वाह रे दुनियाँ, वाह!
देख लिया तेरा न्याय
बेबस, मासूम, लाचार रिक्सावाला से
कैसा किया तू न्याय ।
दिन आज वो रिक्सा चलाया
दो पैसा तो दिन मे पाया
अंतिम भाड़ा जब वो उठाया
और दो पैसा का ख्वाब सजाया ।
जब मांगा भाड़ा तो थप्पड़ लगाया
चोर कह कर उसे सब ने सताया
संघर्ष के वक्त कोई कम न आया
अर्ध-मृत हुआ तो सहारा दिखाया।
वाह रे दुनियाँ, वाह !
क्या खूब रंग दिखाया
दोषी को छोड़ तू
निर्दोष को सताया
उसे मार-मार कर
तू लहू बहाया।
वो तो बेचारा अधिकार मांगा
अपने रिक्से का भाड़ा मांगा
बस क्या यही था कसूर
पर वो तो था बेकसूर-बेकसूर ।
किया प्रमाण यह तू जालिम है
गरीबो का हाँ
तू जालिम है
समाज मे शोषण कर्ता का
हाँ, तू दुनियाँ
तू सहयोगी है ।
करते हो तुम शोषण उन पर
उठा न पाये जो
आवाज तुम पर
दबा दिया तू उस आवाज को
जो था अकेला
इस कर्म-भू पर ।
वाह रे दुनियाँ, वाह !
सभी यहाँ पर अत्याचारी
लगाते हो नारा
हम मे है भाईचारा
डूब मारो तुम छोटी नालो मे
तुम सभी हो अत्याचारी
उच्च वर्ग तो उच्च ही है
मध्य वर्ग भी तो कम नहीं है
साथ देते हो तुम उनके
क्या तुम
शोषण कर्ता से कम नहीं हो ।
---संदीप कुमार सिंह।