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Deovrat Sharma Jun 2018
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ज़मीं की धूल से उसने
ज़बीं अपनी सजाई है।

ग़ुलों को छोड़ के कांटों  
से कर ली आश़नाई है।।

◆◆◆

अज़ब सा शौक है या
कहें ये उसका पाग़लपन।

जु़बां खा़मोश है जब से
नज़र उनसे मिलाई है।।

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©deovrat 10-06-2018
Deovrat Sharma Dec 2017
...
तुमसे मिलना...
तुमसे बातें करना..
तुमसे रूठना...
या तुमसे बिछुड़ना...


सब कुछ...
एक ख्वाब सा है..
तुम तुम ना रहे..
बस एक अहसास सा है..


अब तो फकत..
चन्द सवालात..
अन्बूझ पहेली की तरह...
चेहरे की फीकी सी चमक..


एक ...
रवायत ..
की...
मानिंद..
तेरा अहसास
करा देती है..



**deovrat-12.12.2017 (c)
Deovrat Sharma Nov 2018
●●●
महकते फूल..
कुछ किताबों में।
जागती पलकों पे..
सजे ख़्वाबों में।।

मेरे अहसास हैं..
या कि गोयाई-ए-लब।
कुछ तो हैं सवालों में..
कुछ पोशीदा हैं जवाबों में।।

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©deovrat 27.11.2018
Deovrat Sharma Sep 2018
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अंदाज़-ए-इश्क
सबका है ज़ुदा ज़ुदा
यह जान लो।
गुफ़्तगू नज़रों से
या कि आश़नाई दिल से हो।।

पेंच नज़रों के चलें
या तो फ़कत
दिल से दिल की बात हो।
लाज़िम ये है मगर
कि तिस्नग़ी हर दिल में हो।।

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©deovrat 04.09.2018
तिस्नग़ी=desire, thirst
आश़नाई=affair, love
Deovrat Sharma Sep 2018
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धुंवाँ धुंवाँ सा समा है हर ओर धुंद फैली है।
फ़िजा में तल्ख़ी है..शब से हवा कसैली है।।

ऊँचे रसूख़वान हैं.. दख़ल रखते हैं हुक़ूमत में।
सुना है शहर में..कुछ नये लोगों ने..पनाह ली हैं।।

शक्ल इन्सानों की कैफ़ियत है दरिंदों जैसी।
उनके उजले है लिब़ास.. रूह मगर मैली है।।

लुट गया कारवाँ.. सब निगहबान गाफ़िल हैं।
अज़ब सा मंज़र है .. अनबूझ सी पहेली है।।

किसी मासूम की दबी दबी सी सिसकी हैं।
सहमा हुआ सा आल़म सुनसान सी हवेली है।।

किसकी नज़र लगी है आराईश-ए-गुलशन को।
जिधर भी देखिये अब सिर्फ झाडियां कंटीली हैं।।

धुंवाँ धुंवाँ सा समा है...हर ओर धुंद फैली है।
फ़िजा में तल्ख़ी है....शब से हवा कसैली है।।

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©deovrat 17.09.2018

रसूख़वान=resourceful
आराईश=Beauty
कैफ़ियत=nature
Deovrat Sharma Jul 2018
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उन
सफ्फ़ाक
बिल्लौरी  नयनों में
पोशीदा
वो
आँसुओं की बूँदें
खुद जैसे सजाये मोती
कुदरत ने
सीपीयों में
◆◆◆
इनको
सम्भाल लेना
आँखों से बह ना जायें
रख़ लेना प्यार से तुम
पलकों के पालने में

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©deovrat 14-07-2018
Deovrat Sharma Sep 2018
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मुसलसल आप जो
इज़हार-ए-प्यार करते हैं।
कहीं ये शक तो नही कि
हम आप ही पे मरते हैं।।

मोहब्बत यूँ तो है अपना
भी तास़ीर-ए-जिग़र।
मगर सच जानिये
फ़रेब-ओ-जफ़ा से डरते है।।

