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Mohan Sardarshahari
Poems
Aug 2020
लाचारी सिरमौर है
हम
स्वयं को भूल रहे हैं।
रोजगार के लिए
दर-दर भटक रहे हैं
रोजगार हैं कि खुद ही
बेरोजगार हो रहे हैं
हम अनजानी सी अंधी
दौड़ लगा रहे हैं।
हमारी आवश्यकताएं
हमारे बुते से बाहर
हो रही हैं
चींटी की तरह
पंख लगाकर विनाश
की ओर उड़ रही हैं
आशाओं के मार्ग पर
अंधेरे सो रहे हैं।
गांव में ना जोत बची
ना ढोरों के लिए ठौर है
शहरों की भीड़ भाड़ में
निराशाओं का शौर है
इस छोर से उस छोर
बस लाचारी सिरमौर है
Written by
Mohan Sardarshahari
56/M/India
(56/M/India)
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