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Apr 2018
स्याही बेताब है कलम पाने को पर
अश्क इतने है कि शब्द नजर नहीं आ रहे ।
जस्बात माकूल है बेशक जताने को पर
दर्द इतने है कि लफ्ज़ सम्हाले नहीं जा रहे ।
Bhakti
Written by
Bhakti  26/F/India,Indore
(26/F/India,Indore)   
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   YUKTI and Jayantee Khare
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