यह दिन भी रंग बदलता है मुझे रोज आगाह करता है सुबह सुर्ख लाल जैसे बाल के गाल छिपे हों आंचल लाल। दोपहर में सफेद जैसे पुरुषार्थी का भेष तपकर करता सजीवों का पोषण देता श्रम का संदेश। बरसात से पहले बन जाता शांत जैसे योगी फिर मचाता शोर लुटाता खजाना जैसे कोई भोगी। सायं शांत सा समा जाता काली रात आगोश याद करते हुए जैसे बीते समय के रंग और मांग रहा हो फिर सुबह का जोश यह दिन भी रंग बदलता है मुझे रोज आगाह करता है ।।