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Jul 2020
ऐसा लग रहा है
जैसे दरिया से लौट रही हो
दरिया की सारी नीलिमा
लिपटाकर साथ ला रही हो
पीछे सुनहरी रेत का
सिर्फ जखीरा छोड़़ आई हो
मेहरबानी बजरों पर हुई
जो आप के सवार होने से
नीले बच गये हों
हीरे मोती दरिया के
पर्स में भरके लाई हो
हुस्न और वैभव सारा
लूट समुद्र का किसका
भाग्य लिखने जा रही हो
Mohan Jaipuri
Written by
Mohan Jaipuri  60/M/India
(60/M/India)   
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   Yashashvi
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