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Jun 2018
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जख़्म खाके..
मुस्कराने का चलन...
अब आम़ हो चला है।

ग़ोया कि..
होस़ला-ए-जब़्त-ए-सित़म...
हद पार हो चला है।।

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जिस ग़म..
की  पनाहों में तब...
उसका सक़ून-ए-दिल था।

वो उस..
ग़म-ए महफ़िल से...
दिल-ए-बेज़ार हो चला है।।

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©deovrat 22-06-2018
Deovrat Sharma
Written by
Deovrat Sharma  58/M/Noida, INDIA
(58/M/Noida, INDIA)   
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