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एक रात की बात

"चार दिन की चांदनी, फिर अंधेरी रात,"
सचमे, बड़ी सच निकली यह बात ।
चांद आया था, लेके तारों की बारात,
पर, आया न कुछ भी उस बिचारे के हाथ ।
उसकी दुल्हन, आयी न उसके साथ
थामा न प्रिये ने प्रीतम का हाथ ;
होके निराश, लौट आई बारात ।
प्यार ने फिर एक बार, खाई मात ।
हे विधाता समझ में आती नहीं यह बात;
क्यों होता है यह, बिचारे प्रेमीओ के साथ ?
हंसिल होता नहीं प्यार, लग जाता है आघात ।
पूनम की आश में उसने फैलाए थे दोनों हाथ,
क्यों छा जाती है जीवन में अमावस की काली रात ?

Armin Dutia Motashaw
एक वीर सपूत की बोली

हर भारतीय के दिल में है, माता के लिए जुनून

ऐ देश के दुश्मन ध्यान से मेरी यह बात सुन

सपूत उसके बहा सकते है, माता के खातिर खून

हम है चट्टान, जो माता को देते है सुकून

शौर्य और फौलाद जैसा सिना, है हमारे गुण

गद्दारों को खत्म कर देते है, देखा नहीं है तूने हमारा जुनून

तोड़ देते नली तुम्हारी अगर रोकता नही हमें कानून

ऐ देश के दुश्मन, हम विरो की बात, ध्यान से सुन ।

Armin Dutia Motashaw
हमे धरती पर, जन्नत भेंट की थी, इतनी ख़ूबसूरत सी, दयालु खुदा ने, भगवानने;

उसे दोज़क की आग में झोंक दिया, इस नासमझ कमीने इन्सान ने ।

एहसान फरामोश है मानव, कुछ थोड़ा सा कम पड़ने से, बन जाता है दानव

रोता होगा अब, खुद खुदा भी, बना के ऐसे एहसान फरामोश इंसान को;

जो इंसानियत भूला कर, अपने रचैता और उसकी रचना को भुला कर याद करता है शैतान को।

ऐ खुदा, जन्नत तेरी, हम भी तेरे, यह धरती भी तेरी, फिर हमें यह गुमान क्यों?

कब तक रहेंगे इस तरह, बनके एहसान फरामोश हम युह ?

Armin Dutia Motashaw
ऐ इंसान, जरा सोच तू.....

आज यहां कोलकाता में बहुत शोरगुल है, ट्रैफ़िक रुकी पड़ी है;

लोगों को मानो घर कैद हो गई है, असुविधा बहुत बढ़ी है

देश का वक़्त, और अपना, हर एक का वक़्त, बर्बाद  हो रहा है

यह तकलीफ, यह मजबूरी बिचारा आम आदमी चुपचाप सह रहा है

एक मेहनती आम इंसान को, जीवन भर बहुत सहना पड़ता है

उसे अपने ही देश में, क्यूँ इस कदर बेबसी में रहना पड़ता है ?

कोई तो बताये, इन हवाओ में प्रेम की खुशबु कब लहराएगी ?

माँ, तू कब, अखिर कब, सुकून और शांति इस धरा पर फैलाएगी ?

Armin Dutia Motashaw
ऐ इंसान, जरा सोच तू.....

आज यहां कोलकाता में बहुत शोरगुल है, ट्रैफ़िक रुकी पड़ी है;

लोगों को मानो घर कैद हो गई है, असुविधा बहुत बढ़ी है

देश का वक़्त, और अपना, हर एक का वक़्त, बर्बाद  हो रहा है

यह तकलीफ, यह मजबूरी बिचारा आम आदमी चुपचाप सह रहा है

एक मेहनती आम इंसान को, जीवन भर बहुत सहना पड़ता है

उसे अपने ही देश में, क्यूँ इस कदर बेबसी में रहना पड़ता है ?

कोई तो बताये, इन हवाओ में प्रेम की खुशबु कब लहराएगी ?

माँ, तू कब, अखिर कब, सुकून और शांति इस धरा पर फैलाएगी ?

Armin Dutia Motashaw
ऐतबार

किस पे करें हम ऐतबार ? तोड़ा है अपनो ने ही उसे बार बार;

था जिन पे पूरा विश्वास, उन्हों ने ही उसे, बनाया एक व्यापार ।

ऐसा क्या हुआ, की अपनों ने ही ठुकराया हमें लगातार ।

सोचता हूं, पैसों के लिए, रिश्तों को मिटा कर कैसे मिलेगा उन्हें करार

किसी को था अपना अहम प्यारा, उन्हें, अहम को रखना था बरकरार ।

कोई तो गुस्से में आकर, तीर चलाकर; कर गया हमपर, शब्दों का वार ।

आंसु और दर्द, इस नाजुक दिल और जिगर को मिलें बार बार, लगातार ।

पर अब तक हमें, क्यू आदत नहीं हुई, इन अश्कों को पीने की बार बार ?

अब तो दर्द से रिश्ता बना लिया है हमने; शायद खुशी तोड़ना चाहे उसे एक बार !

