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Dec 2018
कल ट्रेन में एक नन्ही सी कली देखी
खिलखिलाती उसकी हँसी
मन मोहती मासूमियत
ज़िन्दगी की झुलसती धुप में  
वोह एक हवा का झोंका ले आयी
मन किया दो पल ठहरने को
उसके पलों में अपने भूले बिसरे पल फिर से जीने को
यूँ देखो तो उसकी ज़िन्दगी में बहुत दिक्कतें देखी
वोह बेपरफा फ़िर भी खुशी से भरपूर मिली
यह जादू है बचपन का
उम्मीदों से भरता है
एक छोटा सा लम्हा ही खुशियों की बहार ले आता है
थोड़ी मैंने भी अपनी चादर में लपेट ली
बहुत सुकून था उस पल में
पर दुसरे ही पल चिंता घिर आयी
की इस ज़िन्दगी के मंथन ने
सबकी मासूमियत की चुनरी हटा के
समझदारी की ओढ़नी उड़ायी है
मेरी माँ ने भी कहाँ चाहा ना होगा
पर वो भी कहाँ रोक पायी इस परिवर्तन को
रिश्तों के भंवर में मासूमियत को उड़ना ही है
समझदारी ने फिर हरा दिया बेपरवाही को
मेरी मुस्कान फिर उड़ गयी और घिर आयी चुप्पी
और मेरा स्टेशन भी आ गया था
Written by
jyoti khadgawat
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