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अश्क़ मेरे...
तेरे रुख़सार पे
क्यूँ बहते हैं।
कहीं ये...
सच तो नही हम
तेरे दिल में रहते हैं।।
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रोज अर्श से...
दबे पाँव, ज़मीं पर
उतरता है।
वो चाँद...
छत पे मेरी है,
ये लोग कहते हैं।।
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अश्क़बारी...
का वो आलम भी,
अज़ब होता है।
सुकून-ए-दिल है...
मगर फिर भी,
अश्क़ बहते हैं।।
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तू कब तलक...
ख़फा रहेगा जरा,
बता दे मुझे।
ना मिल सकेंगे...
कभी हम,
ये सब भला क्यूँ कहते हैं।।
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कितनी यादें...
ख़ुद के दामन में,
सिमट आयी हैं।
फिर ये....
कैसे कहें हम,
कि तनहा रहते हैं।।
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©deovrat 01.10.2018