Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Oct 2020
वर्षा के बाद
इंद्रधनुष की प्यास
उसके रंगों की तलाश
उनको छूने की आस
यह है अजीब मोह पाश

खूब हैं दोस्त फिर भी
महिला मित्रों की तलाश
उसमें भी कशिश की आस
चेहरे में हो चंद्र कला का आभास
वास भी हो बहुत सुवास
फिर सहवास की तलाश
यह है पतन का पाश

पीने को नीर
और पवित्र क्षीर
फिर भी मय की तलाश
उसमें रंग और फ्लेवर
की नई-नई आस
पीने के बाद डिस्को
पर झूमने की प्यास
यह है कभी ना मिटने
वाली लालसा के पाश
Mohan Jaipuri
Written by
Mohan Jaipuri  60/M/India
(60/M/India)   
56
 
Please log in to view and add comments on poems