Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Jul 2018
●●●
काफ़िला-ए-हमसफ़र वो
था मिरा और दूर तक रहा।
रक़ीब-ओ-हयात ने कभी
उसे मिलने नही दिया।।

वो ग़ैरों के साथ चल दिया
द़ुनिया की भीड़ में।
हमने तनहाईयों को खुद का
हमसफ़र बना लिया।।

●●●
©deovrat 17-07-2018
Deovrat Sharma
Written by
Deovrat Sharma  58/M/Noida, INDIA
(58/M/Noida, INDIA)   
  237
       LostInFire, Jayantee Khare and Deovrat Sharma
Please log in to view and add comments on poems