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!! कई दिनों के बाद !!
.
कई दिनों के बाद कलम ने
परिचित सा व्यहार किया
कई दिनों के बाद कलम ने
है खुद को सृगार किया !!
.
कई दिनों के बाद कलम ने
सूरज तुझे बुलाया है ?
.
कई दिनों के बाद कलम
कुछ परिचित प्रश्न उठाते है
कई दिनों के बाद कलम ने
दर्पण सा व्यहार किया !!
.
प्रश्न कलम के लाखो है
पर मै किस पर बिचार करुं
जतीबाद पर लिखूँ
या मै नारीबाद पर वार करुं !!
.
राजनिती के इन मुद्दो पर
श्याही नही बहाऊँगा
राजनिती के कुछ मुद्दो को
राष्ट्रवाद तक लाऊँगा !!
.
- सूरज कुमार सिँह
01-11-2016
After long time my pen treated me as a known,
After long time my pen Reacts as a Mirror !!
Few Lines Of My New Poem....
नारी के स्म्मान मे

द्रोपदी के चिर हरण से
परिचित कौन नही होगा ?
जहाँ रणों के रणबाँकुर थे
शब्दहीन, थे मौन मौन !!

मान हरण की वही प्रथा
मानो UP दुहराती है !!
लखनऊ के चौराहे मानो
कुरुओं कि है राजमहल,

राहधानी के चौराहो पर
भीड जमाया जाता है
सरे आम यूँ नारी को
जंघे पे बुलाया जाता है,

क्षमा करें,
ईस कलम को तब बेशर्म
होजाना पडता है !!
राजनीती जब नारी को
सरेआम वैश्या कहता है !!

पर,
नारी को स्म्मान दिलाने
दुर्लभ योधा आये है,
12 साल की बची को भी
कामूक स्वर मे बुलाये है !!

इतने पर भी पूर्ण व्यवस्था
मौन दिखाई पडता है,
कई पितामह , कई कर्ण ,
कई द्रोण दिखाई पडता है !!

अर्जुन के गाँडिव भी लगता
चीर हरण मे सामील है
भृकोदर का बली गदा की
दुर्योदन से सन्धि है,
कलियुधिष्ठिर के धर्मो पर
सत्ता कि परछाई है !!
है लगता मानो चीर हरण में
सामील सारे भाई है ।

कितने वीरों की सूची –
तैयार करुँ बतलाने को ??
जो बात – बात पर आते थे,
अपना स्म्मान लौटाने को

कलम मेरी,
है पुछ रही ?
क्या वो अब भी जिन्दा है
थे बढी तमासा किये कभी
शायद उसपर शर्मीन्दा है ??
नारी हित की बातें अब
बस बातों मे ही जिन्दा है,

देख दुर्दशा नारी की,
कलम मेरी शर्मीन्दा है !!
बस है कवियों से पुछ रही,
क्या ? पत्रकारीता जिन्दा है ?
बस जिन्दा है ?
राजनीती की ईस नीती से
UP मेरी शर्मीन्दा है !!
अब भी ये सब थमा नहीं तो,
कलम मेरी मर जायेगी
पन्ने को कर अग्निकुंड
जौहर अपना कर जायेगी !!

- सूरज कुमर सिहँ
26th  Jul  2016
poem on female
श्याम तु सौंप दे

राधिका की सरल स्नेह न पा सकूँ
रुक्मिणी की नहि, कोई युक्ती कुरुँ
मुझ को मेरी परी श्याम तु सौंप दे
है राधिका वो मेरी, रुक्मिणी भी वही !!

जब भी वो हसी, राधिका सी लगी
की जो सृंगार वो, रुक्मिणी सी लगी
मेरी मीरा वही, मेरी संसार है !!

करदे मेरा उसे, उसको मेर बना
श्याम सूरज की हर सांस, है बस परी
मुझ को मेरी परी श्याम तु सौंप दे
है राधिका वो मेरी, रुक्मिणी भी वही !!

सूरज कुमर सिँह
31-03-2016
Today,
When I was bowing to Shyama for u mah love
some sacred utterance came in mah mind by which i made a acrostic for Us.
I wanted to be yours Chaliya.
You R mine
I am Yours , mah Love.
-: कहानी बने ?? :-

हम भी मजबूर है,
तुम भी  मजबूर हो !!
हम बहुत दूर है
तुम बहुत दुर हो !!

फ़िर मोह्ब्बत कि कैसे
कहानी बने ??

मैं तड़पता रहु,
तुम तड़पती रहे
हम दिवानों कि ऐसी
कहानी बने !!

मेरी यादों मे तुम
युं न आया करो
मै कहीँ ?? पर रहूँ
मन कहीँ पर रहे ॥


तेरे बिन मेरी हालत है
कुछ ईस कदर
मीन जो रेत पर
जल बिना हि रहे  !!

मेरी ख्वाबों मे दस्तक
दिया आपने
कि लगा लखों परीयाँ,
मुझे मिल गई ॥

निंद से जब जगा
बस अंधेरा ही था
तब लगा निंद मुझको
था कितना हंसी ॥

निंद से जब जगा
बस अंधेरा ही था
फ़िर मोह्ब्बत कि कैसे
कहनी बने ??


फिर से मैं सो गया,
ख्वाब देखुं तेरी
ख्वाब मे हीँ मुझे
गुद गुदी हो गई !!

