी तो, कोई तो आ के, रास्ता हमें बता जाए ।

दुनियां की सोच के साथ, हम चल नहीं पाए ;

मन मोरा है बावरा, उसे लेकर हम जाए तो कहां जाए

प्रीतम, दिल दिमाग की कश्मकश में हम बावरे हो न जाए  

कभी तरस खाकर आजा सांवरे, हम यह बावरे मन को कैसे समझाए

Armin Dutia Motashaw
"मय हो या मैं"

अरे ओ "मैं", तू कितना प्यारा है मुझे, तुझे मैं क्या कहूं, मैं तेरे बिना रह न सकूं, क्या  करूं!

मुझे दिखता है मैं ही मैं ; जहा तू वहा मैं, मैं तेरे बिना कहीं जा n सकूं और तुझ बिन रह न सकूं।

शराब हो, या हो धूम्रपान, या चरस गांजा, सबसे नशीला पदार्थ है "मैं ";  और वो है बड़ा कातिल भी ।

सदा याद रहे, इन पदार्थों के सेवन से, कभी भी नहीं भरेगा तेरा प्यासा जी;

"मैं" हो, या मय, दोनो है कातिल और खतरनाक, इनके पयाले "अनार" तू कभी न पीना;

ऐ इंसान, अगर कम्बक्त, तूं करते रहा यह मय के पयाले का सेवन, मुश्किल हो जाएगा तेरा जीना ।

Armin Dutia Motashaw
मान ली हार

थक गए तेरी राह निहारते हुए, यह उदास नैन

अब काटते नहीं कटते जुदाई के, यह दिन रैन ;

याद में तेरी, होने लगे है हम भी अब बेचैन ।

लायक शायद नहीं थे हम, पाने के लिए तेरा प्यार;

कर न सके समझौता, क्यू की प्यार नहीं है व्यापार

सालों के इंतज़ार बाद, अब मानली है हमने हार

आश थी हमें, आएगा एक दिन तु जरूर;

विश्वास भी था, और था हमें, हमारे प्यार पे सुरूर

जल्दबाजी नहीं थी  हमारे प्यार में, न था कोई गुरूर ।

पर कन्हाई, तुझे तो कभिभी, न आयी मेरी याद

बेचारे गोप गोपियों ने भी, खूब  की तेरी फरियाद ;

कान्हा तु तो राजा बनके कर गया हमें बरबाद ।

सालों के इंतजार के बाद, हार गया मेरा प्याय;

कान्हा, आज तेरी राधिका ने मान ली है हार

तु भी कुबूल कर ले, के आधा अधूरा रह गया हमारा यह प्यार।

Armin Dutia Motashaw
Next page