Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Nov 2022
थोड़ी ही सही,
आज समझ आरहा है,
कितना मुश्किल है खुद को रोकना।
हमेशा कूद से कहती रहती हूं,
फ़ुरसत नहीं है इतना कि कंदौ पर जो भोज है,
उसका वजन ही भूल जाऊं,
बढ़ने की जो इरादै है, उनकी एहमियत ही भूल जाऊं,
फिर भी नजाने क्यौ ,
मांग लेती हूं इजाजत अपने आप से,
दौ पल के लिए ही सही,
खयालौ की दुनिया में को जाऊं।
Bvaishnavi
Written by
Bvaishnavi  20/F/India
(20/F/India)   
Please log in to view and add comments on poems