तेरी यादो में मैं
कुछ यूँ खोया रहूं !!
मेरा मन है कहीं
तन कहिं पर रहें ??

मै तड़पता रहूँ
तुम तड़पती रहो
हम दिवानों कि ऐसी
कहानी बनें ॥

मै तड़पता रहूँ
तुम तड़पती रहो
हम दिवानों कि ऐसी
कहानी बनें ॥


हम भी मजबूर है,
तुम भी  मजबूर हो !!
हम बहुत दूर है
तुम बहुत दुर हो !!

फ़िर मोह्ब्बत कि कैसे
कहानी बने ??

- सूरज कुमार सिँह
दिनांक :- 16 / 10 / 2014
-: माँ , तुझे जो याद करता हूँ ॥ :-

तुझे जो याद करता हूँ
माँ ??
मैं आँसू बहाता हूँ ।
जो तेरी याद आती है
मैं खुद को भूल जाता हूँ ।।

मैं बालक हूँ । तु समझी ना
मैं कटी हो गया तुम से  ।
आंऊ जब भी HOSTEL मैं
तो क्यूँ आँसू बहाती हो ।।

वो पल जब याद आते है
मैं कितना टूट जाता हूँ ।
रख PHOTO सीरहाने में
मैं तुम से रूठ जाता हूँ ॥

मुझे भी पाता है की
माँ तु मुझ से प्यार करती हैं ।
तभी तो तु अकेले मे रोया
हर बार करती है ॥

मगर मै रो नही सकता ,
ये पापा ने बताया है ।
मै लड्का हूँ
कटु ये शब्द मुझ को क्यों सीखया है ॥


घनी है रात HOSTEL में
सुबह होने चला आया ।
समय अब 3:40 हैं
मगर सूरज न सो नही पाया ॥

माँ…
मैं आज भी रातो
में भी बस आँसू बहाता हूँ ।
जो तेरी याद आती हैं
मैं खुद को भुल जाता हूँ ॥

लेखक :- सूरज कुमार सिँह
दिनांक :- 06 / 11 / 2013
-: माँ , तुझे जो याद करता हूँ ॥ :-

तुझे जो याद करता हूँ
माँ ??
मैं आँसू बहाता हूँ ।
जो तेरी याद आती है
मैं खुद को भूल जाता हूँ ।।

मैं बालक हूँ । तु समझी ना
मैं कटी हो गया तुम से  ।
आंऊ जब भी HOSTEL मैं
तो क्यूँ आँसू बहाती हो ।।

वो पल जब याद आते है
मैं कितना टूट जाता हूँ ।
रख PHOTO सीरहाने में
मैं तुम से रूठ जाता हूँ ॥

मुझे भी पाता है की
माँ तु मुझ से प्यार करती हैं ।
तभी तो तु अकेले मे रोया
हर बार करती है ॥

मगर मै रो नही सकता ,
ये पापा ने बताया है ।
मै लड्का हूँ
कटु ये शब्द मुझ को क्यों सीखया है ॥


घनी है रात HOSTEL में
सुबह होने चला आया ।
समय अब 3:40 हैं
मगर सूरज न सो नही पाया ॥

माँ…
मैं आज भी रातो
में भी बस आँसू बहाता हूँ ।
जो तेरी याद आती हैं
मैं खुद को भुल जाता हूँ ॥

लेखक :- सूरज कुमार सिँह
दिनांक :- 06 / 11 / 2013
-: मै मीनाक्षी :-

मै मीनाक्षी ,
भयभीत हूँ , मौत के बाद भी
मौत का द्रिष्य,
अद्भूत नजारा था,
गैरों के लिये !!

पापा,
मै अब नही,
संभाल लेना खुद को ,
बस आप ही , अब माँ का
सहार हो !!

माँ मुझे आंचल से झाप देती
घर से चौक की दूरि पैदल ही नाप लेती,

मै बहुत कुछ करना चाहती थी
पापा को कैंसर है
ये गम तो, पहले ही मार डाला था
पर आपके लिये
हर रोज मरना चाहती हूँ !!

पाँच दिन का जोब
कहाँ कुछ कमा पाई थी
पापा मै आप को बचालूगी
बस ये दिलासा दिला पाई थी !!

तब तक मुझ पर
चकूओं का 35 वार,
माँ,
लगा सब चुट रहा था
हर चोट के साथ
कई सपना टूट रहा था !!

माँ – पापा आपकी याद आ रही थी ,
आप दोनो कि चिन्ता
मैत से पहले मारी जा रही थी !!

पापा,
मै मर कर भी जिन्दा रहना चाहती हूँ
आप कि सेवा करना चाह्ती हूँ ,
पर ये हो नही सकता,
पर आपकी चिन्ता
मुझे अब भी सताती है !!
पापा क्या आपको मेरी याद आती है ??

मेरे सपने , मेरी जिन्दगी
सब सीमटती जा रही थी
तब भी मुझे मेरी गलती
न याद आ रही थी !!
किस गुनाह का ये सजा थी
क्या लड्की होना,
इतनी बडी गुनाह थी !!

अगर हाँ,
तो मै फिर ये गुनाह करना चाहती हूँ !!  

- सुरज कुमर सिहँ
दिनांक - 19/ 07 / 2015
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