यह धूप - छांव का खेल नहीं अंतरमन की कशमकश है कल तक थे जो धर्मनिरपेक्ष आज उनकी दक्षिणपंथ में ठसक है यह कैसा खेल राजनीति का जिसमें आचरण का रक्षक नहीं सवा सौ करोड़ के प्रतिनिधियों में जरा भी पार्टी निष्ठा की ललक नहीं ऐसे किरदार क्या वादा निभाएंगे जिनको चेहरा बदलने में लगे पलक नहीं मतदाता कहां जाए जब कहीं भी उनके सामने निष्ठावान का विकल्प नहीं सभी लैपटॉप ,साइकिल और नकदी की टॉफी देते हैं किसी के पास बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार का तोड़ नहीं लोगों को ही समझदार होना होगा क्योंकि लोगों की समझदारी का जोड़ नहीं।