Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Sep 2021
सर को कभी ना जो झुकने दे
मान को जो ना गीरने दे
हर उलझनो को जो सुलझा दे
हर मुसीबतो से जो डट कर लड़े
हा सायद पुरी तरह ना जीते
पर सच का साथ कभी ना छुटे
खुद के सोच से बस वो आगे बढ़े
ओरो को यह अभिमान है लगे
पर सर पर सजा ताज यह बने
जीसे स्वाभिमान हम कहे
वो स्वाभिमान जो नाहि कभी सर को झुकने दे
ना ईरादो को तुतने दे
नाही कभी कदम है दगमगाए
सच्चाई की राह जो हम अपनाए
वो हि तो स्वाभिमान हे कहलाए
और वही हमारी पहचान है बन जाए|
Akta Agarwal
Written by
Akta Agarwal  25/F/Kolkata
(25/F/Kolkata)   
Please log in to view and add comments on poems