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Yeh waade
Yeh kasme
Yeh Silsila
Yeh Ishq
Yeh junooniyat
Yeh aashiqui
Yeh Lamhe
Aur
Mein sharaabi
Dooba
Woh waade
Woh iraade
Woh baatein
Woh nazm
Woh aaina
Woh Aankhen
Woh hi woh
Mein Kanha
Ghul sa Gaya
Yeh Woh yaadon me
Aur mein neend e Khamoshiyaan
Bin piye maikhane me
Neend me jaagta
Yeh Woh khwaabo liye
Mann hi Mann me
Hazaaron  khwaahish e fitoor..
..
Muffins in my mind
Shakes...!!!
As her lovely look looked me
...
Adventuring her beauty
Persistently kissing in my eyes
Like a timer of counters
Blanking the reality
Drawing me to imagination
Negotiating reality...

2 nd meeting
I asked her
Can I become a full time dreamer ?
Kya mein yunhi likhta rahu
Teri nazron se apni nazar niharu
Kya mein yunhi waqt e sharabi banu
Tu na mili toh pagal e jaam e shaam
Fikrana e aashiqui
Nazar e ikraar
Pyaari si muskurahat
Dil se dil tak
Falak se dur fursat e dard
Kya mein yunhi likhta rahu
Teri yaad e adhura
tu mili toh pura mein
Subhah nahi Dekhi
Shaam nahi dekhi
Isi haal e Shaan me dost
Zindagi nahi dekhi
...
Phir nazane kyu jee Raha hai Dil
Anjaan raho me bhatak Raha hai phir
Haal e Dil
Haal e Dil
...
You're peg of my dreams
Rethink dear
the cracks in my heart
Don't Leave me alone
I have becoming a zombie
More a less...
I can survive without oxygen
But can't without love
!!!
Can you love me ??
Just like a survival tablet
Possibly darkness and pains
Will evaporate with love balm
...
Beauty inside the peripherals...
A demon's missed inside the burned heart...
Depressed heart ignited...
Dangerously walking...at the tip of seesaw..to n fro waves of dark breezes... snatching peace inside the gravity of body n soul...

Alcohol stopped working...
Cigarettes too ...
Nothingness and something n everything...
Framing a peg of broken zombie...
Vampires looking zombie...
N
era of zompires begins inside imagination of reality...
बेखैफ अवारा
चले फिरसे दोबारा
जँहा तुम हो
मैं रुका
डूबा पूरा दिल
सारा का सारा
।।।
काजल तेरी आँखों को
एक तरफा ईश्क़ में डुबो देता है मुझें
फिर क्या मैं ईश्क़ के बादल में खो जाता हूँ
तुझे खबर तक नहीं
और मैं तेरी याद  क़ैद हो जाता हूँ
और लम्हें
पल दो पल
निहारता मैं तुझे देख कर
और हज़ोरो लम्हें बीत जाते
सुबह की किरण में
चांदनी रात को याद करते करते।।।

।।।
ख्वाब में भी जीना

तेरा यूँही चले जाना
बातों ही बातों में
ईश्क़ में
डूब
जाना
अब

मुश्किल है
।।
मुझे मालूम है
की तुम मुझे पागल शराबी समझती हो
पर मैं फिर भी तुम्हे
इतना चाहता हुँ।।।
की कितना चाहता हूँ
वह केवल मेरी शाराब की कांच की खनखनाहट ही बताती है।।।
मैं पागल तेरी याद में ।।।
तेरी आँखों में डूबा ।।
जो तेरे नाम हो गया।।।

मेरे मन
तू न मानेगा
ईश्क़ की जिद कर रहा है तू
पक्का डूबेगा
।।।
जा डूब जा।।।
प्यार के सागर में
आशिक़ है तू
जल जा आशिक़ी में
दिलजले की तरह
।।।
क्या करता ईश्क़ में मैं तेरे
तो कूद गया
बिना सोचे अंजाम ए दर्द का
पागल पागल फिरू उड़ता मैं अब
बिना कोई पर्र का
नदियों के पास बैठता मैं अब ।।।
और
एक से नहीं सब से प्यार करता मैं
बिना सोचे समझे
ज़माने के ताने बाने का
।।।
कितनी बार सोचा की तुम्हे कह दू
पर कह न पाया
क्यों मेरा दिल इतना कमज़ोर हुआ
जैसे की चाँद में जाने से पहले ही
बन गया मैं डूबता सितारा।।।

