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Deovrat Sharma
Poems
Aug 2018
ख़ुदगर्जी
●●●
जिन्दग़ी में कई उलझने हैं
कितनी हैं दुश्वारियाँ।
हर कद़म पर ठोकरें हैं
तल्ख़ियाँ मक्कारियाँ।।
◆◆◆
नींद-ओ-चैन खो सा गया
हर ओर है बेचैनियाँ।
ज़ेरोज़बर है सबकी दुनियाँ
मुख़तलिफ़ हैं कहानियाँ।।
◆◆◆
ख़ुदगर्जी में अब गर्क है
इमां पे चलने का चलन।
वो मरासिम-ओ-जहानत
सब लगती हैं नादानियाँ।।
●●●
©deovrat 02.08.2018
Written by
Deovrat Sharma
58/M/Noida, INDIA
(58/M/Noida, INDIA)
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