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Arvind Bhardwaj Mar 2016
यू देख मुझे ये दुनिया हैरान क्यों है,
मेरे हंसने पर भी पूछे है परेशान क्यों है?
यू तो सबकुछ समेटे रखता हूँ सीने में,
पर ना जाने आँखें इस क़दर बेइमान क्यों हैं?

कोशिश दिल से तो करता हूँ ,पर आँखें दगा देती हैं,
समझाता हूँ बहुत, पर फिर भी सज़ा देती हैं।
खामोश रहता हूँ,कि न समझे कोई हाल-ए-दिल,
न जाने क्यों ये सबको बता देती हैं,

ना जाने क्यों ख़फा है इस क़दर,
कई बार भरी महफ़िल में रुला देती हैं।
क्या समझाऊं कैसा खेल है मुकद्दर,
जिसे चाहो उसे कहीं और मिला देती है।

बहलाता हूँ बस ये कहकर खुद को,
ये ज़िन्दगी है मरते को भी जीना सीखा देती है ।

— The End —