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©deovrat 15.09.2018
Deovrat Sharma Apr 2018
...
ना तो वो ही हम से वाकिफ़,
ना तो हम ही जानते हैं !
मंज़िल की बात क्या हो,
राहें भी तो ज़ुदा   हैं !!
~~~
यहाँ दिल-से-दिल का मिलना,
इक इत्तेफ़ाक समझो !
ख़यालों में भी मुसलसल,
सदियों के फ़ासले हैं !!
~~~
यहाँ दोस्तों से  मिलना,
एक हसीन हादसा है !
यहाँ फूलों की है ख़ुशबू,
हर ओर वलवले हैं !!
~~~
ना तलब पसंदगी की,
ना ही कुरबतों की चाहत !
दो लफ्ज़-ए- आफ़रीनी,
बातों के सिलसिलें हैं !!

~~~
(c) deovrat - 04.04.2018
Deovrat Sharma Mar 2015
...
खुदा ना सही ..
दोस्त बनाए रखना....
नज़रों में ना सही ..
दिल में बनाए रखना ...


वक्ते कब्ल कुछ लफ्ज़ मिले है मुझको..
वें किताबों में नही.. दिल में बनाए रखना..
तेरी खुश्बू जो हवाओं में महक जाती है ...
इसी महक को फ़िज़ाओं में बनाए रखना....


मेरे  चंद अशआर,  तुम्हारे मौज़ू हैं..
इन अल्फाजों को ना यूँ बेकार में जाया करना...
तेरी मोज़ूद्गी मुझ पे ना कयामत ढाए...
ऐसा कुछ कर ..की मेरे होश बचाए रखना...


ना तो ज़जबातों पे ना काबू है ना ही दिल पर..
हां तेरी ज़ुलफ के खमो पेंच में उलझाए रखना...
ये चन्द अलफ्ज़ नही.....खामोशी का अफ़साना है...
इन्हे हर पल सीने से लगाए रखना ...


       *deovrat 02.03. 2015 (c)
Deovrat Sharma Feb 2018
.....
तेरे रुखशार प आॅचल है
   या घने गेशू है।
      काली बदली में कहाँ...
        माहताब छुपा पायेंगे!!


मेरी पुरनम निगाहों में...
      इतनी ताब कहां ।
         कि गुलों  शबनम
            पे नज़र डालेंगे!!!


मेरे शानों पे है...
    बला की गर्दिश!
      तेरी ख्वाहिशों का...
        बोझ उठा ना पायेंगे!!


क्या बताएं क्यूँ कहा..
    किस्सा-ए-ग़ुरबत बज़म में!
     अब ये हाल-ए-दिल की बातें..
       किस को क्या समझायेंगे!!


           *deovrat-09.02.2018 (c)
Deovrat Sharma Sep 2019
x-x-x-x-x

तुमने स्वीकार किया ना किया..
मैने तो अपना मान लिया !
प्रिय मन में मुझे बसाना था..
तुम भ्रांति ह्रदय में बसा बैठी !!
~~~

प्रिय स्नेह निमन्त्रण दिया तुम्हे..
तुमने क्यूँ उसको टाल दिया !
मेरे अरमानों की पुष्प लता को..
यूँ ही किनारे डाल दिया !!
~~~

मैं स्वयम् ही अपना दोषी हूँ..
इक तरफ़ा तुमसे प्यार किया !
­ ना कुछ सोचा, ना समझा कुछ..
बस जा तुमसे इज़हार किया !!
~~~

वो एकल प्रणय निवेदन ही..
कर गया मेरे मन को घायल !
तुम समझ ना पाई मर्म मेरा..
और व्यग्र फ़ैसला ले बैठी !!
~~~

अब ऐसे प्यार की बातों का..
क्या मतलब है क्या मानी है !!
मैने क्या चाहा समझाना..
तुम जाने कुछ और समझ बैठी !!

प्रिय मन में मुझे बसाना था..
तुम भ्रांति ह्रदय में बसा बैठी !!


x-x-x-x-x

@deovrat 12.09.2018
Deovrat Sharma Mar 2018
...

तुमने स्वीकार किया ना किया..
मैने तो अपना मान लिया !
                                    
