Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
 
बैठा हूँ आज मै
अपनी नजारे झुकाये,
बस यूं ही मैंने अपनी
यह जिंदगी बिताये,
काश कर पता मै
अब कोई भी उपाए,
जिंदगी मे कभी न राहूँ
मै असहाये।

जिंदगी है जीना पर
कोई रास न आये,
बैठा हूँ अकेला आज
क्यों कोई पास न आये ?

जिंदगी लगाने लगी है बोझ
कैसे इसे समझाऊँ,
नौकरी जब न मिले तो
बैठे-बैठे अब यूं ही मर जाऊँ।


संदीप कुमार सिंह।
तेरे जुल्फों ये काले बादल
प्यार की बारिस, ये मचाए हल-चल
है आंखो मे नूर, तुम हो चंचल
दिल मे मचाए ये, प्यार के हल-चल
तेरे जुल्फों के ये काले बादल ।

घन-घोर हरियाली, ये खिल खिलते चेहरे
मौसम की मार, ये बरिस जब बरसे
मची हल-चल हम, मिले जब तुमसे
ये तेरे मुसकुराते चेहरे
तेरे जुल्फों के ये काले-काले बादल ।

--संदीप कुमार सिंह।
वाह रे दुनियाँ, वाह!
देख लिया तेरा न्याय
बेबस, मासूम, लाचार रिक्सावाला से
कैसा किया तू न्याय ।

दिन आज वो रिक्सा चलाया
दो पैसा तो दिन मे पाया
अंतिम भाड़ा जब वो उठाया
और दो पैसा का ख्वाब सजाया ।

जब मांगा भाड़ा तो थप्पड़ लगाया
चोर कह कर उसे सब ने सताया
संघर्ष के वक्त कोई कम न आया
अर्ध-मृत हुआ तो सहारा दिखाया।

वाह रे दुनियाँ, वाह !
क्या खूब रंग दिखाया
दोषी को छोड़ तू
निर्दोष को सताया
उसे मार-मार कर
तू लहू बहाया।

वो तो बेचारा अधिकार मांगा
अपने रिक्से का भाड़ा मांगा
बस क्या यही था कसूर
पर वो तो था बेकसूर-बेकसूर ।

किया प्रमाण यह तू जालिम है
गरीबो का हाँ
तू जालिम है
समाज मे शोषण कर्ता का
हाँ, तू दुनियाँ
तू सहयोगी है ।

करते हो तुम शोषण उन पर
उठा न पाये जो
आवाज तुम पर
दबा दिया तू उस आवाज को
जो था अकेला
इस कर्म-भू पर ।

वाह रे दुनियाँ, वाह !
सभी यहाँ पर अत्याचारी
लगाते हो नारा
हम मे है भाईचारा
डूब मारो तुम छोटी नालो मे
तुम सभी हो अत्याचारी

उच्च वर्ग तो उच्च ही है
मध्य वर्ग भी तो कम नहीं है
साथ देते हो तुम उनके
क्या तुम
शोषण कर्ता से कम नहीं हो ।

---संदीप कुमार सिंह।
वर्षा भी कुछ कहती है
इसके हर एक बूंद
बूंद के हर शब्द मे
अनेकों राज छुपाये रहती है
वर्षा भी कुछ कहती है

पनी से निकलते
हल्के-हल्के मधुर संगीत
जीवन की सच्चाई गुनगुनाती है
वर्षा भी कुछ कहती है

पनी भरे बादल के
सब्र का बांध जब टूट जाता है
तब छत पर पड़े
धूल-मिट्टी गंदगी आदि
सभी को
एक ही पल में, छन में
धरती पर ले आती है
वर्षा भी कुछ कहती है  

धूल, मिट्टी, कणों आदि को
जब अहंकार आ जाता है
अतीत भूल वह हर-पल
सभी छतो पर छा जाता है
तब आने वाली कुछ ही पल में
वर्षा आ जाती है

सभी कणों के अहंकार को
एक छन मे ,पल मे
मिट्टी मे बहा लाती है
उस अहंकार को तोड़ वह
फिर से चली जाती है
वर्षा भी कुछ कहती है।

---संदीप कुमार सिंह।
बर्फ सी ठंढ़ी हो, या जलता धूप
इन्हे क्या गम है
रहते है ये अपने काम मे
न लोगो की परवाह
न दूसरों का गम
है तो बस हर पल
अपने को खुशियाँ देने की चाहत
और चाहत भी देखो
जो इनको न चाहे
फिर भी अपनी चाहत
अपनी आकांक्षाओ की पूर्ति के लिए
कर रहे है वे
दिन रात मेहनत
अपनी खुशियों को गम मे मिला कर
अपनी खून को पनि बना कर
दिन-रात सभी से लड़कर
ठंढ़ी-गर्मी को भूल कर
निकल पड़ते करने
अपनी चाहत को पूरा
पर वह चाहत भी उनको
हमेशा अधूरा ही मिला ।

-----संदीप कुमार सिंह।
आज ये उदास है
इसके पीछे जाने क्या बात है
बैठे है ऐसे जैसे
मन में कोई बात है

चेहरे पर ऐसी एक भाव है
मानो अंदर ही अंदर
वे जल रहे है
तड़प रहे है
क्या करे न करे
इसी मे उलझ रहे है

हर तरह की परेशानी से
घिरे है वे, परेशान है
क्यो न हो परेशान
घर परिवार को संभालना
उनकी खुशियों को सवारना
जीवन की हर मुसीबत से
सभी को उभारना

दूसरों की गली बात को सहना
हर दिन, हर पल
अपनी ही जिंदगी को
अपनी किशमत को
हथेली पर रखे, दुनिया से लड़के
थक गऐ है वो

मिली न कामयाबी बस
इसी का दुख है
पिता है वो किसी न किसी का
सायद किसी मुशकील मे है
इसी लिए वो चुप-चाप है

इनके हनथो मे भी
न जाने क्या बात है
रोते है मन में
फिर भी हंसी का भाव है
आज ये उदास है
इसके पीछे न जाने क्या बात है ।

-----संदीप कुमार सिंह।
आज चला गया वह
इस दुनियाँ को छोड़
इस दुख की जीवन
पापी संसार को छोड़
क्यो चला गया वह ?
इतनी दूर चला गया वह
जो कभी लौट न आये
पर, क्यो चला गया
अपनी माँ को छोड़
अपनी साथी
अपने समाज को छोड़
बिना बताए
सब को रुलाए
दुखों के सागर में
ममता को डुबाए
चला गया वह
दुनिया को छोड़
इस दुख की जीवन
पापी संसार को छोड़
क्यों चला गया वह ?

-----संदीप कुमार सिंह ।
Next page