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Sep 2020
फटे होंठ की लकीरें
या कपड़ों में पैबंद ज़्यादा थे?
फिर भी, लाल बत्ती सी चमक आंखों में थी।

बोली में तेज़ी, " ख़रीद लो मैडम "
या मजबूरी ज़्यादा थी?
फ़िर भी, बेचने की कला बड़ी अद्भुत थी।

बेरंग दिनों को बदलने की कोशिश थी,
सामने रंगीन पर्दे सी ज़िन्दगी थी,
पर टिकट उसके लिए, महंगी थी।
Nalinee
Written by
Nalinee  42/F
(42/F)   
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