                          ­              प्रिय मन में मुझे बसाना था..
                                           तुम भ्रांति ह्रदय में बसा बैठी !!

~~~

प्रिय स्नेह निमन्त्रण दिया तुम्हे..
तुमने क्यूँ उसको टाल दिया !
                                      
                        ­                मेरे अरमानों की पुष्प लता को..
                              यूँ ही किनारे डाल दिया !!

~~~

मैं स्वयम् ही अपना दोषी हूँ..
इक तरफ़ा तुमसे प्यार किया !
                                          
                    ­                      ना कुछ सोचा, ना समझा कुछ..
                                        बस जा तुमसे इज़हार किया !!

~~~

वो एकल प्रणय निवेदन ही..
कर गया मेरे मन को घायल !
                                  
                                     तुम समझ ना पाई मर्म मेरा..
                                 और व्यग्र फ़ैसला ले बैठी !!

~~~

अब ऐसे प्यार की बातों का..
क्या मतलब है क्या मानी है !!
                                
                                  मैने क्या चाहा समझाना..
                                              तुम जाने कुछ और समझ बैठी !!

प्रिय मन में मुझे बसाना था..
      तुम भ्रांति ह्रदय में बसा बैठी !!

x-x-x-x-x

*deovrat - 12.03.2018 (c)
Deovrat Sharma Oct 2018
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अबशार-ए-अश्क़ पे
ना तो दिल पे ऐतबार है।
हर लमहा ज़िंदगी का अब
यूँ  ही ख़ुशगवार है।।

दुनिया की तोहमतों की
नही परवाह वो करते।
क़ल्ब-ओ-जिग़र ज़हन लहू
नसों में जिनके प्यार है।।

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©deovrat 05.10.2018
Deovrat Sharma Aug 2018
क़ब्ल की बातें
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कुदरत के करिश्मों का
मिलता नही ठिकाना।
दिल के धड़कते अरमाँ
साँसों का आना जाना।।

बावस्ता जहाँ की रौनक़
है चश्म-ए-बीनाई से।
गर बे-नूर हों ये आँखें
स्याह-ओ-बदरंग है ज़माना।।

फ़ितरत में थी फकीरी
अलमस्त था वो जीवन।
वो दोस्तों की महफ़िल
यह गर्दिश-ए-ज़माना।।

नीचे जमीं पे बिस्तर
सर पे फ़लक की चादर।
बेफिक्र सी वो दुनिया
अब  फिक्र-ए-आबोदाना।।

एक-रंगी अजीब सी है
सतरंगी जिन्दग़ी ये।
सब-कुछ हैं मन की बातें
हँसना-रोना-मुस्कराना।।

अक़ीबत की ना थी चिन्ता
बेफिक्र था वो बचपन।
मुझको दिला दो फिर से
वो वक़्त-ए-बसर ज़माना।।

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©deovrat 25.08.2018
अक़ीबत=future life
Deovrat Sharma Jul 2018
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भीगे मौसम मे उसके ग़ेसू की चमक़।
घनघोर घटाओं मे दामिनी की दम़क।।

झील सी गहरी  निगाहों में सिमटी।
दूर तक फैली चाँदनी की झ़लक।।

सुरमयी श़ाम में  धीमी धीमी सी बयार।
मोगरे-रात की रानी-ओ-चम्पा  की महक।।

लरज़ते लब-ओ-तब़स्सुम का तिलिस्मी।
उस प धवल मैक्तिकय दंतुली की दम़क।।

आसमाँनों की वो रौनक परिस्त़ां से उतरी।
मराल सी चाल पग में पायल की झनक।।

भीगे मौसम मे तेरे ग़ेसू की चमक़।
घनघोर घटाओं मे दामिनी की दम़क।।

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©deovrat 24-07-2018
Deovrat Sharma Aug 2018
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जिन्दग़ी में कई उलझने हैं
कितनी हैं दुश्वारियाँ।
हर कद़म पर ठोकरें हैं
तल्ख़ियाँ मक्कारियाँ।।
◆◆◆

नींद-ओ-चैन खो सा गया
हर ओर है बेचैनियाँ।
ज़ेरोज़बर है सबकी दुनियाँ
मुख़तलिफ़ हैं कहानियाँ।।
◆◆◆