ग़म ए ईश्क़
मेहखाने में रहता अब मैं
शाम ओ सुबह
।।
।।।
ज़िक्र तेरा किये बगैर
मेरा दिल टूट गया है
अब तन्हाई डस रही है
कुछ  पागल हु मैं
हाँ जानता हूँ
पर जैसा हूँ
तेरी आँखों में अब भी हूँ कैद
यादों की तरह।।।
फिर से लौट आ
मुझे रिहा कर दे।।।
फिर से लौट आ
एक बार
मुझे तेरा दीदार करा दे
ज़न्नत ए अप्सरा
।।।
मैं लिखूंगा तेरे लिए
शायद ।।।
क्योंकि मैं रहु या न रहु
प्यार तुम प्लीज करते रहना
।।।बिन ईश्क़ मैं मुर्दा ।।
फिऱ क्यों जियूँ मैं
क्यों
।।।
जब मैं यँहा वँहा
देख रहा था
तब तेरी नज़र मेरी नज़र से टकरा गई
और मैं भटकता राही
मासूम सी नज़र में
डूब के रुका
और
मैं वक़्त से डूबता
सूरज
की किरण
के विपरीत दिशा
चला गया
वह कँही ओर
और मैं कँही ओर
और
।।।
तेरा दीदार
करता रहा
फिर दिशाये
बदली और
तू तेरी मंज़िल
मैं मेरी मंज़िल
गूँजती आहते
की मिलेंगे कभी न कभी
दोबरा प्यारर के सागर में
जो न जुदा कर सके हमें।
।पर अगर मंज़िल ऐ भटकी
तो फिर मिलना मुश्किल।।।
चलो देखते है कि क्या होगा।।
पल पल तेरी याद
मैं जलता सारी रात
अखियाँ विच चैन नहीं
तेरी वोह याद
तेरी वोह बात
फिर अंजान सी फ़रियाद
बेचैन सी दिल्लगी
पागल भवरा मैं
एक दूसरी दुनियाँ
में जा के बहोत सी दुनियाँ
से रूबरू होने लगा।।।
क्या मुझे प्यार था?
या
फिर एक वक़्त का मोह माया ?

।।।
।।

तेरी आँखों की झलक
डूबे की अब कँही के न रहे
सारा वक़्त मेहखाने में बीत जाता है तेरी याद में
और केवल सपने में ही मुलाकाते।।
और हँसती मेरी आँखें अपने आप पे।।।
।।।
मुझे मालूम था
फिर फिर क्यों
जान के भी अनजान रहा
काटो को देखता रहा।।।
कब फूलों की खुश्बू आयी पता न चला।।।

अब मैं फूलों को ढूंढ रहा हु
पर काटे ही काटे नज़र आ रहे है!!!
और नज़र से नज़र के मिलने की ख़्वाहिश
लिए फिरता
धुप में छाव को ढूंढ़ता एक दिल अधूरा सा ज़रा ज़रा।।
।।।
प्यार तुम
लम्हें वो पल
तारीफ़े ऐ दिल
कुछ तो कह उसे
बेख़बर है वो
प्यार से दूर
डरता क्यों ?
एक बार प्यार के
महखाने
से ड़ोर सजा

किन्तु परंतु क्यों?
तुमसे से मिला
आईने को देख
चलता चला।।।
चलता चला।।।

तुम देख रही थी।।।
और मैं खुद का ही पिछा करता जा रहा था
।।।

क्या कहता ?
जब खुद से ही हु लापता।।।



तेरी आँखों को नज़र के सामने से निहारा आईना के प्रतिबिंब से।।।
जब तेरी नज़र मेरी नज़र से न टकराई थी।।

