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Deovrat Sharma
Poems
Feb 2018
मासूम दिल
.....
संग-ए-दिल..और भी हैं ...इस ज़माने में !
तेरा ही ज़िक्र क्यूँ रहता है हर अफ़साने में !!
इश्क़ के गम किसको यूँ ही मिला करते है !
कुछ अलग बात है जो.. सब से आशना तुम हो !!
.....
जो मुनसिफ़ है बना बैठा.. वो ही मुज़रिम है !
याँ कितने है मुखोटे.. नही तनहा तुम हो !!
उसके मकतल में हुआ होगा है सर कलम मेरा !
ना अफ़सोस कर ए दिल, फरेब के मारे तुम हो !!
.....
ना भरम रख क़ि... वो तुझे मिल ही जायेंगें !
वो हैं हर दिल की चाहत... कहाँ मिल पाएँगे
जीने के और भी बहाने है इस दुनिया में !
जीना मुम्किन है तो जी.. क्यूँ ये भरम पाले हो !!
....
जिस्म की हवस... वो तो है आनी जानी !
रूह की ख़्वाहिंसे होती है सदा रूहानी !!
रूह से रूह का मिलना क्या कभी हो पाया ?
मेरे मासूम दिल ... क्यूँ इतने नासमझ तुम हो !!
deovrat - 23.02.2018 (c)
Written by
Deovrat Sharma
58/M/Noida, INDIA
(58/M/Noida, INDIA)
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