असमंजस के बादल, भले ही आसमान को ढक ले, उन्मे इतना दम नहीं की रोशनी को रोक ले.. लबज और अल्फास मिलेंगे साथ, उसी एकले आसमान के नीचे कुछ रूठे, कुछ मिठे मतलाब के साथ उभ्र आएंगे कागज पे वे भी खुदके वजुद के साथ !
शयाही भले ही अपना रंग बदले, आस्थिर मन की कश्ती कुछ टेढे मेडे राश्ते मोड ले .. आंखें क्यों न अंधे होने का नाटक रच ले शब्द है जिद्दी, कुछ तो कहके ही जाएंगे!