हृदय प्रभु ने सरल दिया था, प्रीति युक्त चित्त तरल दिया था, स्नेह सुधा से भरल दिया था , पर जब जग ने गरल दिया था, द्वेष ओत-प्रोत करल दिया था , तब मैंने भी प्रति उत्तर में , इस जग को विष खरल दिया था, प्रेम मार्ग का पथिक किंतु मैं , अगर जरुरत निज रक्षण को, कालकूट भी मैं रचता हूँ, हौले कविता मैं गढ़ता हूँ, हौले कविता मैं गढ़ता हूँ।