गीत पूरा होते ही, तोड़ दिए हमने अपने हाथों से ही, अपनी सितार के तार

इतना होने पर भी, सीख न सके व्यापार; शायद इसी लिए मिलती हैं हमें जीवनमे हार ।

जीना तो है ही, जब तक है जान, तो यूहीं जी लेंगे, बिना किए किसी पे ऐतबार ।

Armin Dutia Motashaw
ऐसा क्यों हुआ

बचपन मेरा, था खुशियों से भरपूर
मानो दुख तो था मुझ से, कोसो दूर
पर किस्मत ने किया मज़ाक एक क्रूर
अब हो गई है मेरी खुशियां मुझसे कोसों दूर ।

अब सोचने के लिए हो गया हूं मै मजबूर;
मुझे मेरी खुशियों का, न घमंड था न गुरूर
पता नहीं, ऐसे क्यू हुआ, मैं तो कभी न था मग्रुर ।
किस्मत को शायद मेरी खुशियां नहीं थी मंजूर ।

Armin Dutia Motashaw
ओ विधाता,

हे भगवान, या  अल्लाह, ओ खुदा, पूरे जग के, इस  श्रृष्टि के मालिक, जो भी हो तेरा नाम

बिनती है, याचना है तुझसे दाता, बस करना तू इंसानियत के नाते, हमारा यह छोटा सा काम;

हाये रे किस्मत,किसे सुनाएं, कहां जाके सुनाए, हम इस टूटे हुए दिल के दुखड़े;

मंत्रीयो ने, तंत्रीओ ने, मौलवी, पंडितों ने, कर दिए है इंसानियत के छोटे छोटे टुकड़े ।

जल जाता है दिल, उदास हो जाती है आत्मा, जब देखती हूं, आम लोगोके रोते हुए मुखड़े ।

Armin Dutia Motashaw
गहरा है घाव, दिलो दिमाग और आत्मा पे।

हर औरत कि इज्जत है खतरे में ।

औरत ही देती है मर्द को जनम

यह क्यों भुल जाता है वो ? करो यह बार बार स्मरण।

औरत होती है एक जीती जागती व्यक्ति

होती है यह अर्धांगिनी और मा शक्ति।

वो है नहीं कोई खिलौना , करो न उसका अनादर

मा, बेहन, पत्नी, बेटी, भाभी को दो मान और आदर ।

सच्चा मर्द इज्जत देता है, इज्जत लूटता नहीं।

यह बात बेटो को सिखाइए, यही है सही

बनो औरत की ढाल, करो न उसका बुरा हाल ।

औरत है संसार की नीव, पेड़ का है जड़, न कि नाजुक सी डाल

आज से बेटियों को स्वयं सुरक्षा सिखाएं, और आत्मनिर्भर बनाइए ।

और बेटो को, खुद औरत की इज्ज़त करके, यह करना सीखाइये ।

Armin Dutia Motashaw
कन्हाई मोरे

ओ कन्हाई मोरे, बाजे जब मुरलियां तोरी,

दौड़े आए गोप गोपियां, और राधा गोरी गोरी;

कहे राधिके "कान्हा, तूं सदा थामे रहेना, बईया मोरी;

जन्मों जनमसे, युग युग से, है यह राधिका तो बस तोरी !

मोहन मोरे, काहे तरसाए जीयरा मोरा; क्यों करली तूने मोरे जियाकी चोरी ? "

Armin Dutia Motashaw
कब तक राह निहारू,
कब तक आश लगाए बैठी रहूं ?

समझ में नहीं आता कुछ मुझे,
कब तक चुप बैठ कर सेहती रहूं ?

कहते है सब सबूरी का फल मीठा होता है; मै कब तक युह बैठी रहूं ?

दाता मेरे, तु क्यू नही समझता, आखिर मै भी तो एक इंसान हूं !

बीज बोए, पर वृक्ष का कोई निशान नहीं, अरे, दो चार पत्ते भी उघे नहीं

पेड़ पौधे उघा, धरती को दुल्हन बना, मै अब और कुछ जानू नहीं ।

अगर यूह ही चलता रहेगा तो कोई किसान न रहेगा; उजड़ जाएगी धरा

कृपा कर हे कृपानिधान, संकटमे है बाग, बगीचे और वन, कृपा कर जरा

रण को बना हरियाली भरे खेतखल्यान, आे दयानिधान, तु तो है महान ।

Armin Dutia Motashaw
कब होगी

ऐसे तो आती है अमावस हर माह

पर मै तो सालों से भर रही हूं आह

जाने कब आएगी चांद रात लेके, कोई माह

क्यू की कभी न धरी तुने यह नाज़ुक बांह;

न तो कभी मिली मुझे तेरी बाहों में पनाह ।

जाने कब होगी पूर्णिमा; सालों से देखती हूं राह ।

सालों का इंतजार होगा न पूरा; आएगी न कभी पूर्णिमा;

न खिलगा चांद कभी इस आंगन में; बस सुनाएगी आह ।

Armin Dutia Motashaw
कर तू कुछ काम

सुक रही है पवित्र  यमुनाजी,

गंदी हो रही है पावन  गंगाजी

और लुप्त हो गई है सरस्वतीजी

ओ  इंसान अब तो सम्भल जा

अब तो  तेरी गहरी नींद से जाग जा

इन्हे बचाने के काम में लग जा

प्रकृती के साथ यूह  खिलवाड़ न कर तू ;

उसे बचाने की, जिगर ओ  जान से कोशिस कर तू

पेड पौधे लगा तू, पशु पंखी ओ को बचा तू

Armin Dutia Motashaw
कलयुग

चाहा था उसने,  जीवन में उसके असंख्य फूल खिले;

कौन आखिर चाहता है, खुदको पत्थर और कांटे मिले !

