खुशी का ठिकाना ना जानू ना दु:ख का प्रमाण जो आना है आएगा क्यों सूखें मेरे प्राण? कल तक उड़ते थे आकाश में आज है घर में विराजमान जो मिलता है सहज ही करो उसका सम्मान कल तक हाट बाजार में तरह-तरह के सामान आज रुपया जेब में फिर भी बाजार सुनसान जो कल तक कहते थे सब कुछ हैं विज्ञान और अनुसंधान आज उनके ही तीर को नहीं मिल रहा कमान हम तब तक ही कर पाते जब तक प्रकृति दे वरदान बिन उसकी अनुकूलता हमारा कोई न मान जितना यहां मिले मौका उतनी हंसी कर लूं नाम जो आना है आएगा क्यों सुखें मेरे प्राण?