ख़ुदगर्जी में अब गर्क है
इमां पे चलने का चलन।
वो मरासिम-ओ-जहानत
सब लगती हैं नादानियाँ।।

●●●
©deovrat 02.08.2018
Deovrat Sharma Feb 2018
...
तन्हा तुम हो,   हम  भी तन्हा।  
ओर दुनिया की मजबूरियाँ।।
कुछ हम चलें, कुछ तुम चलो।
कम हो जायेंगी  यें दूरियां।।

माना कि,  दोनों की किस्मत।
ओ,  ख्वाहिशें हैं जुदा- जुदा।।
दर्द - ओ - गम तो एक है।
ओर वैसी ही हैं रुसवाईयां।।

इतना ही काफी है दिलबर।
जानता है हाल- ए - दिल।।  
है बेमानी,  ख्वाहिशें।
फुरकतें खामोशियां।।

अपनी बैचेनी का आलम।
इस कदर पुरजोर है।।
खुद-ब-खुद छट जायेंगी।
ये दुख भरी तन्हाइयां।।


*deovrat - 04.03.2018 (c)
Deovrat Sharma Aug 2018
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लमहा लमहा साँसे तेरी सिमटती रही।
कब उम्र  यूँ ही गुजरी पता ना चला।।
दिन महीने बने फिर वो साल बनते गये।
वक्त गया तो गया फिर वो चला ही गया।।

काले घुंघराले केशों पे तुझको बडा नाज़ था।
अब ना काले रहे ना वो अब घुंघराले हैं।।
केश श्याम से स्वेत कब और कैसे हुए।
तू समझ भी ना पाया, जोर कुछ ना चला।।

तुझको दुनिया में भेजा था उस ईश ने।
कुछ भलाई करे कुछ गाढी कमाई करे।।
सुभग-ओ-सुघर काया थी तुझको मिली।
रोगों ने कब तुझे आ घेरा पता ना चला।।  

तू यूँ गाफ़िल हुवा इस चकाचौंध में
सारी पूँजी लुट गई तू देखता रह गया।।
है जो कुछ दिन का मेला ये रहे ना रहे।
फिर ये पंछी उडा और अकेला चला।।

इस भरम में तू जीता रहा ज़िन्दगी।
ये सारी दुनिया तेरे वास्ते  है बनी।।
दरिया के रेत पर की इबारत है ये।
एक आयी लहर और सभी बह चला।।

नाज़-ओ-अंदाज़ पर तब फ़िदा थे सभी।
चाँद तारे, नज़ारे, फ़लक-ओ-ज़मीं
अब ना वो अंदाज़ है ना ही वो नाज़ है।
कब रहमतें सब गयी कुछ पता ना चला।।

रोज सूरज उगा जब भी आकाश में।
उसकी किरणों में संदेश इक तेज था।।
दिन का सोना और फिर रात भर जागना।
ये उलटी गंगा बही तू डुबकी लगाता रहा।।

अब कुछ होश कर अब तो कुछ ज्ञान कर।
अपने कर्मों पे बन्दे तू कुछ ध्यान कर।।
जाग कर के भी बिस्तर पे सोया है क्यूँ।
उठ चल कर आत्ममंथन संभल तू जरा।।

लमहा लमहा साँसे तेरी सिमटती रही।
कब उम्र  यूँ ही गुजरी पता ना चला।।
जाग कर के भी बिस्तर पे सोया है क्यूँ।
उठ चल कर आत्ममंथन संभल तू जरा।।

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©deovrat 06.08.2018
Deovrat Sharma Jul 2018
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वो जितना
मिरे क़रीब था
अब दूर हो गया ।

आँख़ों से
नींद ले गया
बेचैन कर गया।।

गुज़स्ता
दास्त़ान हो गया
अब वो मेरे वास्त़े।

मशरब-ए-अश़्क
जैसे सैलाब-ए-ल़हू
में बद़ल गया।।

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©deovrat 08-07-2018
Deovrat Sharma Sep 2018
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कुछ बारिशें कुछ मस्तियाँ
उन ज़ुल्फों से अटखेलियां।
वो बहार थी जो गुज़र गई
अब गर्दिशों का ग़ुबार है।।

वो समा था वस्ले ख़ुमार का
ये फ़िज़ा है तन्हा उदास सी।
शाख-ए-ग़ुल की बात क्या
ये हयात उजड़ा दयार है।।

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©deovrat 28.09.2018
Deovrat Sharma Dec 2017
.....
मेरी आहों में तपिश है, ना दुवाओं में असर!
किसी को क्या ना दें, और किसी को क्या दे दें!!