उसने मांगी थी अपनो से छोटी छोटी, थोड़ी खुशी ;

बदले में मिली उसे, सिर्फ बेरुखी और ख़ामोशी ।

कोमल दिल उसका चाहता था बेशुमार प्यार;

उसे न पता था, इस दुनिया में, चलता है सिर्फ व्यापार ।

टूट गया वो नाज़ुक दिल, जब मिली न प्यार की मंज़िल ।

कहां पता था उस, यह कलयुग है, यहां होते हैं पत्थर जैसे दिल;

तोड़ के औरोंके के दिल, और जज्बात लोग बसाते है खुद के लिए महफ़िल

कलयुग में शायद ऐसे ही मिलती है उन्हें, अपनी मंज़िल ।

Armin Dutia Motashaw
कल सब भुल जाएंगे

हर कोई मना रहा है आज शोक;
कल सब भुल जाएंगे ।

उस विधवा का सिंदूर जो उजड़ गया, वो कहासे लाएंगे ?
कल सब भुल जाएंगे ।

छाया है आंखो में दर्द, आंसू बह रहे हैं; पर खड़ी है बिचारी मौन ।
यह सब कल हम भुल जाएंगे ।

मात पिताका सहारा था वो बेटा; अब उन्हें देगा सहारा कौन ?
लकड़ी पकड़ा के हम तो भुल जाएंगे ।

छोटी सी वोह गुड़िया, कौन खेलेगा उस के साथ ?

वोह भाई बहन कि शादी थी बाकी; कौन पकड़ेगा उनका हाथ ?

हजारों स्वप्न देखे थे उसने; पर अब तो हो गया वो शहीद !

उस शहीद के अरमान कैसे पूरे करेंगे, उसके अपने ? धीरे धीरे कम हो जाएगी भीड़ ।

देश वासियों कुछ ऐसा करें, की शहीद के साथ, उसका परिवार न मरे ।

एक राष्ट्र फंड का करें निर्माण, की शहीद का परिवार जी तो सके, मेहगाई से न डरे ।

Armin Dutia Motashaw
कलाई

नाजुक, अती सुंदर थी वो गोरी गोरी, फुलसी  कलाई;

गोरी गोरी और  मुलायम थी , मानो  दूध-मलाई ।

थी उसपर  सुंदर, कलात्मक मेहंदी, जो  पिया को थी भाइ,

रंग बिरंगी चूडियां थी,  उस नाजुक कलाई पर चढाई।

और वोह सोने के कंगन, अती सुंदर की थी उनपर नंगो से जदाई

सोने की पहनी थी अंगूठी उसने, हीरों से मढाई ।

कितना सुंदर मुख होगा उसका, जिसकी इतनी नाजुक है कलाई ।

काश ज़लक एक मिलती मुझे, पर घूंघट में वो थी समाई ।

Armin Dutia Motashaw
बहुत दिन चला, दिल और दिमाग के बिच यह कलेश;

फिर भी, कोशिशों के बावजूद, कट गये मेरे लंबे,घनेरे केश ;

नानी, आपको दिया वचन निभा न सकी, इस लिये पहोची है दिल को ठेस ।

हाय, बड़ी बेबसी में, काटने पडे मुझे, मेरे यह लम्बे केश ।

आज तक समज नहीं आता है, यह हुआ क्यु और  कैसे !

मानो  कोई काला जादु किया हो किसिने जैसे !

क्या इसी तरह जिवनभर, आता रहेगा जिवन में कलेश यूँही?

मानो मानव रचा ही गया हो कलेशो  के साथ लड़ने, झुंझने ऐसे !

दाता, जिवन में क्यु आती है इतनी कठिनाइयाँ , दिन रात

यह कैसी  विडंबना, यह, आपकी तरफ से, कैसी सौगात

ऐसे खिलौने रचके, आखिर इरादा क्या है; समजमें न आये यह बात ।

कब आ के बतायेगा तु मुझे, क्यूँ रची तुने यह अजीबोगरीब मानव जात?

Armin Dutia Motashaw
कवि

एक कवि या कवियत्री की कल्पना का साकार विवरण, लिखित रूप, है कविता

uकभी दर्द स्याही में ढाल देता है कवि, वो दर्द जो उसके दिल पर है बिता;

या तो करता है वर्णन की, वो किसिपे दिल है हारा, या किसीका दिल उसने है जीता !

