आओ बहनों फिर जोहर कुंड सजा लेते है । अग्नि के पावन तेज से ये जिस्म जला देते है
कोई भाई हमें उस नर्क के दर्द से बचाने ना आ पायेगा। खोफ का ये मंजर अब नहीं सहा जाएगा । रूह कांप रही है सोच कर कैसे जुल्म अबलाओं ने झेला होगा । सतीत्व के साथ नीचों ने हस हस के खेला होगा ।
उम्मीद मर गई है मेरी इंसाफ और कानून से हर चोखट की इज़्ज़त को राजनीति में उछाला जाएगा।
कुछ दिनों का किस्सा बन कर ये भी भूली बात होगी । ये लिखावट भी किसी भयानक दर्द की राख होगी । नहीं कर सकती अब कोई माँ बेटी की आबरू का बलिदान नहीं बन सकती अब कोई लड़की बदले का , हवस का सामान ।
खोफ से सनी रातों को अब ना ख्वाबों में देखा जाएगा सुनों मेरी अब हमें बचाने नहीं कोई कृष्णा आएगा
आखरी श्रंगार कर मोत का मजा लेते है । आओ बहनों फिर जोहर कुंड सजा लेते है ।