तुमने चलाए तीर थे, जो हम पे चल गये!
कुछ जा लगे जिगर में, और घाव कर गये!!

कशिश से फारिस्ते भी ज़मीं पर उतार आते हैं!
शिद्दत से गर बुलाओ, तो वो ज़रूर आयेंगे!!


दिलकश अदा से इतर है दिल की खलिश जनाब!
दिल में गर खलिश हो तो, वो मिल ही जायेंगे!

*deovrat-12.12.2017 (c)
Deovrat Sharma Jun 2018
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अब तलक..
सूखी नदी थी जो...
वो फिर से समन्दर हो गयी है।

लब प हलकी सी हँसी है और
चश्म-ए-पुरनम हो गयी हैं।।

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©deovrat 05-06-2018
Deovrat Sharma Sep 2015
अल्पकालिक जीवन ओर…
             चिरंतन रहने की अभिलाषा!
कम होती साँसे ओर…
               अनंत कोटि जीने की आशा!!

                                          
               ­                             दिनो दिन बढ़ती लिप्सायें ओर....
                                                          ­         स्वयं से दूर होते हम!
                                           अनन्त की खोज में  अग्रसारित..
                                                ­              परन्त्तु विपरीत दिशा की ओर कदम!


कपोल कल्पित मरूभूमि में..
                       अमृत कणो की तलाश!
अनन्त कोटि जन्म ओर...
                     अथाह जलनिधि की प्यास!!

                                                  
                                               अनेकों ब्रह्मांडो को स्वयम् में.....
                                                        ­              समाए ये जीव!
                                               बिन मिले परमात्मा से...
                                                           ­    कैसे लगे मुझको सजीव!!


बहुत सो चुके...अब तिमिर का ...
चीर कर...सीना उठो!
चम्को अब रवि की तरह तुम...
ना आँधियारों की परवाह करो!!


                                                ना कोई बाधा ही रोके...
                                                         ­       ना किसी मग से डरो!
                                                 पथ प्रकाशित कर सदा को...
                                                           ­        उस अनादि से मिलो!!

                                       *deovrat - 21.09.2015  (c)
Deovrat Sharma Mar 2018
~~~
ज़ुल्म कितना भी हो..

कभी सर, ना झुकेगा मेरा !

ज़ज़्बा मुझको विरासत में ..

मिला है यूँ  सर कटाने का !!

~~~
बेवफा वक्त नही,

इंसान हुआ करते हैं !!

ना  दे इल्ज़ाम यूँ,

माज़ी को बदगुमानी का !


~~~

*deovrat - 21. 03. 2018 (c)
Deovrat Sharma May 2018
...
इंसान फ़ना होते है
मोहब्बत कभी
ख़त्म नही होती !

मोहब्बत हमेशा
किसी भी रूप में
वज़ूद में रहती है ! !
~
मोहब्बत कोई श: नही,
मोहब्बत सिर्फ़
एक ज़ज़्बा है !

जो एक इंसान को
दूसरे इंसान की नज़रों में
बहुत ऊपर उठा देती है !!

...

(c) deovrat - 04.05.2018
Deovrat Sharma Jul 2018
●●●
वो मकीं-ए-कहकशाँ
या ताब-ए-आफ़ताब है।

उसका ज़माल सुनते है
मुख़्तलिफ अज़ल से  है।।

●●●
©deovrat 27-07-2018
Deovrat Sharma Apr 2018
~~~
दर्द-ए-जिगर..
मेरा,   कुछ...
कम तो...
हुआ होता....

~~~
तेरे अफ़सानों..
में भी गर मेरा...
कुछ ज़िक्र....
हुआ होता.....