मधुर वर्णन हो किसीका, या दुखभरी हो दास्तान कविके दिल की; होती है कविता में संवेदना

कहते है कलम में बहुत है ताकत, पन्ने पे स्याही बोल उठती हैं, उनमे छिपी हुई वेदना

कवि का कटाक्ष, उसकी कलम हमे सिखाती है औरोके मन को, किस तरह से भेदना

धन्य है वो कवि जो बता सके सच्ची नेक राह पर कैसे चलना; या फिर मन के भीतर झाँकना

वो सीखा देता है इतने सारे घोडोको, बिना कोई लगाम, नियंत्रण में रखते हुए कैसे हांकना

कवि तो जानता ही है बिना घूंघट उठाये, मुखडेको, नजरोसे, शब्द बाणोंसे कैसे ताकना

सही कहा है किसीने जहाँ पहुचता नहीं रवि, वहाँ, मानव-मन के भीतर, पहोचता है कवि।

Armin Dutia Motashaw
अरे ओ कागा

बर्गदके पेड़ की तेहनीपे बैठ कर, शोर मचाये जा रहा है, एक कागा

जब अम्बवाक़े पेड़ पर, काली कोयल का, अभी अभी मीठा सुर है लागा

मेरी अटरियापे दाना-पानी रखके दोनों को कहा है मैंने, "यहाँ आ"

काग तू भले न गाये मीठे गीत, मेरे पिया का संदेश तो ले कर  तू आ

जिया तरसे, नैना बरसे, पिया जबसे है सिधारे; उनकी कोई तो खबर ला

भले तुझे कोई न बुलाये, मेरी अटरियापे, मोरे पिया का संदेश देने तू आ

Armin Dutia Motashaw
खुद की तकदीर के लिए, कर न किसी औरको बदनाम।
यह तो है तेरा ही, किया हुआ बुरा काम।
सबको हो सके तो दे प्यार; तो अच्छा ही होगा अंजाम ।

Armin Dutia Motashaw
काला साया

एक काला साया प्रवेश कर गया, उसके हसते खेलते घरमे ।

पता नहीं चला किसीको तब, क्यों की था वो एक दुल्हन के बेस् में

उस बेटे के लिए तो यह कहावत सच निकली; "शादी या बरबादी"

बस कुछ दिनों में ही छीन गई उस हसते खेलते घरकी आबादी ।

दूल्हे को पूरे वश में कर लिया; फिर आयी देवरों  की बारी ।

ननंद और सास को पहले अलग कर दिया पती से;
बारी बारी;

फिर देवरों पे लगाया निशान; कोशिश रही लगातार जारी ।

कुछ सालोमें, पती को बना दिया गुलाम; हार बिचारे ने मानी

सब हार गए, बिल्कुल अकेला बिचारा हो गया, नगरी थी अनजानी

दूर कहीं जा के खो गया;  मां ने प्राण त्यागे, बहन राखी न बांध पाई ।

काले साये ने उनकी हसी खुशी सब छीन ली; संग उसके वो कालिख लाई ।

दुल्हन के रुप में, खुशी खुशी आया; और फिर, सिर्फ दर्द लाया ।

दुआ कीजिए, कभी कोई घर में आए न ऐसा काला साया ।

Armin Dutia Motashaw
काश

इतना बुलाने पर भी, तुम कभी नही आते,

लाख  मिन्नते करने पर भी तुम क्यु नही आते ?

काश कभी तुम भुलेसे आ जाते;

जुदाई है लंबी; जो अब सही नहीं जाती;

बस बार बार तुम्हारी याद है आती।

दिल में जो है बसी, वौ  कभी नही जाती

तुम तो आते नहीं,और तुम्हारी यह याद, जाती नही।

हाज़ारॉ कोशिशों के बावजूद कम होती नही ;

सावन  बीते, बहारे भी चली गई, पर तुम्हारे आने की कोई खबर नहीं !

बस तुम्हारी याद आती रही, सताती रही, तडपाती रही ।

काश तुम आ जाते, हसके कुछ कह जाते; पर  हमारा यह नसीब नहीं ।

प्रितम, एक भी दिन ऐसा नही, जब यह तुम्हारी याद आती नहीं!

यूही कभी मिल जाते, या तुम दिख जाते  अचानक ;

सुन जाते मेरी पायल  और चूडियों की  खनक,

काश मिल जाते तुम, या फिर मिल जाती तुम्हारी एक झलक;

या तो मिल जाती हमें तुम्हारी  खुशबू, तुम्हारी थोड़ीसी  महक!

यह सोच कर, इस  विचारसे ही, जाउंगी मै बहक ।

Armin Dutia  Motashaw
काश

काश यह नीचे बताया हुआ, सच हो जाता

हर बहन को उसका बिछड़ा हुआ भाई मिल जाता

काश हमें वापस वो पुराना प्यार मिल जाता

ऐ पैसों के पीछे भागती हुई दुनिया तेरा सुधार हो जाता ।

ओ रंग बदलती दुनिया, यह व्यापार बंध हो जाता

भाई बहन का पावन प्रेम हमेशा जीत जाता

Armin Dutia Motashaw
काश ऐसा हो जाए

थोड़ा सा प्यार, दूर से, तु क्यों न जताए;

पिया, तोरी याद मुझे दिन रात सताए

चांद में चेहरा तेरा नज़र आए

और ज़िल में से भी तु मुस्कुराए;

क्या करू, कहा जाऊ, कुछ समझ न आए !