फिर ।।।
देखता रहा।।।समुंद्र की गहरायी
सूरज की तीव्रता से।।।
और खुद ही कैद हो गया।।।
आईने के अंदर दूसरी दुनिया में।।।
और भुलता हुआ मैं जो भी हुआ।।।
शायद में गलत था।।।
और गलती कर बैठा।।
दारू का कांच टुटा और दिल भी शायद।।।
रूके
और फिर चल दिए
मंज़िल से नाराज़ तलाश
एक दूजे से मिलने की ख़्वाहिश
सोने न दे।।।
फिर रुक गए
और सोचने लगे
।।।
सोचते सोचते उस जमाने का
सोचते सोचते यह जमाना भी बीत गया
वाक़ई में फिर सोच में पढ़ गया हूं मैं
क्या करता
नजाने कैसे ज़ी रहा हुँ
तेरे बिन।।।
शायद में तनहा नहीं।।
पागल सा हो गया हूँ।।।
दीवाना।।।
अपनी दवा।।।मेहखाने में ढून्ढ रहा है।।।
पर हक़ीक़त से दूर
खुद को रेहस्मय दर्द में डूबा रहा हूँ।।
।।।
मैं मैं न रहा
तेरे ख्वाब में छुप गया
नज़र ए दिल
दिल चोरी मेरा
तूने किया
चलो अच्छा ही किया

अब तेरा ख्वाब मेरा ख्वाब सा।।।
शायद किस्सा हम लिखेंगे अब दिल का।।
ईंट को रंगता दिल
आसमान और चंद्रमा
थोड़ा सा प्यार ढूंढ़ता यह दिल

फ़क़ीरा
एक लम्हा
दिल से दिल्लगी से दूर
सच्चा ईश्क़ की तलाश में
गुमशुदा मैं
।।।
दबे पांव
एक आहट
मन ही मन
बेचेनी
मनो की आकाश
का रंग कई रंगों से घुलता
नदियों से बेपनहा मुहब्बत में घुलता
सुलझा सा मन मनो फिर से उलझ गया
एक गहरी सोच में।।
फूलों के रंग को देख
एक पहेली में खो गया मैं
उस वक़्त से दूर
उसके इतने पास मैं
फिर भी इतना गुमसुम
सुस्त परिंदा मैं क्यों
रंग में बेरंग सा यूँही
वक़्त को बीताता
उससे जुदा जुदा
जुड़ने की ख्वाहिश
मन में लियें रखता
।।।
जिंदगी
और हँसती यादें
क्या करता
रविवार  बीतता
केवल याद में
बिन चाय पिये
बस लेटे हैं
यूँही यूँही
तड़पती आत्मा की तरह
फिर एक आवाज़ आयी
तुम क्यों जिन्दा हो?
जवाब दो
जवाब दो
जवाबे आवाज़ चली गयी
एक जवाब लिए
ख़ामोशी आँखों में
और बहता वक़्त
।।।
मेरा पागलपन
तेरी याद
क्यों जुड़ा हुआ।।
ये सोच के
मेहखाने की ओर चला गया
घुलने से भी न घुला
ये रंग है कैसा।।।
जवाबे दिलरुबा
दिल्लगी भुला
।।।
चिल्ला चिल्ला के
चीखती उसकी निगाहें
बिन कहे
दर्द ए फ़रियाद में
जवाबे हँसी
उसको किसी बात पे
अंजान से जवाब में
बिन सवाल के
गुस्सा कुछ इस कदर की
डरता हूँ अब मुस्कराहट से
अब कहना ही क्या!!!
घूमते घुमते
तीन पत्ती
और फूलों की महक़
मुझे बावला करे
रिम झिम बूँद में
कुछ सुलझे
कुछ अनसुलझे
पहेली को समझता
यह पागल मन।।
।।।
अब रात
पर तेरा चेहरा
पूरी सुबह जैसा
मन को मोहः लिया
तुम हो तो अच्छा लगता है
दिल से दिल मिलते है
और सब आसान सा
पर तुम न हो तो
तबीयत ही खराब
।।।
तेरी पुकार
ओ साथियां
प्यार भरी हँसी
तेरी जुल्फ को में निहारूँ
तूझसे ही प्यार करू
तुझे देखते ही ईश्क़ में डूबा रहू
बस तुझे देखता रहु।।।
बस तुझे देखता रहु।।।
तू मेरी दवा  ।।।सी है।।।
।।।
मैं हुँ
तेरी आंखों में
कुछ यादों में जिन्दा
पर कब तक?

