कभी शमा बयां करती है कभी फ़िज़ा बयां करती है अपनों को तो सब गले लगते हैं किसी गैर को जो कुछ पल सुकून के दे सके तू ऐसी सीरत ही तेरे इंसान होने की हक़ीक़त बयां करती है
कभी कलम बयां करती है कभी श्याही बयां करती है परेशानियों से तो सब घिरे हुए हैं उसके बावजूद किसी की परेशानी जो बाँट सके तू ऐसी शिद्दत ही तेरी दास्ताँ-ए-ज़िन्दगी की गहराई बयां करती है
कभी इनायत बयां करती है कभी रिवायत बयां करती है मंज़िल तो हम सब की तय है किसी का हमसफ़र जो बन सके तू ऐसी हिम्मत ही तेरी रूहानियत बयां करती है
कभी आरज़ू बयां करती है कभी जुस्तजू बयां करती है रईस तो ख्वाहिशों की पैमाइश कर ही लेंगे किसी गरीब को जो ख्वाब दिखाने का इख्तियार रखे तू ऐसी हसरत ही तेरी ईश्वर/इशू/ख्वाजा/नानक से क़ुरबत बयां करती है...