कोयल की कूक से, दिल में हुक तु जगाए,

मयूर के नृत्य से भी, तेरी ही याद सताए ।

पुष्प के रंग और खुशबू भी मुझे तेरी ही याद दिलाए

पिया, काश मैं पंछी हो जाऊ, पंख मोहे आ जाए;

तो सब कुछ छोड़ कर, यह जोगन तेरे द्वार आए

मन ही मन सोचू, काश ऐसा कुछ हो पाए

तो मेरे देवता, नित दर्शन तेरे मिल जाए ।

Armin Dutia Motashaw
किनारा

खुश रहो आप सदा, यह है अंतर से निकली दुआ

हमें तो डुबो दिया प्यारने, बहुत ही घेहरा था वह कुआ

और खाली है हमारी प्यार की गागर ।

शायद तैर नहीं पाएंगे हम; यह गहरा है सागर

और हमसे, बहुत ही दुर है किनारा

जाने सब, तैर नहीं सकता वो प्रेमी, जो है मन से हारा

बस पैगाम एक है आप के लिए, खुश रहना हमेशा

खुदा सुने दुआ यह हमारी, उम्र दराजी हो तुम्हारी ।

Armin Dutia Motashaw
खिलाने वाला खुद भूखा, यह कैसा न्याय
बिचारे खुद भुखसे बिलक बिलाक के करते हैं हाय हाय

नदियों का जल नहीं मिलता उन्हें, तरसते हैं, कब आए बरसात ।
जमीन सुकी, आसमान में नहीं बादल, चिंता रहेती है दिन- रात ।

चलिए किसानों को दे हम, हमारा थोड़ासा साथ ।
भारत के किसानों और वीर जवानों कि तरफ बढ़ाए अपना हाथ ।

Armin Dutia Motashaw
बहुत मशरूफ है ज़माना, वक्त कहाँ है उसे, किसी के लिए

दो प्रेमभरी मीठी बात सुनानेका, वक्त कहाँ है हमे औरों के लिए

किसी औरके लिए कुछ कर जानेका; वक्त कहाँ है हमें, गैरोके लिए

किसीके आँसू पोछनेका; वक्त कहाँ है हमें, दुखियारों के लिए

अरे हमे तो आजकल फुरसत नहीं, हमारे अपनो के लिए भी ।

हे इंसान इतना भि मशरूफ न बन तू, कुछ तो कर जा अपनों और गैरों के लिए

Armin Dutia Motashaw
कुदरत की विशालता

सोचने लगी मै देख के यह विशाल गगन;
और देख के चन्द्र को, मै तो बस हो गई मगन ।
अंतर कितना है चन्द्र की शीतल चांदनी में, और कहां सूरज की अगन !
क्या देखी है आप ने, समुद्र में समाने कि नदी की लगन?

आदमी कितनी बिजली इस्तमाल करता है, तब ठंडा या गरम होता है एक मकान
कुदरत यह करती है यह मुफ़्त में, वोह भी एक पल भर में, लाके तूफ़ान।
पौधों को पानी पल भर में देती हैं बारिश; जो बड़ी मुश्किल से दे पाता है किसान।
कुदरत की ताकत से रहो वाकिफ बनो न यू अनजान ।

Armin Dutia Motashaw
क्या करू

कभी तो एक नज़र डाल यहां, तुझ बिन जी के क्या करू;

प्रेम की पीड़ा कब तक और कैसे मै अकेली सहुं;

तु क्या जाने जुदाई का गम, इसे मैंने है अकेले सही।

यह कैसी प्रीत, बात होठो पे आती ही नहीं

मन ही मन में रही प्रीत, कह न सकी कभी तुझे;

और तु है, के देखा ही नहीं कभी भी मुझे ।

माना तु है राधिका का, पर मैंने भी तुझे है चाहा

फिर तु इतना निर्मोही बनके,  क्यू है रहा ???

एक नज़र इधर भी डाल, देख भी जा तेरी मीरां का हाल

दिल में जलता है प्रीत का दीप; हूं मैं कितनी बेहाल

आ जाना मौत के पहले, वरना हमेशा रहेगा यह गम

जीते जी मिल न पाए पर मौत में भी न मिल पाए हम ।

Armin Dutia Motashaw
क्या नाम दू

यह इश्क़, इस प्रित को क्या नाम दू ;  कोई जरा मुझे  बताये;

यही  इश्क़  जो मुझे दिन रात तडपाए , बेन्तहा  सताये !

नज़र मिलते ही  दिल पराया हो गया, यह क्या हो गया ?

धडकता है सिने में मेरे, पर उसके लिये; मेरा ही दिल मुझे धोका दे गया ।

उड़ गई नीन्द रातों की, हाये अचानक मुझे यह क्या हो गया ;

नीन्द न आये  फिर भी  आँखे  तरस्ती है दर्शन को; बुलाती हू सपनो मे;

अब आँखे मेरी, देखती है  सपने तेरे, अरे  मुझे यह क्या हो गया !

नस  नस में तू ही है समाया, फिर भी, आखिर तो, तू है पराया ।

राणा  यह समझे  ना, मिरा क्यू भई  बांवरि, यह प्रित को क्या नाम दूँ ?

पराया है तू, तो क्यू लागे अपना सा, मोहन मेरे, इस प्रित को मै क्या नाम दू?

यूह न तडपा, यूह न तरसा, राधा की, मिरा की, गोपियो की प्रित को क्या नाम दूँ ?

Armin Dutia  Motashaw
क्या मांगू

अरे तु तो है अन्तर्यामी, सब जाने।
काश तु, मेरा कहा जाने और माने ।
मै इंसान सीधा सादा, अपना भला न जानूं;
तु समझाकर कहे, तो तेरा कहा मानू।
इच्छाएं मेरी अनेक, कितने वरदान मांगू!
तु ही बता, मांगू तो तुझसे क्या मांगू ?

