थोड़ी ही सही, आज समझ आरहा है, कितना मुश्किल है खुद को रोकना। हमेशा कूद से कहती रहती हूं, फ़ुरसत नहीं है इतना कि कंदौ पर जो भोज है, उसका वजन ही भूल जाऊं, बढ़ने की जो इरादै है, उनकी एहमियत ही भूल जाऊं, फिर भी नजाने क्यौ , मांग लेती हूं इजाजत अपने आप से, दौ पल के लिए ही सही, खयालौ की दुनिया में को जाऊं।