Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Jan 2019
आयी थी मै भी पापा की परी बनकर
मा मुझे बनाकर रखना चाहती थी आंगन की गुड़िया कहा था यह किस्मत को मंज़ूर
मा , बाप का दामन छूटा ,
लेखो ने ना जाने कहां ला कहां ला छोड़ा।
यहां की हवा कुछ बदली सी है
ना जाने क्यूं यहां नाम बदल जाते हैं
हर रात मैंने सोना को मोना और रिया को जिया मै बदलते देखा है
हा
हर रात मैंने चांद की चांदनी मै चांदनी रंग के सिक्कों की खनक पे जिस्म बिकते देखा है
चांद की चांदनी को टटोलती चकोर जैसे थे हम
सूरज की चुभती किरण लगते हम

नन्ही जान को उसके आंचल से बिछड़ते देखा है मैंने
जिंदा लाश को चलते देखा है
किस्मत का रुख तो देखो ऐसा बदला
इंसानों मै वैशी दरिन्नदा जाग उठा
हा
एक दरिंदे को एक मासूम को नोचते देखा है
मैंने सूरज को चांद निगलते देखा है
माना पैसे मै कमाती हु
पर देने तुम ही तो आते हों
हा माना मै सोती हूं तुम्हारे साथ , पर उसी बिस्तर पर तुम भी तो रात बिताते हो
एक हाथ से ताली नहीं बजती केहने वालों कहां जाता हैं तुम्हरा ज्ञान सागर जब तुम हमे ही चरित्रहीन बताते हो , क्योंकि भागीदार तो तुम भी हो
मेरे काम से ज्यादा मेरी एक कहानी है
ना तुम सुनोगे ना ही मै सुनाऊंगी
मेरी मासूमियत मेरा लड़कपन हो गया बचपन मै कहीं दफन
ना जाने किसे कहते है बचपन
हमारे सवालों पर उड़ा दिया जाता है कफ़न
मरकर भी नहीं होगी पूरी इंसाफ की कसम
कभी नहीं भरेंगे हमारे यह जख्म
याद रखना मुझे वैशिया कहने वालों मै एक कला हु तुम्हारी कलाकारी का
आखिरी मै सुन मेरे मतवाले मुझे जब तू देखे समझना दुनिया का आइना देख लिया है।
sorry if I hurt anyone with this poem.
Hollow Garessy
Written by
Hollow Garessy  21/M
(21/M)   
  414
 
Please log in to view and add comments on poems