कभी शायरों की महफिल में खो कर देखो रंजो गम के दरिया में खुद को डुबोकर देखो भावनाओं की नाव को बहते हुए देखो दरिया के उस पार बैठी आशारूपी दुल्हन उस दुल्हन के घूंघट को कवियों के शायरीरूपी कर से उठते हुए देखो तब स्वयं ही समझ जाओगे कवि की कल्पना को लेखो-जोखो।