Armin Dutia Motashaw
लोग कहते हैं, जीवन है एक बहुमूल्य वरदान ।

तूने, हर मानव को दिया है, यह दान।

पर पुछु तुझे, यह कैसा वरदान ?

मै तो जी रही हूं यहां, बनके बेजान ।

जीवन की वज़ह न जानूं, क्यों कहते है लोग इसे महान?

न इसमें कोई अपनापन है;  ना ही, स्वाभिमान ।

फिर भी लोग कहते हैं, जीवन है एक बहुमूल्य वरदान ।

क्यों ?

Armin Dutia Motashaw
क्विट इंडिया

घर घर गूंज रहा था यह नारा

अंग्रेजो छोड़ो, भारत है हमारा

आज का यही दिन, १९४२ का, था बहुत न्यारा

अब, हर भारतीय को था यह नारा बड़ा प्यारा

अब एक बार फिर, नया भारत बनाने चलो यारों

एक नया इतिहास बनाए जगमे, अनोखा, बिल्कुल न्यारा ।

Armin Dutia Motashaw
खतरनाक खेल

ओ मेरे मालिक, समझ में न आए तेरा यह खतरनाक खेल

गुंडे बदमाश छड़े चोक मझा लूटे, और निर्दोष जाए जेल !!!

या तो फिर गुंडों की हो जाती है, एक दो दिन में बेल ।

प्रेमी बिछड़ जाते हैं या कभी होता ही नहीं उनका मेल;

कभी रब की बनाई जोड़ीओ के दिल मिलते ही नहीं;

या तो फिर उनके साथ, होता ही नहीं कुछ सही

शादी के बाद मजबुर हो जाते है सोचने के लिए, क्या यही है वही??

तेरी लीला समझ में न आई है, न आएगी कभी; समझने, मै तरस रही ।

माना, हम तेरे हाथो की कतपुटलिया है, पर थक गए नाचते;

बेईमान लोगो, आरामसे सुख सुविधाओं में है राचते;

और बिचारे ईमानदार लोगोंको सताता है संसार, और लोग उन्हें है जांचते

बुरे लोग, भले लोगोंको आग में  है झोंकते और खुशी से है नाचते।

मुझे कुछ समझ न आए,  इस लिए पूछ रही हूं, यह कैसा है तेरा खेल????

Armin Dutia Motashaw
खुदगर्ज

क्या कहूं; सचमे, बड़ा कमिना है यह इंसान ;

खुद गर्जी के लिए, संकट में डालता है किसी मासूम की जान

उसके गर्ज़ की, ख़ुदपरस्ती की कोई सीमा नहीं

नज़र अंदाज़ करता है उस गायकों, जिसने दिया है उसे दूध दही ।

देखते नहीं वोह काम या विश्वास; सिर्फ चाहिए उन्हें अंजाम ।

बदल जाता है उसका व्यवहार, जब हो जाता है पूरा उनका काम;

काम अपना पूरा होने पर, बन जाते हैं यह बेपरवाह और अनजान

तुझ से भी यही व्यवहार करता है यह, तुझे तो है पता ऐ भगवान ।

Armin Dutia Motashaw
खुशियों का असर

बागो में फूल मेहके
आंगन में पंछी चेहके,
खुशी फैलाए हवा के ठंडे लेहके ।

बिन पिये, चढ़ता है नशा, जाना मैंने आज;
बिना उंगलियो के, राग भी छेड़ते हैं साज !
सुरीली लगती हैं मुझे आज मेरी ही आवाज़ ।

होता है जब दिल-ओ- दिमाग खुशी से तर बतर
नाज़ुक खुशबुदार कलियों से भर जाता है दामन, या बिस्तर !
हवाओं में फ़ैल जाती है खुशबू, माने बिखरा है अत्तर ।

दिल ने कहा, "यहीं तो है खुशियों का असर" ।

Armin Dutia Motashaw
खुशी

आखिर कहां छुपी है तु; थक गया हूं तुझे ढूढते ढूढते, ऐ खुशी।

बस्ती थी पहले हमेशा मेरे दिल में, अब बस है जहां उदासी, खामोशी ।

फिर एक बार आजा, बस जा इस दिल में, गमगीन है दिल तुझ बिन ओ खुशी ।

काश हर दिल में हमेशा बसे शांति, प्रसंता और तु, आे खुशी ।

Armin Dutia Motashaw
ख्वाहिशें

ख्वाहिशें मरती नहीं, न तो भुलाई जाती है ;

यह तो बस यादे बन के, हमें अक्सर सताती है ;

कभी कभी तो यह, हमें बहुत रुलाती भी है ।

खाहिशे मेरी, थी बहुत छोटी, फिर भी न मिली,

तब किसी ने कहा," प्रीत प्रेम है दोनों ही किम्मती ;

ये आसानी से मिलते नहीं, गलतफहमी है यह तेरी "

"आज के दौर में सच्ची प्रीत, सच्चा प्यार मिलता नही ।

वफा, दोस्ती, ईमानदारी की करना नहीं तु अपेक्षा"

तब लगा, यह "लोन" के ज़माने में गाडियां, घर मिल भी जाए;

पर मुफ्त में भगवान ने जो दी है भावनाए, वोह आजकल मिलती नहीं ।

मैंने पूछा, "तो क्या इंसान ख्वाहिशें रखनी छोड़ दें ?"