~~~
© deovrat-30. 03. 2018
Deovrat Sharma Jul 2018
●●●
जह़न के किसी कोने में पोशीदा
मुसल्सल दिल-ओ-दिमाग़ में
पेवस्त हिज्र-ओ-वस्ल
से बावस्ता उनकी
यादें मिरे रूबरु
चली आई...

◆◆◆

दिल-ए-बरहम में
दामिनी सी वो चमक
तेज धड़कन में उमडती
घुमडती घटाओं की धमक
भीगे जज़्बात के इस मौसम में
बेसाख़्ता-ओ-बेसबब
ना जाने क्यूँ  आँखे
भर आई...

◆◆◆

उदास तन्हा से
ये शाम-ओ-सहर।
जिन्दग़ी कैसे कटे
कहो अब कैसे हो बसर।।
निबाहें चलों दस्तूर-ए-जुदाई।
फ़िर से करें जिक्र-ए-बेवफ़ाई...

●●●
©deovrat 31-07-2018
Deovrat Sharma Jun 2018
●●●
जब दिल में आ गये हो,
अब समझो यही ठिकाना।

ये एक तरफ़ा रास्ता है,
अब ज़ाना है भूल जाना।।

◆◆◆

श़ाम-ओ-सहर महीने,
ना सालों का जिक्र करना।

रिस्त़ा-ए-ज़िन्दग़ानी,
जनम-ओ-जनम निभाना।।

●●●
©deovrat 24-06-2018
*English translation will be posted shortly.
Deovrat Sharma Jul 2018
●●●
तन्हा शामों के काफ़िले
और वो हमसफ़र है मेरा।

ना जाने ज़िन्दगी फिर भी
इतनी उदास सी क्यूं है।।

●●●
©deovrat 16-07-2018
Deovrat Sharma Mar 2018
........

ख़ुद-में-ख़ुद ही को,

खोज़ता रहता हूँ,  इस तराह ।

~~~~~

तूफ़ानो में कश्ती,

को जैसे ढूँढे है कोई ।।

........

©deovrat 22-03.2018
Deovrat Sharma Jun 2018
●●●
उफ़ तक ना वो कर सका,
जब सर क़लम हुवा।

होठों पे तबस्सुम सा था,
विसाल-ए-यार का।।

◆◆◆

तस्सवुर-ए-प्यार में वो,
खोया था इस क़दर।

दोनो जहाँ से दूर था वो
अपने दिलबर के पास था।।

●●●
© deovrat 11-06-2018
Deovrat Sharma Sep 2018
●●●
तमाम हसरतें नाकाम
तम्मनायें हैं पामाल।
बेहाल जिन्दग़ी है
जब से है उनका ख़याल।।

यक़ीनन है
अजाब-ओ-ताज्जुब ख़ेज
ये बात।
वो पूछते हैं हाल
जिनको नही कोई मलाल।।

●●●
©deovrat 30.08.2018
Deovrat Sharma Sep 2018
●●●
आबे-रवां है जिन्दग़ी
मुश्कअफ्शां तेरा ख़याल।।

हर शः में तेरा अक्स है
मोअत्तर तेरा जमाल।।

●●●

©deovrat 24.09.2018

आबे-रवां=flowing water
मुश्कअफ्शां=spreading fragrance
मोअत्तर=aromatic
जमाल=Beauty
Deovrat Sharma Jun 2018
●●●
तू दूर रहे या पास..
ना होना कभी उदास।

तेरे ख़्वाबों की त़ाबीरों में..
मेरे इश़्क का साया है।।

◆◆◆

तेरे नयनों के दर्पण में..
मैने खु़द को पाया है।

तूने ही तो ज़ीवन में..
मुझे प्यार सिखाया है।।

●●●

©deovrat 14-06-2018
Deovrat Sharma Sep 2018
●●●
लोग शैदाई-ओ-बिस्मिल को सज़ा देते हैं।
इश्क के सिलसिले बस यूँ ही रवां रहते हैं।।

मुश्कअफ्शां थे वो गुलशन जो यूँ पामाल हुए।
कर्ब-ओ-दर्दे जिग़र कब इस तराह कम होते हैं।।

मुसलसल बहता ही रहता है ये दरिया-ए-इश्क़।
श़म्मे रोशन पे       खुद परवाने  फ़ना होते हैं।।

नज़र-अंदाज हम कर देते है उनको लाज़िम।
जो बेख़याली में भी नज़रों को फेर लेते हैं।।

इबादते-ए-इश्क कहो या कि आबशार-ए-जुनूं।
प्यार और इश़्क के मुख़तलिफ़ उसूल होते हैं।।

सलावतें मिलती है माहताब की शुआओं से।
अख़्तर-ए-इश़्क पे फरिस्ते भी रश्क़ करते है।।

●●●
©deovrat 09.09.2018

मुश्कअफ्शां=spreading fragrance
शैदाई=lover
कर्ब=agonies
आबशार=cascade series of small fall
सलावतें=blessings
अख़्तर=fortune
Deovrat Sharma May 2018
•••
जेहन में उनका अक्स,
निगाहों में विरानी है।
टूटे हुए हर दिल की,
बस इतनी कहानी है।।
~~~
गुलशन में गुल-ओ-बू तो,
क़ुदरत के करिश्‍मे हैं!
कुछ चेहरों पे मस्ती है,
कुछ आँखों में पानी है !!

