मौसम बदल रहा है धूप शर्मा कर निकल रही है खाने-पीने, पहनने की चाहत पनप रही है पतंगें आकाश को रंगीन बना रही हैं तूने जो पतंग उड़ाई मेरा बचपन लौटा पार्क हुआ गुलजार ख्यालों का नहीं टोटा पल में सदियां जीने में ही असल जीवन है सिमटा कहे 'मोहन' सुन बेटा वक्त को तूने है बड़ा सलीके से लपेटा ।