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Deovrat Sharma
Poems
Jul 2018
बुझते च़राग
●●●
वो जो
मशरुफ़-ओ-मग़रुर था
ओर उफ़ ना कभी करता था।
उसकी
बेत़ाब निग़ाहों ने
जन्नत का ख़्वाब देखा हैं।।
क़ब्ल मे
वक़्त ने कुछ़
इस तरह करवट ली है।
जख़्म कुछ ऐसा
जिग़र पे खाया हैं।।
वो ना कभी भरता हैं।।
मुसल्सल
बुझते च़रागों
से है ख़्वाहिश-ए-रोशनी।
अज़ब सी
चाह है, ना वो जीता
ना ही सक़ूं से मरता है।।
ख़ुश्क
चेहरा ओ
लब-ए-तिश्नगी का आल़म ये।
हल्की सी
आह से भी अब
ज़िस्म सिहर उठता है।।
●●●
©deovrat 12-07-2018
Written by
Deovrat Sharma
58/M/Noida, INDIA
(58/M/Noida, INDIA)
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