•••
(c) deovrat - 16.05.2018
Deovrat Sharma Mar 2018
...
तेरे शहर की ये जो खिल्वते,

तेरी शख़्सियतों के ये वलवले !

ना तो चाहतों में शुकून है,

ना मोहब्बतो में उबाल है !!

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वो जो
             हरफ़
                    -ब-
                          हरफ़
                                  लिखा हुआ,

मेरी मोहब्बतो का प्याम था!

ना वो वर्क था, ना वो लफ्ज़ थे,

मेरी
       दास्तान
                  -ए-
                        वसाल है !!


x-x-x-x

*deovrat-20.03.2018 (c)
Deovrat Sharma Mar 2019
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होठों पे तबस्सुम-ओ-हया है
गज़ब की शोख़ी है।
उसके ज़ख्म-ए-जिग़र में कसक है,
बहुत वो गहरे हैं।।

अब इससे ज्यादा बतायें क्या
दास्तान-ए-हिज्र।
अब उसकी नफ़स-नफ़स पर भी
बला के पहरे हैं।।

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@ deovarat- 12.03.2019
दास्तान-ए-हिज्र=वियोग की कहानी
नफ़स=साँस
Deovrat Sharma Oct 2018
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दिल-ए-नादां जो संभाले
से सम्भल गया होता।
ग़म-ओ-दुश्वारी-ए-दामन से
कब का निकल गया होता।।

ऐसी तन्हाइयां कहाँ मिलती
तब कारवाँ-ए-इश्क़ में।
आगाज़-ए-मोहब्बत में
गर ना फ़िसल गया होता।।

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©deovrat 11.10.2018
Deovrat Sharma Feb 2018
...
इतने करीब आ के..
सदा दे गया कोई।
बीमार-ए-दिल को..
आ के दावा दे गया कोई।।

लफ़्ज़ों में एक सुकून था..
ओ बातों में सादगी।
नज़रों के बीच हो गयी..
सदियों की बात भी।।

दिल का सुकून-ओ-चैन..
मेरा ले गया कोई।
इतने करीब आ के..
सदा दे गया कोई।।

बीमार-ए-दिल को..
आ के दावा दे गया कोई।


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*deovrat - 25. 02. 2018 (c)
Deovrat Sharma Nov 2018
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मोहब्बत की लौ
दिलों में मचलती रहे।
चिराग़-ए-कैफ़ सदा
यूँ ही जलते रहें।।

हो तबस्सुम लबों पे
और दिलों में ख़ुशी।
न कोई भूखा सोये
यही बस दुआ कीजिये।।

भूल कर के तस्सदुद
ओ सभी रंज़-ओ-ग़म।
क़ल्ब-ओ-जिग़र को
ख़ुशी से सजा लीजिये।।

ना तो शिक़वा कोई
ना किसी से गिला।
चिराग़-ए-नज़र से
दिवाली मना लीजिये।।

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©deovrat 07.11.2018
Deovrat Sharma Feb 2018
.....
ज़ख़्म दिल में रहे है........
        तो ये नासूर बन जाए!


