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310 · Dec 2018
ek nanhi kali
jyoti khadgawat Dec 2018
कल ट्रेन में एक नन्ही सी कली देखी
खिलखिलाती उसकी हँसी
मन मोहती मासूमियत
ज़िन्दगी की झुलसती धुप में  
वोह एक हवा का झोंका ले आयी
मन किया दो पल ठहरने को
उसके पलों में अपने भूले बिसरे पल फिर से जीने को
यूँ देखो तो उसकी ज़िन्दगी में बहुत दिक्कतें देखी
वोह बेपरफा फ़िर भी खुशी से भरपूर मिली
यह जादू है बचपन का
उम्मीदों से भरता है
एक छोटा सा लम्हा ही खुशियों की बहार ले आता है
थोड़ी मैंने भी अपनी चादर में लपेट ली
बहुत सुकून था उस पल में
पर दुसरे ही पल चिंता घिर आयी
की इस ज़िन्दगी के मंथन ने
सबकी मासूमियत की चुनरी हटा के
समझदारी की ओढ़नी उड़ायी है
मेरी माँ ने भी कहाँ चाहा ना होगा
पर वो भी कहाँ रोक पायी इस परिवर्तन को
रिश्तों के भंवर में मासूमियत को उड़ना ही है
समझदारी ने फिर हरा दिया बेपरवाही को
मेरी मुस्कान फिर उड़ गयी और घिर आयी चुप्पी
और मेरा स्टेशन भी आ गया था
jyoti khadgawat Jan 2019
कल एक पत्ती क्या
बिछड़ी अपने फूल से,
ख़ुशियों की लहरों ने
उसके साहिल पर टकराना छोड़ दिया,
कल से पहले मैं सुर्ख़ था
भँवरों के गुंजन में घिरा,
आज मैं मुरझाया हुआ
ख़ामोश हूँ,
पीला हूँ
डूबते सूरज की तरह।

मोह के धागों से बुना था
मैंने अपना ताना बाना,
आज बिखरे रिश्तों में उलझा हूँ
एक दस्तक की इंतज़ार में,
टकटकी लगाए
घंटों दरवाज़े की ओर देखता हूँ,
हज़ारों सवालों के जाल में
अपने अस्तित्व को ढूँढता हूँ।

यह बंधन ही सुंदरता थी मेरी
अब अधूरा मैं बेजान हूँ,
बाक़ी पत्तियॉं पूछें मुझसे,
मायूसी भरी घूरें मुझे,
क्या कहूँ कि क्यूँ तुम
हमें छोड़ गई
कैसे कहूँ कि तुमने घरोंदा
कोई और ढूँढ लिया है,
अपने ख़ून के रिश्तों को तुमने अपने
ख़ून के लिए छोड़ दिया है,
बचपन की यादों को तुमने
नए बचपन में अब ढूँढ लिया है।
jyoti khadgawat Dec 2018
आज बड़ी मुद्दत बाद
मैंने और ज़िन्दगी ने साथ-साथ
आँख खोली तो वह इतराई,
उसकी महक़ में मंत्रमुग्ध
रसा के भँवरे जैसा मेरा मन,
या सावन की धुन लगा सफ़ेद सीतापंग,
उमंगों की लहरों में गोते लगाता
कूंची लिए अपने को रंगों से सजाता।

कुछ क़दम क्या चले मन में चिंता घिर आई
और माथे पर सलवटें ले आई,
दुनिया सतरंगी और मैं सफ़ेद पट,
यह कलाकार मन मौजी मेरा
क्या रंगों को समझ पाएगा,
ज़ीवन श्यामपट तो नहीं
एक बार रंग भरा तो
कहां फ़िर कोरा हो पायेगा,
जाते-जाते पता नहीं यह फ़नकार
मेरे संग-ए-क़बर पे दास्ताँ कौन सी खुदवाएगा।

मन अटखेली करता मुझपे मुस्काया,
हल्के से उसने मेरा परिचय जीवन के रंगों से करवाया,
ख़ुशी का रंग सुबह की लालिमा सा लाल,
तन्हाईयाँ काली बदरा सी,
दुखों का रंग सफ़ेद,
इश्क़ सुर्ख ग़ुलाब,
खिलखिलाहट का रंग हरा,
हर रास का एक रंग,
कोई रास नहीं तो वह भी कहाँ बेरंग।

ज़िंदगी ने फिर कहा कि
अतरंगी ने ही जिया है मुझे,
तू समझ की चादर न ओढ़
मोह का रंग काफ़ूर हो जाएगा,
कल की सोच की आँधी में
आज रेत सा सरक जाएगा,
हर रंग भरेगी इस जीवन में
तो अंत में यह फिर सफ़ेद पट हो जाएगा,
इस रंगों की बारिश में
वह सतरंगी हो जाएगा।
jyoti khadgawat Jan 2019
तनहाइयाँ आशना है मेरी
दुनिया से कभ हमारा याराना था
फुसूँ का मरसिम है
ना कोई रंजिश है
ना कोई तर्क ना तकरार
ज़बान पर शक्कर का है ज़ायक़ा
चेहरे पे मुस्कान लिए
दिल में रौनक़ें है लगी

