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Sep 2018
ना हमे खुशी चाहिए ना तेरा शहर चाहिए,
बहुत प्यासा हूँ मैं बस थोड़ा ज़हर चाहिए,

ना दिन की ज़रूरत है ना ख्वाईश है रात की,
जी लूँ मैं जीभर के वो वक़्त मुख़्तसर चाहिए,

वक़्त से इल्तज़ा नही की वो ताउम्र हमारी रहे,
बस देखता रहूँ उन्हें वो मुसलसल पहर चाहिए,

ना सुकूँ की आरज़ू है ना तमन्ना है सिला की,
जो डूबा दे हमे उनकी उल्फ़त में  वो पुरजोश लहर चाहिए,

खूबसूरत ज़िस्म का क्या जो मिट्टी में मिल जाए,
जिसमें देख सकें हम खुद को वो चमकता हुआ नज़र चाहिए,

अग़र बिन उनके जीना पड़े तो ऐ मेरे ख़ुदा सुन,
जो मिटा दें हमें पूरी तरह  एक वैसा तेरा क़हर चाहिए.....
Shrivastva MK
Written by
Shrivastva MK  23/M/INDIA
(23/M/INDIA)   
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