तब कहा उन्होंने, "बालक दिमाग से काम लो, दिलवालों की दुनिया अब रही नहीं"

ख्वाहिशें मेरी, मेरे मन में ही रह गई, जमाना जीत गया, मै हार गई ।

Armin Dutia Motashaw
चलो इस बार हम कुछ अनोखा कर के दिखाए

चॉकलेट, बिस्कुट, केक, वी, के गणेशजी बनाए ।

धरती अपनी, नदी, झील, सागर अपने; फिर उन्हें क्यों करे मलिन;

भक्ति के साथ तो जुड़ी है भलाई; तो हम मीन को क्यू मारे उस दिन ?

छोटासा प्यारासा चॉकलेट का गनू महराज बनाके, उन्हें करे विसर्जित दूध में

आशीर्वाद प्रभु का पाए, मिल्क शेक की प्रसादी शुद्ध में ।

मिट्टी के गनु महराज, पानी से भिगोकर, लगाएं एक पौधा

तो अपने आप ही भगवान बढ़ा देंगे आप सब का औद्धा ।

शुभ  गणेश चतुर्थी

Armin Dutia Motashaw
ग़म

छुपाए बैठे हैं सीने में तेरा ही  गम ।

काश तू देख लेती एक निगाह हमें, इस जनम;

तो कातिल यह दर्द हो जाता कुछ तो कम!

तुझे नासमझ बनना है, तो क्या करे हम !

तेरे प्यारसे पूछने पर, हो जाता यह दर्द थोड़ा कम;

कभी तो समझेगी तु, बस इसी इंतजार में बैठे हैं हम।

इतना भी न तड़पा हमें, ऐ दिलरुबा, के मौत मांगे हम

गर मौत आए तो उसके पहले झलक दिखाना, तब छूटेगा यह दम ।

Armin Dutia Motashaw
गर होती मै

गर होती मै एक महकता फूल, तो शायद छु लेता तु मुझे;

गर होती मै खुशबू तो समा जाती सांसों में तेरी

गर होती मै एक इठलाता झरना, तो प्यास बुझाती तेरी

गर होती मै नटखट नदियां, तो शायद तु होता मेरा किनारा

गर होती मै बादल तो ऐ चांद छुपा लेती तुझे आंचलमे

गर होती मै कोई स्वादिष्ट मिठाई, तो होती मै भीतर तेरे

गर होती मै शहद मीठा, तो होठोको चूम लेती मै तेरे ।

गर होती मै रोशनी, दूर करती तेरा अंधेरा;

हूं मैं एक झगमगाता हुआ दिया; जलता है जो दिल में तेरे

रहूंगी जीवन भर इस दिल में, रोशन करूंगी तेरा जहान ।

Armin Dutia Motashaw
गुजरे हुए जमाने

आए याद मुझे, वोह सुनहरे बीते दिन

अब जीना कितना मुश्किल हे उन बिन !!!

नदी किनारे, ठंडी हवा में बालकनी में बैठना,

स्टीरियो से, पुराने संगीत के मझे लूटना

लताजी की मीठी तान पे हो जाना दिल का कुर्बान;

जुथिका रॉय, जगनमोहन के गीत छु लेते हैं दिलो जान !!!

तलत, मुकेश, मन्ना दा, हेमंत के नगमे है सुरीले और दिलजीत

और क्या कहने जलोताजी के; प्यारे लगते हैं मोहमद, चित्रा और जगजीत ।

कुछ अंग्रेजी नगर्मे भी छु लेते हैं दिल को, वो भी है मुझे प्यारे ।

कितना सुंदर मेरा कुपर मेनशन था, बिल्कुल नदी के किनारे;

खुला आसमान, डूबता सूरज, खिला हुआ चन्द्र, बड़े दिलकश थे नज़ारे

काश आ जाते फिर से एक बार, वो गुजरे हुए जमाने !!!

Armin Dutia Motashaw
गुलिस्तां

आओ चलो , हम कुछ कर दिखाए,

भारत को एक बड़ा चमन, एक गुलिस्तां बनाए ।

पेड़ों की शाखें फूलों, फलों और सब्जियों से लचे ।

हर टेहनी , हर डाल पे असंख्य फूल फल सजे ।

गुलिस्तां में आए हर फल, फूल, सब्जियोंसे हर पौधा लचे ।

कोई मानव, जानवर या पक्षी भूखा न रहे;

और न कोई इंसान या जानवर, कातिल गरमी सहे ।

पेड़ों की छाव से मिलेगी ठंडक और मस्त हवा के झोंके ।

गर इंसान एक बार निर्णय ले ले, तो कोई ताकत उसे न रोके ।

चलो, बारिश का पानी बचाएं और वृक्ष उगाए ।

चलो अपनी इस धरा को,  भारत माता को एक गुलिस्तां बनाए ।

Armin Dutia Motashaw
घोंसला

तिनका तिनका जोड़ के घोसला बनाया बड़े  प्यार से

बच्चोंकी जान खतरे में देख कर , काटा दुशमन  को चोंच की धार से

छोटे और कमजोर हो कर भी ललकारा दुशमन को; देख तु यहीं ;

गर  पंछी यह  कर सकते हैं तो, हम इंसान क्यूँ नहीं ?

