हर दफा क्यू लडकिया दो पहलू में देखी जाती है
एक ओर मुस्कान उसकी घर घर महकाती है
दूसरी खुल कर जो हस दे चरित्र हींन बन जाती है
एक ओर आजाद हो लड़की , नारो से बातें आती है
दूसरी जो खुल के जी ले आखो में खटक जाती है
एक ओर कागजो पर बराबरी का हक पाती है
दूसरी अपने ही आगंन,खुद को पीछे पाती है
एक ओर वस्त्र से ढकी , संस्कारी मानी जाती है
दूसरी वही आँखे चीरहरण कर मुस्काती है
एक ओर नारी ही देवी राग अलापी जाती है
दूसरी कुछ पल अपने जीने को गिड़गिड़ाती है
एक ओर नवरात्रो में घर घर मे पूजी जाती है
दूसरी झुंड में निर्दयता से नोचि जाती है
क्यों आखिर क्यों ये लड़कियां
दो पहलू में देखी जाती है