Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Jun 2020
दीर्घ वृत्ताकार तेरा मुखड़ा
जिस पर सूर्य जैसी बिंदी
आंखें मय के प्याले जैसी
उड़ा दे सबकी निंदी
झूमर तेरे शंकवाकार
जो कर दें दिल बेकरार

गर्दन तेरी सुराही दार
जिसमें मैचिंग वाली माला
साड़ी पहने लाल पर
दुर्गा लगती है ये बाला
होंठ तेरे पंखुड़ी जैसे
नाक है सुआदार

चूड़ियों से भरे हाथ तेरे
बिखेरे इंद्रधनुषी रंग
घुंघराले बाल तेरे
अद्भुत लहराने का ढंग
चश्मे में से जब तू देखें
चेहरा लगे ईमानदार

पूजा वाली थाली संग
लगती नारी हिंदुस्तानी
जिधर से भी तू गुजरे
उधर मौसम हो जाए तूफानी
देख तुझको जी‌ ललचाये
जैसे तू हो रसगुल्ला शानदार

इतना सब सोच समझ कर
लिखने का चल दिया अपना दांव
मैं दूर देश का सीधा सादा
बड़ा दूर ही मेरा गांव
गलती हो तो माफ करना
यही जहन मे आया सरकार।
Mohan Jaipuri
Written by
Mohan Jaipuri  60/M/India
(60/M/India)   
  31
     Eli and Melancholy of Innocence
Please log in to view and add comments on poems