आज फिर बारिश ने छेड़ी है वही धुन सोचा कहां खो गए हो गए गुम तुम मिट्टी की खुशबू ने फिर याद दिलाई, तुम्हारी कुछ बातें और वो दो प्याली चाय तुम शायद यही कही हो, बस फिरसे मिलने की देरी है पता है मुझे तुम नही आने वाले लेकिन क्या करूं इंतेज़ार करने की बुरी आदत ये मेरी है।