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Aug 2019
तुम्हारा पवित्र स्नेह
सूर्य की लालिमा में
रोज देखा करती हूं

नाश्ते के पहले कोर
के स्वाद में
रोज अपना बचपन
महसूस करती हूं

दोपहर के सूर्य के
तपते तेज में रोज
तेरा ही अक्स देखती हूं

शाम को चंद्रमा की चांदनी में
तेरे लिए मां के निर्मल आंचल
सा सुकून तलासती हूं

रक्षाबंधन को कोई
बंधन ना समझना कभी
यह उस पवित्रता का नाम है
जिसे मैं हर भाई-बहन के
पवित्र स्नेह में अनुभव करती हूं

देना कुछ है तो
लौटा दे मेरा तेरे साथ
गुजरा बचपन कभी
बाकी दुनिया तो
अब जान ली है मैंने सभी।
Mohan Sardarshahari
Written by
Mohan Sardarshahari  56/M/India
(56/M/India)   
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     Smiling Queen and RVani Kalyani
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