क्या यत्न करता उस क्षण जब युक्ति समझ नहीं आती थी, त्रिकाग्निकाल से निज प्रज्ञा मुक्ति का मार्ग दिखाती थी। ======== अकिलेश्वर को हरना दुश्कर कार्य जटिल ना साध्य कहीं, जटिल राह थी कठिन लक्ष्य था मार्ग अति दू:साध्य कहीं। ========= अतिशय साहस संबल संचय करके भीषण लक्ष्य किया, प्रण धरकर ये निश्चय लेकर निजमस्तक हव भक्ष्य किया। ======== अति वेदना थी तन में निज मस्तक अग्नि धरने में , पर निज प्रण अपूर्णित करके भी क्या रखा लड़ने में? ======== जो उद्भट निज प्रण का किंचित ना जीवन में मान रखे, उस योद्धा का जीवन रण में कोई क्या सम्मान रखे? ======== या अहन्त्य को हरना था या शिव के हाथों मरना था, या शिशार्पण यज्ञअग्नि को मृत्यु आलिंगन करना था? ========= हठ मेरा वो सही गलत क्या इसका मुझको ज्ञान नहीं, कपर्दिन को जिद मेरी थी कैसी पर था भान कहीं। ========= हवन कुंड में जलने की पीड़ा सह कर वर प्राप्त किया, मंजिल से बाधा हट जाने का सुअवसर प्राप्त किया। ========= त्रिपुरान्तक के हट जाने से लक्ष्य प्रबल आसान हुआ, भीषण बाधा परिलक्षित थी निश्चय हीं अवसान हुआ। ========= गणादिप का संबल पा था यही समय कुछ करने का, या पांडवजन को मृत्यु देने या उनसे लड़ मरने का। ========= अजय अमिताभ सुमन सर्वाधिकार सुरक्षित
जिद चाहे सही हो या गलत यदि उसमें अश्वत्थामा जैसा समर्पण हो तो उसे पूर्ण होने से कोई रोक नहीं सकता, यहाँ तक कि महादेव भी नहीं। जब पांडव पक्ष के बचे हुए योद्धाओं की रक्षा कर रहे जटाधर को अश्वत्थामा ने यज्ञाग्नि में अपना सिर काटकर हवनकुंड में अर्पित कर दिया तब उनको भी अश्वत्थामा के हठ की आगे झुकना पड़ा और पांडव पक्ष के बाकी बचे हुए योद्धाओं को अश्वत्थामा के हाथों मृत्यु प्राप्त करने के लिए छोड़ दिया ।