सरकारें आती हैं सब्सिडी, लोन, बिजली से भरमाती हैं कर्ज के परिणामों से अनभिज्ञ! किसान हंसता है कुछ नकली हंसी कुछ राहत की मदहोशी यह देख सरकार पैंतरा बदलती है अनाज को खुले बाजार की सुपुर्दगी का निश्चय करती है किसान रोता है अपना आपा खोने पर मजबूर होता है!