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Gaurav Kashyap Jan 2015
खुदा बख्स दे ऐसी जिन्दगी,
जिसमे हो सिर्फ तेरी बन्दिगी,
बहुत जी लिया स्वयं के लिए,
जीवन के स!रे रंगों को पिए..

जब तक की अब तन में जन रहे,
रगों में तेरे नाम का लहु रहे..
तेरा ही जिक्र या तेरी आरजू रहे..
ना मैं रहू ना मेरी ना मेरी जुस्तजू रहे..

अद्यतन ज़माने की हर चोट सही है,,
सदा ही भला करू कोशिश यही रही है,,
सही ही कहा है की जलना पड़ेगा,
स्वयं सदैव कायमी हो तो लड़ना पड़ेगा..

जीवन का पहिया तो चलता ही रहेगा,
धन-बल-तन छूटेगा कर्म ही रहेगा.
कायनात की तो अनेक बातें होंगी ,
करू कुछ ऐसा की ना कहे ढोंगी...
Gaurav Kashyap Jan 2015
जब व्यथा की कथा ना कही जा सके,
जब छलकते ये आँशु बहे जा रहे,
कोई तो बताये ये है राज क्या ?
या शायद वक्त नहीं साथ क्या ?

विचारो के ये पंख उड़े जा रहे,
अब सम्हालना आशां नहीं क्या ?
क्यूँ सीमाएं अब नजर नहीं आ रही ,
खुदा तो नहीं मानव्क्रित्य है क्या ?

कोई ना मइला जो दे साथ मेरा,
ज़माने को लगा इतना बुरा क्या ?
Gaurav Kashyap Jan 2015
Something that cann't be written,
Something that cann't be shown,
Something that cann't be hidden,
Something not measurable,
That is heart's pain.

The heart's pain is,
Neither by season nor by monsoon,
It's not also a normal dieses,
Only few words and sentences,
Are the virus of this grief.

Only few have ability,
They may understand it,
They can hear heart's beat,
Which is not possible by,
Any best medical kit.

Whenever the heart's cry,
And it become so sad,
Then relieves are pen and note pad,
And then all the griefs,
Get printed on few page.
Like this one.....

— The End —