Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Mar 2018
हाँ फिर से
तुमने अपनी बात में मुझे मना लिया।।
मैं एक डूबता मुसाफ़िर किनारे आ गया
नजाने क्यों ???



हाँ तूमसे मिलने।।
शायद
क्या फिर डूब जाऊंगा ये सोच रहा हुँ?

यह सुनते ही
तुमने जुल्फों में मुझें
कैदी बना दिया
और
और
चल दिए समुन्दर से कोसो दूर दूर बहोत दूर
एक अनजान डोर में जैसे की बंध गए हो जैसे।।।
।।।
Ravindra Kumar Nayak
Written by
Ravindra Kumar Nayak  30/M/India
(30/M/India)   
86
     Amit Narayan Satpathy and Rose
Please log in to view and add comments on poems