मोहिनी सूरत मित भाषी ज्यादा लिखूं लगे आभासी खोलूं आंखें नजर न आये बंद आंखों में वही समाये। लाज के मारे दफन सीने में नजाकत नहीं इस जीने में नींद हमारी सपने तुम्हारे राज बस शब्दों में जाये उकेरे। भटक-भटक अटक-अटक जीवन जाये लटक-लटक बिन तेरे लोग कहते मैं जी रहा सटक-सटक।।