लोग कहते हैं
की मैं ज़िंदा नहीं
।।।।
मैं तुझे देखता
चाँद की सिफ़ारिश करता
शाम और सुबह
तेरी यादों में डुबा
और वक़्त ए ख़ुशी में
तेरी दुनियां में खोया
न जाने क्या पाया
चाय ठंडी हो गयी दोबारा
यूँही यूँही!!!
नज़र के सामने तू है
तेरी कशिश
तेरी आरजू
तेरी। आँखों को चूमता ये दिल ऐ दरिया
ज़माने से दूर ।।।केवल दिल से बात करता हर लम्हा
।।।
तुम मुझे।।।
देखो
उसी तरह
मेरी आंखोंमें
तुम खूद को पाओगी
जैसे की जल परी ।।।



मैं तुम्हे ढूंढ रहा हुँ धुंध भरी रातों में अब भी वहीँ
उसी जगह जँहा रोज़ मिला करते थे।।।
और प्यार भरी निगाहों में शामिल ए इक़रार।।।
खोये खोये एक दूजें में
ज़माने से दूर ।।।
केवल दिल ही दिल में रहा करते थे।।।
तुम साहस रखो
वक़्त खराब हो
तुम चिंता न करो
यूँही आगे बढ़ो
वक़्त से सीख
और
आगे बढ़ते जा

।।।
थोड़ी सी मस्ती
थोड़ा सा प्यार
और बीत जाये ये ज़िन्दगी
थोड़ी ईश्क़
थोड़ी मुहब्बत में
और
थोड़ा प्यार में
।।।



।।।
चलो जल्दी
तुम तो डूबे मुसाफ़िर हो
कस्ती को मत डूबने दो

उस पार
इस पार
नदी से बातें करता

मैं एक मदिरा
चला एक प्याला लेने
फिर से एक बार उसे याद ए दर्द में देखा
तो ज़ाम खली थी


सूखे मन में डूबती ख्वाहिशें
बेपरवाह जगह जाते ही।।
कदम में आहाट सी मीठास

और
कांच टूटा शाराबी दिल ए बेवफ़ाई में झूठा।।।
अवारा ।।।बावरा दिल ए चुप्पी।।।
खामोशिया ए मदहोशी।।।
।।।।
रहता हूं तेरे दिल में
हाँ पूरी तरह
तेरी आँखों में क़ैद में

जुड़ गया हूं
तूझसे मै
खुद मे
।।।
आखिर किस नशे में चूर
ऐ दिल
बता भी दे
क्यों है इतना घूम
जुड़ा जुड़ा सा दिल ए ख़ामोशी
बस एक पल भर की है मदहोशि
फिर काली रात।।।
फ़िदा हुआ
ऐ दिल ए मुस्कान
दर्द भरी मंज़िल इ जुनूनियात
तुम्हारी मुस्कान ए दिल
दिल आज़ाद

।।
यूँही फिरता
ज़रा ज़रा सा पागल
फिरता यूँही यूँही
कुछ कुछ सोचता यह दिल
अवारा दिल
दिमाग से दूरी करता
केवल दिल की सुनता
फिर चाहे कुछ हो
खुसी हो या ग़म
खुसी खुसी सहे!!!
नाजाने उसका दिल
जो की दुनिया से कुछ न बोलता
मन ही मन दर्द में चुभता है
फिर भी कुछ न बोलता
अपने आप में ही खोया
एक अंजान रास्ते में रुका
और दर्द भरे  बादल में घुलता
मेघा का आने का इंतज़ार करता
अंजान है उसका दिल
नादानियों को जो सच समझा!!!
नशे में मैं तेरे
कब तक तदप रहा हु
तेरी बूँद आशिकी की
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