पहले जब वो अजनबी थी
बड़ी दूर दूर से घूरा करती थी
अब यह हमसफ़र है हमारी
क़दम क़दम साथ रखा करती है
ना कोई ख़्वाहिश उसकी
ना उसकी कोई पहचान
उसकी नज़दीकियों में फ़ासले की ख़ुशबू
हम साक़ी हैं उसके
वो आधा भरा  हुआ जाम

वो ना थी तो
बेफ़्ज़ूल सा शोर था छाया चारों और
बड़ी कशमक़स में थी ज़िंदगी
जो मन में था
उसे अल्फ़ाज़ कहाँ बयान करते थे
जो सुन रहे थे
वो ज़स्बात सांगदिल ना हुआ करते थे
लोगों की भीड़ में
यादों की शाही का रंग उड़ रहा था
भूले बीसरे क़िस्सों को बयान करने की ख़लिश पे
आँखो की बारिश का पानी पड़ रहा था
किसी को क्या इल्ज़ाम दे
ख़ुद से ही थी ख़ुद को शिकायतें
उन हालातों के हम मुलज़िम थे
और बीमार भी

अब दूर तक फैला है सुकून का सन्नाटा
घंटों ख़ुद से ख़ुद के
दिल ऐ हाल बयान करते हैं
वो दिन रात सुनती है बड़े आराम से
हमारे फिखरों पे तहाके लगा के हँसती है
वो हमराह है हमारी
वो हमराज़ भी
अब मरहम है ज़िंदगी
खवाबों के परिंदे के पर लगाए
ख़ूब देर तक उड़ती है
jyoti khadgawat Feb 2019
मेरी तन्हाई की क्या तारीफ़ लिखूँ
क्या शेर लिखूँ
क्या ग़ज़ल लिखूँ
ना अहंकार उसे
ना रंज उसे
ना तर्क करे
ना वो करे तकरार
वो फुसूँ  हैं मेरी ज़िंदगी का
और मैं उसका बेशर्त कदारदार

मेरी तन्हाई की क्या तारीफ़ लिखूँ
क्या शेर लिखूँ
क्या ग़ज़ल लिखूँ
उसकी ज़बान पे फ़ुर्सत का ज़ायक़ा
उसकी आँखों में चैन की चमक
उसके लबों पे मेरे दिल की आवाज़
वो पंख है मेरे खवाबों की
मेरे संग घंटो कल्पनाओं की उड़ाने भरा करती है

मेरी तन्हाई की क्या तारीफ़ लिखूँ
क्या शेर लिखूँ
क्या ग़ज़ल लिखूँ
वो हमराह है मेरी
वो हमराज़ भी
वो घाव है
वो वक़्त का मरहम भी
उसकी नज़दीकियों में भी
फ़ासले की सी ख़ुशबू आया करती है
158 · Dec 2018
zindagi
jyoti khadgawat Dec 2018
आज एक अज़नबी ने पुछा हमसे
बड़ी सोच में लगते हैं
कुछ कहें ज़िन्दगी कैसे रही
सवाल ने एक मुस्कराहट बिखेर दी चेहरे पे
हमने कहा की जनाब अभी तो चल रही है
३-४ शब्द रख छोड़े हैं यम देवता को बतलाने
देखिये कब मौका पड़ता है
वोह बोले अभी तक का सफ़र ही कह दीजिये  
हमने कहा की क्या बयां करें
बचपन उम्मीदों का घड़ा था
आज सबक़ का बाजार है
बड़ा बेफ़कूफी भरा साहस  था
आज रिश्तों की बेड़ियों ने जकड़ा हैं
एक वक़्त था अजनबियों पर इतना विश्वास था की जान लगा दें
आज कुध पे ही शक़ और हर रोज़ ज़िरह होती हैं
एक सुकून जो मिला इस ज़िन्दगी में वो ममत्व का है
ज़िन्दगी गुलज़ार लगेगी अगर उसके जहाँ में यह उमीदों का और हौसलों का घड़ा भरा रहें
133 · Dec 2018
ishq aur saavan
jyoti khadgawat Dec 2018
आज सावन की पहली बारिश हुई
किसी ने कहा के सावन इश्क़ का मौसम है
मन में मैं मंद सी मुस्काईं
सोचा की इश्क़ भी क्या कभी मौसम का लिहाज़ करता है

उसने कहा की मंद मंद क्या मुस्काते हो
इश्क़ से दोस्ती है तुम्हारी तो हमें भी ज़रा मिला दो
मैंने कहा की इश्क़ का क्या कहें, वोह बांवरा है
किसी भी रूप रंग में वह हमेशा ही त्यार
हर पल थोर ही देखता हो जैसे किसी मतवाले मन की
आगाज की खुशियाँ ऐसी
की अंजाम के दुःख को भुला दे
और हर बार उसमे एक नया पाकपन
की सुबह की ओस की बूँद ही नहीं वोह नयी दुल्हन को भी लज्जा दे
वोह देता है जीने का एहसास ऐसे
की साँस भी अगली इश्क़ बिना ना आना चाहे

उसने कहा की तुम इश्क़ को इतना जानते हो
कोई इसके पुराने चश्मीदिगार लगते हो
मैंने कहा मतवाले इश्क़ के कायल तो जरुर हैं हम
पर उसके बीमार नहीं
उसने रुलाया तो हमें भी
पर उसकी हँसियों का इंतज़ार हमें आज भी
आज सावन का ही बहाना ले के आ जाये
हमारे चेहरे ने कई दिनों से मुसकुराहट नहीं देखी

— The End —