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Arvind Bhardwaj Mar 2016
ऐ साकी, ज़रा इस महफ़िल में पैमाने जाम तो दे,
थकी है तेरी रूह भी अब तो, इसको कुछ आराम तो दे।
ऐ साकी, ज़रा इस महफ़िल में पैमाने जाम तो दे,

रुत्बा-ए-महफ़िल है, लम्हों की सरगोशी है,
आज इस हवा में अजब सी मदहोशी है,
तू इन मदहोश हवाओं को तूफ़ानी अंजाम तो दे,
ऐ साकी, ज़रा इस महफ़िल में पैमाने जाम तो दे।
Arvind Bhardwaj Mar 2016
अंदेशा तेरे आने का हमें इस क़दर था,
पलकें ख़ामोश ही रहीं ,पर सो ना पाई।

हाल-ए-दिल भी कुछ ऐसा रहा,
आँखें नम तो रहीं पर रो ना पाई।

दाग-ए-सितम तेरे दिल इस कदर थे,
पाक कौसर भी जिसे धो ना पाई।

होना हम भी चाहते थे तेरा,
मिटाना चाहते थे ज़ीस्त-ए-तन्हाई,
किस्मत ही शायद हक़ में न थी ,
वरना यूँ ना मिलती बेबाक जुदाई।

ज़िन्दगी के इस चौसर में ,
न जीते हम ही, न जीते वो ही,
बस बिखरा फ़लसफ़ा मोहब्बत का,
फकत दिल-ए-एतबार ने मात खाई।
Arvind Bhardwaj Mar 2016
मुझे ये ग़म और ये ख़ुशी दोनों रास है,
चलने की आदत है और मंज़िल की तलाश है।

राह में जितने मिले सब अपने हैं, सब ख़ास हैं,
मेरी ज़िंदगी छोटी सही पर टुकड़े सबके पास हैं।

जब भी लगा टूटने, सबने समेटा हैं मुझको,
उलझा उलझनों में जब जब, सबने  लपेटा हैं मुझको,
कभी संग हंसे तो कभी संग रोए भी हैं,
बहुत से अपने मिले तो कुछ अपने खोए भी हैं।

जानता हूँ ज़िन्दगी है कुछ खोना तो कुछ पाना भी है,
सफ़र लम्बा है ज़िन्दगी का और दूर तक जाना भी है,
पर ना जाने क्यूँ, आज मेरी आँखें कुछ नम सी लगती हैं,
ज़िन्दगी पूरी तो है लेकिन फिर भी कुछ कम सी लगती है।

सबकी रूह, सबका प्यार, सबकी वफ़ा मेरे दिल के पास है,
मुझे ये ग़म और ख़ुशी दोनों रास है,
चलने की आदत है और मंज़िल की तलाश है।
Arvind Bhardwaj Mar 2016
The Happiness, The Pain
We lost much more with desire to Gain,

Someday sky shines, Someday it rain,
Someday we collected every single drop,
But someday it drain.

Oh my Lord make everyone happy,
Remove every stain.

I wish my Lord, you are everywhere, you know everything.

So **make a chance to meet beloved once again.
Arvind Bhardwaj Mar 2016
माँ की कोख से लेकर, उनकी गोद में आने तक,
बंद मुट्ठी के सपनों को अपना बनाने तक,
नन्ही-नन्ही बातों को लेकर रूठ जाने तक,
फिर माँ के प्यार से बहल जाने तक,
यही प्रेम है, यही समर्पण, यही ज़िंदगी।

बचपन की अटखेलियों में शैतानियाँ छुपाने तक,
बनकर नंदलाल, यशोदा माँ को सताने तक,
कभी मटकी तोड़ने तो कभी माखन चुराने तक,
बन भोले माँ से सब कुछ छुपाने तक,
कभी प्रेम में राधा के सबकुछ भुलाने तक,
यही प्रेम है, यही समर्पण, यही ज़िंदगी।

खिलौनों से खेलते-खेलते बड़े हो जाने तक,
पिता की उँगली पकड़, उनके कंधे पे आने तक,
छोटी सी ज़िद को लेकर बैठ जाने तक,
पापा की फटकार को सुनकर सहम जाने तक,
यही प्रेम है, यही समर्पण, यही ज़िंदगी।

यौवन में कदम रखकर पाँव बढ़ाने तक,
किसी के प्यार में अपना सबकुछ लुटाने तक,
छोटी-छोटी बातों पर लड़कर उनके मनाने तक,
बैठ अकेले तन्हा कहीं आंसू बहाने तक,
यही प्रेम है, यही समर्पण, यही ज़िंदगी।

उनके इंतजार में अपनी पलकें बिछाने तक,
मिलकर सबकुछ कहने का सपना सजाने तक,
बिन उनके हर रात के तन्हा हो जाने तक,
उनके ख्वाबों में आँखों के नम हो जाने तक,
**यही प्रेम है, यही समर्पण, यही ज़िंदगी।
Arvind Bhardwaj Mar 2016
यू देख मुझे ये दुनिया हैरान क्यों है,
मेरे हंसने पर भी पूछे है परेशान क्यों है?
यू तो सबकुछ समेटे रखता हूँ सीने में,
पर ना जाने आँखें इस क़दर बेइमान क्यों हैं?

कोशिश दिल से तो करता हूँ ,पर आँखें दगा देती हैं,
समझाता हूँ बहुत, पर फिर भी सज़ा देती हैं।
खामोश रहता हूँ,कि न समझे कोई हाल-ए-दिल,
न जाने क्यों ये सबको बता देती हैं,

ना जाने क्यों ख़फा है इस क़दर,
कई बार भरी महफ़िल में रुला देती हैं।
क्या समझाऊं कैसा खेल है मुकद्दर,
जिसे चाहो उसे कहीं और मिला देती है।

बहलाता हूँ बस ये कहकर खुद को,
ये ज़िन्दगी है मरते को भी जीना सीखा देती है ।
Arvind Bhardwaj Mar 2016
इस दिल ने जब भी उनके प्यार के क़सीदे पढ़े,
सच कहता हूँ, दिल तो चुप रहा पर पन्ने रो पड़े।
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