एक शाम मुझे तुम मिल जाओ कुछ बातेँ तुमसे करनी हैँ, उजली-धुँधली तस्वीरों की कुछ यादें ताजा करनी हैँ..
वो बाग-बग़ीचों में मिलना खेतों-खलिहानों में मिलना, वो आमों के बागों वाली पगडंडी फिर से चलनी है, एक शाम मुझे तुम मिल जाओ कुछ बातेँ तुमसे करनी हैँ...
वो छुप-छुप कर तुमसे मिलना क्यारी में फूलों का खिलना, वो महुआ की महकती डाली आज फ़िर से पकड़नी है, एक शाम मुझे तुम मिल जाओ कुछ बातें तुमसे करनी हैँ..
वो नदिया के गीले तट पर साँझ ढले का अँधियारा, वो सरसों के खेतों की मेड़ो वाली तँग राह फिर से गुजरनी है, एक शाम मुझे तुम मिल जाओ कुछ बातें तुमसे करनी हैँ...
वो नीम के फूलों का गुच्छा गेंहू की भुनी हुयी बाली, वो गाँव के कुयें में पानी वाली तेरी मटकी फिर से पकड़नी है, एक शाम मुझे तुम मिल जाओ कुछ बातेँ तुमसे करनी हैँ..
वो गाँव की हाट का कच्चा रास्ता सावन में मेलों के झूले, तीखे-तीखे चाट-पकौड़े वो मिर्ची फिर से चखनी है, एक शाम मुझे तुम मिल जाओ कुछ बातेँ तुमसे करनी हैं.
वो मन्दिर के पिछवारे में खण्डहर की टूटी दीवारें, मख़मल के घास बिछौने पे ढलते सूरज की अगुवाई फिर से करनी है, एक शाम मुझे तुम मिल जाओ कुछ बातें तुमसे करनी हैँ...
वो नहर का छोटा सा पुल पानी पे सूरज की किरणें, मेरी रफ़ कॉपी से बनी कागज़ की नाव चलानी है, एक शाम मुझे तुम मिल जाओ कुछ बातेँ तुमसे करनी हैँ..
वो इमली के पेड़ों की खटास अमरूद के मौसम की मिठास, वो बेरों के काँटो की चुभन मुझे गालों पे फिर से सहनी हैँ, एक शाम मुझे तुम मिल जाओ कुछ बातेँ तुमसे करनी हैँ....
वो चिड़ियों सँग आवारा पन बादल का बंजारा पन, वो हवा में उड़ती लाल पतंग तेरे लिये पकड़ कर लानी है, एक शाम मुझे तुम मिल जाओ कुछ बातेँ तुमसे करनी हैँ..
तूने अपनी नादानी में जो चीजें मुझस छीनी हैँ, जब साथ था अपना हरदम का वो ज़िन्दगी फिर से जीनी है, एक शाम मुझे तुम मिल जाओ कुछ बातेँ तुमसे करनी हैँ...