बच्चों के लिए माता पिता  उठाते हैं श्रम भारी, देते हैं कितना त्याग

वही बच्चे, अपने पति/ पत्नी की  खुशी के खातीर, बिगाड़ देते है मात पिताका  भाग ।

Armin Dutia Motashaw
चलो एक इतिहास रचा ए,
सपनो का भारत बनाए ।
पानी सींचने से फूल न मुर्झा ;
एक कदम बढ़ाने से बनती है ऊर्जा ।
जात पात के चक्कर में न पड़े हम
पढ़े और पढ़ाए, और आगे बढ़े हम ।

Armin Dutia Motashaw
चांद जाने कहां खो गया

जाग उठा आज फिर से एक बार , वो प्यार जो था सोया

आज  बादलों की ओट में, चांद, न जाने कहां जाके है खोया

बरसात बन के आंसु बह रहे हैं, कोई न जान पाया,  मै चांदनीमें चुपचाप रोया

दिलने पूछा, "क्या तू कभी उसे भुला था; कैसे कहता है तेरा प्यार है सोया?"

दिमाग ने कहा, "चांद मिलता नही सबको, चांद जाने कहां है खोया"

दिल ने ज़ूम के सुनाया, "चांद भले दूर हो, उसे मैंने सपनोमें है संजोया "

चांद की चांदनी ही काफी है, बस उसमे डूब कर मै हूं सोया ";

"अपने दिल का दर्द मैंने है छुपाया, अपने आंसुओ में ही उसे है डुबोया ।

Armin Dutia Motashaw
चांदनी

बीना चांद के, जिसका कोई भी  अस्तित्व नहीं, मै हूँ वो चांदनी ।

फीकी पड़ रही हूँ, बिना तेरे ; पता है हर किसीको, चांद  के बिना कैसी चांदनी !

अमावस्यकी रात बडी ही है लम्बी, जब चांद नही, तो कहां से होगी चांदनी !

न जाने कब तक यूहीं चलेगी यह अमावस्य की रात; उदास है बिचारि चांदनी!

ऐ चांद, तरस रही है तेरे दिदार को  तेरी यह फीकी पड़ती हुई चांदनी ।

दर्शन दे ओ चांद मेरे, तरस रही है तेरे लिए, तेरी अपनी ही यह चांदनी।

बादल छाये हैं गहरे, काले और  घनेरे; आंख मिचौनी न खेल, कहती है चांदनी ।

Armin Dutia Motashaw
आपका  वो  मुस्कुराना, न जाने कब छू गया दिल को मेरे चुपके चुपके ।

न जाने कब आप बन गये जिवन मेरा, धीरे धीरे, चुपके चुपके

जिन्दगीमें मेरी आये बहार बनके, दिल में समा गये, बन के मेरे, चुपके चुपके

न  जाने कब, तन मन पे एक नशा बनके छा गए आप, चुपके चुपके

और फिर, हम अपना दिल ही खो बैठे, न जाने कब यह हुआ, चुपके चुपके ।

जागते  सोते, धीरेसे मेरे ख्वाबो  खयालो में छा गए, चुपके चुपके

जिवन बन गये, मुझमे समा गये, दिल की धड़कन बन गये, बडे ही चुपके चुपके

क्या कहूँ इसे? आपका मेरे सांसोमे समाना यूह चुपके चुपके !!!

Armin Dutia Motashaw
छोटा सा मेरा घर

हो एक छोटा सा; पर मेरा अपना घर;
हो वह, बेहती नदी के किनारे पर ।

पेड़ पौधों के बिचमे, फूलों से महकता हो मेरा आंगन;
रंग बे रंगी फूलों से भरा हो मेरा सुहाना प्रांगण ।

पूर्णिमा का चांद खिला हो, तारों की हो बरात;
प्रीतम का हो साथ, तो और भी हसीन हो जाए रात ।

शांति हो, सुकून हो, हो दुनिया का सारा सुख;
सूर्य की कोमल रोशनी से दूर हो जाए, हर दुख ।

सादा खिलता रहे, मेरा यह, प्यार भरा चमन ।
जीवन में हमारे, सदा हो अमन ही अमन ।

कुके मेरे आंगन में कोयल, और सुरीला गीत गाए बुलबुल ।
मांगू विधातासे आज; कर लीजिए यह मेरी सारी दुआए कबूल ।

Armin Dutia Motashaw
जज़्बात

क्या कभी पूरी होगी मेरी,  वो अनकही, अधुरी बात ?

क्या होगी फिर से एकबार जिवन मे आपसे  मुलाकात ?

अनकही, अनसुनी वो प्यार से भरपुर बात;

जो लब पे कभी आई नही, वो अनकही  बात !

जो कह नही सका आपको, वही प्यार की बात

आँखे कहती थी  मेरे  दिल मे छुपे जज़्बात

पर  आपने अनसुनी कर दी मेरे दिल की बात !

पल दो पल की थी वो मुलाकात; अब है लम्बी जुदाई की रात

इतने खुशनसीब हम कहाँ, जो समज जाते आप मेरे  जज़्बात

काश मैं कह पाता आपको मेरे दिल की बात, या दिखा सक्ता मेरे  जज़्बात ।

Armin Dutia Motashaw
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