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Daivik Aug 2022
ओ जानेमन! यू ना नाराज़ हो
तुमसे क्या राज़ छुपायु
तुम ही तोह मेरी राज़ हो

Be aggrieved not ,O lover!
How could I keep any secrets from you
When you are the secret I keep from others .
Pls don't judge me on this
Farheen Khan Aug 2022
Ek zindagi hain farheen ki
Aur hain dus mod
Farheen ki khoish raktay hain sabhi

Par farheen ki khoish hain koun
Souchtay chalogay tuh shyad smajaogay
Milingay sabhi tumay
Par phir bhi farheen ki khoish raktay phirogay
Dhondna chatay tuh dholo
Har gali har mouhala

Milingay haar koi par
Dil ki baat hain dil tuh sirf
Farheen kay pass hain
Ajj alag sa mood hain farheen ka ❤️
Daivik Jun 2022
जैसी तैसी ज़िन्दगी
यू हीं हैं कट रही
टेढ़ी-मेढ़ी राहो से
जैसे तैसे गुज़र रही

जहा सुख का फ्रूट मिले
जूस बनाके पी जाओ
किसे पता क्या होगा कल
इसी पल में जीवन जी जाओ

हार और जीत के संघर्ष में
सुख और दुख के जंगल से
इनके संगम से उत्पन्न जो नदी
उसी का नाम जिंदगी
Daivik Apr 2022
हमेशा हार थोरे ही सकते हो
कभी तोह जीतोगे ही।
Daivik Apr 2022
कुछ करने का मन नही करता,
मरने का भी नही
Daivik Apr 2022
मै नावक हु इस कश्ती का
जीवन जिसका नाम हैं
मै पालक हु इस धरती का
यही मेरा प्रधान हैं
गायक हु उस गीत का
जो तम में लाता प्रकाश हैं ।

में न रुकूँगा
न झुकूंगा
न ठहरूंगा
में लहरूँगा
चलते रहूंगा जब तक
सामने कोई राह हैं।
सामने कोई राह हैं।
Daivik Mar 2022
कोई नहीं पराया, मेरा घर संसार है।

मैं ना बँधा हूँ देश-काल की जंग लगी जंजीर में,
मैं ना खड़ा हूँ जाति-पाति की ऊँची-नीची भीड़ में,
मेरा धर्म ना कुछ स्याही शब्दों का सिर्फ गुलाम है,
मैं बस कहता हूँ कि प्यार है तो घट-घट में राम है,
मुझ से तुम ना कहो कि मंदिर-मस्जिद पर मैं सर टेक दूँ,
मेरा तो आराध्य आदमी, देवालय हर द्वार है।
कोई नहीं पराया, मेरा घर सारा संसार है।

कहीं रहे कैसे भी मुझको प्यारा यह इन्सान है,
मुझको अपनी मानवता पर बहुत-बहुत अभिमान है,
अरे नहीं देवत्व, मुझे तो भाता है मनुजत्व ही,
और छोड़कर प्यार नहीं स्वीकार सकल अमरत्व भी,
मुझे सुनाओ तुम न स्वर्ग-सुख की सुकुमार कहानियाँ,
मेरी धरती सौ-सौ स्वर्गों से ज्यादा सुकुमार है।
कोई नहीं पराया, मेरा घर सारा संसार है ।।
 
मुझे मिली है प्यास विषमता का विष पीने के लिए,
मैं जन्मा हूँ नहीं स्वयं-हित, जग-हित जीने के लिए,
मुझे दी गई आग कि इस तम में मैं आग लगा सकूँ,
गीत मिले इसलिए कि घायल जग की पीड़ा गा सकूँ,
मेरे दर्दीले गीतों को मत पहनाओ हथकड़ी,
मेरा दर्द नहीं मेरा है, सबका हाहाकार है।
कोई नहीं पराया, मेरा घर सारा संसार है ।।

मैं सिखलाता हूँ कि जिओ औ' जीने दो संसार को,
जितना ज्यादा बाँट सको तुम बाँटो अपने प्यार को,
हँसों इस तरह, हँसे तुम्हारे साथ दलित यह धूल भी,
चलो इस तरह कुचल न जाये पग से कोई शूल भी,
सुख, न तुम्हारा सुख केवल जग का भी उसमें भाग है,
फूल डाल का पीछे, पहले उपवन का श्रृंगार है।
कोई नहीं पराया मेरा घर सारा संसार है।

- गोपालदास 'नीरज'
Daivik Oct 2021
कल आएगा,कल जाएगा

पर बात तो ये हैं

कि हमसे ना हो पायेगा।
Daivik Oct 2021
सावन की पहली बारिश
हरा खेत लहलहाता हैं।
सावन की पहली बारिश
इस माटी को महकाता हैं।

बूंद-बूंद मछलती
खग नए सुरो में गाते हैं
पानी की बौछार में
जीव जंतु नहाते हैं।

फूल-फूल में आनंदोदय
टिमटिमाती क्यारी
गा रहा हैं सबका हृदय
मिटि थकावट सारी।

पर जैसी ही सब घर पहुचें
सर्दी लगी बिंदास
दो घंटे बाद पाए गए
बिस्तर में करते हुए आराम।

गरम पकोड़े तलकर खालू
सोच रहा हर मानव प्राणी
पर अपनी तोंद की गहराई देख
छा रही हर प्रत्येक चहरे पे उदासी।

रास्ते नदी के धार बनते
फुटपाथ गंगा के घाट बनते
परेशानी के पानी का स्तर बढ़ता
कभी गम ,कभी खुशाली।

जीवन के इस मौसम को मेरा प्रणाम हैं
जल के इस वरदान को,कोटि-कोटि आभार हैं।
Juwayriya Sep 2021
Khwaab dekho.
Khuli aankhon se ya band, fark nahin.

Khwaab humein kahan se kahan leja chhodti hai.
Jo kabhi dekha nahin woh dikha deti hai.
Jis cheez ko kabhi chhua na **, use bhi mehsoos karwa deti hai.

Kabhi paseene mein bheega jagaati hai,
toh kabhi apni ulfat se gaalon ko laal kar deti hai.

Cheekh kar uthaa hai koi toh koi muskuraate.

Koi toh khatam hone ka naam nahin leta.
Kisi ke beech mein kat jaane ka gila hai rehta.

Mujhe toh hamesha khatam hone ka intezaar hi raha ------ uske aane tak.
Bura dekha, bura jaana, bure ne ghere rakha ab tak.

Mein ne seene par sar rakha,
phir usne mere haath par apna bada magar narm haath rakha.

Usko meri nazuk lambi ungliyon se khelna achha laga.
Mujhe mohabbat jatane ka yeh tareeqa uska achha laga.

Aankh khuli.

Pehli dafa kaanp kar nahin sharmakar jagi.
Sukoon toh tha.
Par gila bhi raha.
Phir socha,
khwaab itne bhi bure nahin.

Toh khwaab dekho.
Kuch rehne do.
Kuch poore karo.
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