                 .....................

                          अच्छा तो तब है जो.....
                                 इस दिल की दवा हो जाए!!

                
                                             .....................

वरना दुनिया का भरोसा ही क्या...
       वो बेहद संगदिल है!

                          
                          .......­..............                      
                     
                               इस बात पे भी वो.....
                                       ना खफा हो जाए!!

  
                                            ....................­.
                                    
                       *de­ovrat- 07.02.2018 (c)
Deovrat Sharma Aug 2018
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कोशिशें लाख करे दामन
मुझसे छुडा ना पायेगा।
वो मेरी दीवानगी को
ज़ेहन से भुला ना पायेगा।।

उसका दिल धड़कता है
मेरी ही धड़कन से।
जो धड़कनें ही ना रही
भला क्या वो जी पायेगा।।

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©deovrat 04.08.2018
Deovrat Sharma Jun 2018
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चाँद बदली से जब निकला
तो आँखें चार हो गयी।
◆◆◆

उस से नज़रें उलझ गयी
मेरी उलझन सुलझ गयी।।
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©deovrat 09-06-2018
Deovrat Sharma May 2018
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वो बारिशों की वो मस्तियां।
वो जुल्फों से अठखेलियाँ।।
वो बहार थी जो गुजर गयी।
अब गर्दिशौं का गुबार है।।
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वो समा था वस्ल-ए-खुमार का।
ये फिजा है तन्हा उदास सी।।
यां शाख-ए-गुल की बिसात क्या।
यह हयात उजडा दयार है।।
~~~
कब कौन मिल जाए क्या खबर।
कब कौन खो जाए क्या पता।।
वो जो दिल मिले थे बिछड़ गये।
ये नसीब - नसीब की बात है।।

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(c)  deovrat 06.05.2018
Deovrat Sharma Jun 2018
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द़रख्तों में छुपा है या तो फिर अब्र में कहीं।
महताब से रोशन  है आसमान और जम़ीं।।

या मुझ से हैं अद़ावतें या कुछ ओर बात है।
रोश़न वो चाँद मेरा, कहीं पास है यहीं।।

बाअद़ब चला करो, मिरे गु़लशन मे हवाओं।
उसकी रेशमी ज़ुल्फों से लिपटना नही कभी।।

वो श़ोख हैं, क़मसिन है, ऩूर-ए-हयात है।।
नादानियों से अपनी, सताना नही अभी।।

द़रख्तों में छुपा है या तो फिर अब्र में कहीं।
मह़ताब से रोशन  है आसमान और जम़ीं।।

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©deovrat 16-06-2018
Deovrat Sharma Mar 2018
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यूँ तो मेरे ज़ज्बात की,

परवाज़ बड़ी उँची है!

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फिर क्यूँ अभी तलक ना,

खुद को ही पा सका !!

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उसकी तलाश में,  

ज़माने गुज़र गये !

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उसका पता ठिकाना,

ना कोई बता सका !!


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(c) deovrat - 28.03.2018
Deovrat Sharma Jun 2018
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मिरे पह़लू में रह कर भी
कभी मेरा नही होता।

वो हर पल साथ हो कर भी
वफा़ कब कर सका मुझसे।।

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हयात-ए-ज़िन्दगी है दिल
धड़कता है जो सीने में।

फ़लसफा-ए-वफ़ादारी का
शिक़वा क्या करें इससे।।

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©deovrat 03-06-2018
Deovrat Sharma Aug 2018
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ये लगता है यकायक
अज़ल से नाजिल क़यामत है।

लब खुल ना सके फकत
अहसास-ए-थरथराहट है।।

उन कद़मों की आहट
सरसराहट उनके पैरहान की।

मेरी धडकन-ओ-साँसों
की मेरे दिल से बगावत है।।

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©deovrat 20.08.2018
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