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Aug 2024
यह दिन‌ भी  रंग बदलता है
मुझे रोज आगाह करता है
सुबह सुर्ख लाल
जैसे बाल के गाल
छिपे हों आंचल लाल।
दोपहर में सफेद
जैसे पुरुषार्थी का भेष
तपकर करता सजीवों का पोषण
देता श्रम का संदेश।
बरसात से पहले
बन जाता शांत जैसे योगी
फिर मचाता शोर
लुटाता खजाना जैसे कोई भोगी।
सायं शांत सा समा जाता
काली रात आगोश
याद करते हुए जैसे बीते समय के रंग
और मांग रहा हो फिर सुबह का जोश
यह दिन‌ भी  रंग बदलता है
मुझे रोज आगाह करता है ।।
Mohan Sardarshahari
Written by
Mohan Sardarshahari  56/M/India
(56/M/India)   
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