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Mar 2018
कभी शमा बयां करती है
कभी फ़िज़ा बयां करती है
अपनों को तो सब गले लगते हैं
किसी गैर को जो कुछ पल सुकून के दे सके तू
ऐसी सीरत ही तेरे इंसान होने की हक़ीक़त बयां करती है

कभी कलम बयां करती है
कभी श्याही बयां करती है
परेशानियों से तो सब घिरे हुए हैं
उसके बावजूद किसी की परेशानी जो बाँट सके तू
ऐसी शिद्दत ही तेरी दास्ताँ-ए-ज़िन्दगी की गहराई बयां करती है

कभी इनायत बयां करती है
कभी रिवायत बयां करती है
मंज़िल तो हम सब की तय है
किसी का हमसफ़र जो बन सके तू
ऐसी हिम्मत ही तेरी रूहानियत बयां करती है

कभी आरज़ू बयां करती है
कभी जुस्तजू बयां करती है
रईस तो ख्वाहिशों की पैमाइश कर ही लेंगे
किसी गरीब को जो ख्वाब दिखाने का इख्तियार रखे तू
ऐसी हसरत ही तेरी ईश्वर/इशू/ख्वाजा/नानक से क़ुरबत बयां करती है...
Written by
SaWal  25/M/India
(25/M/India)   
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