एक कहानी
सुनी होगी आपने कहानियां तो बहुत सारी, काल्पनिक, दिलचस्प, रसीली अनेक
पर आज की कहानी जुड़ी है हमारे जड़ो के साथ, विशाल घटादार पेड़ था एक;
बच्चे उसकी छांव में खेलते थे, बूढ़े लड़ाते थे गप्पे, कभी न कभी बैठा था, हरेक
जीवनभर, बहुत पत्थर झेले थे उस पेड़ने, स्वादिष्ट आम लगते थे जो उस पर
कच्चे आम, खट्टे और मसाले के साथ, लगते थे चटपटे; मझे लेता था अचार का, हर घर
और जब वो पक जाते तो आमरस खाते थे बच्चे और बूढ़े; जाता था पेट भर
एक दिन अचानक उसको काटने आ गए कुछ लोग; नया रास्ता बनाने वाली थी सरकार
इस मुद्दे पर बहुत सारे लोगोंने इस बात का विरोध किया, बार-बार, लगातार
जब कुछ न हुआ तो तय हुआ हम अपनाएंगे गांधीजी की रीत, अहिंसा और असहकार।
मंत्रणा हुई अनेक, बैठके हुई बहुत सारी; अब मामला हो गया था सचमें संगीन
" हम पेड़को न छोड़ेंगे अकेला"; लोगोंने बनाये चार दल, तय हुआ हर दल पहरा देगा छे घंटे, रातदिन
लोकशक्ति जीती, झुकना पड़ा सरकारको, बच गया पेड़; साबित हुआ, कुछ हांसिल नहीं होता, सहकार बिन ।
तो चलो हम आजसे पेड़ नही काटेंगे, नहीं किसीको काटने देंगे ।
Armin Dutia Motashaw